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Jnanganga

Narayan Prasad Jain

Rs. 150

ज्ञानगंगा - साहित्य को साधना का मार्ग मानकर चलने वाले श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा संकलित सूक्ति-संग्रह है 'ज्ञानगंगा' ... । इस गंगा में पूरब-पच्छिम दोनों ओर से पग-पग पर आकर नयी-नयी विचार-धारें मिली हैं; और हर धार कहती है : 'मुझे देखिए; मेरा पानी चखिए; बन सके तो मुझमें नहाइए।'... Read More

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ज्ञानगंगा - साहित्य को साधना का मार्ग मानकर चलने वाले श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा संकलित सूक्ति-संग्रह है 'ज्ञानगंगा' ... । इस गंगा में पूरब-पच्छिम दोनों ओर से पग-पग पर आकर नयी-नयी विचार-धारें मिली हैं; और हर धार कहती है : 'मुझे देखिए; मेरा पानी चखिए; बन सके तो मुझमें नहाइए।' धार तो यह कहती है, पर मैं कहता हूँ—'नहाइए और हल्के हो जाइए।' हो सकता है किसी धार में नहाकर आप अपने-आपको इतना हल्का महसूस करने लगें कि आपको लगे आपके पाँव ज़मीन से उठे जा रहे हैं... यह तो विचारों का ख़ज़ाना है—कभी न घटनेवाला ख़ज़ाना, सबके काम का ख़जाना। क्या विद्यार्थी, क्या पुजारी, क्या राजनेता, क्या सिपाही, क्या बनिया, क्या कारीगर—सभी के काम का ख़ज़ाना है। कोई भी पढ़े हरज नहीं। समझ में आ जाये तो नफ़ा-ही-नफ़ा।इस पुस्तक के माध्यम से आप सन्तों से मिलिए; महात्माओं से मिलिए; राजनेताओं से मिलिए; बहादुर सूरमाओं से मिलिए; नंगे फ़क़ीरों से मिलिए; कवियों से मिलिए; और फिर चाहे नर-नारायनों से मिलिए, और पूजा के योग्य देवियों और नारियों से मिलिए।यह ठीक है कि यह आपकी पूरी भूख न मिटा सकेगी; पर ज्ञान की भूख मिटाना ठीक भी नहीं। और फिर ज्ञान की भूख मिटा भी कौन सकता है? —भगवानदीन
Description
ज्ञानगंगा - साहित्य को साधना का मार्ग मानकर चलने वाले श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा संकलित सूक्ति-संग्रह है 'ज्ञानगंगा' ... । इस गंगा में पूरब-पच्छिम दोनों ओर से पग-पग पर आकर नयी-नयी विचार-धारें मिली हैं; और हर धार कहती है : 'मुझे देखिए; मेरा पानी चखिए; बन सके तो मुझमें नहाइए।' धार तो यह कहती है, पर मैं कहता हूँ—'नहाइए और हल्के हो जाइए।' हो सकता है किसी धार में नहाकर आप अपने-आपको इतना हल्का महसूस करने लगें कि आपको लगे आपके पाँव ज़मीन से उठे जा रहे हैं... यह तो विचारों का ख़ज़ाना है—कभी न घटनेवाला ख़ज़ाना, सबके काम का ख़जाना। क्या विद्यार्थी, क्या पुजारी, क्या राजनेता, क्या सिपाही, क्या बनिया, क्या कारीगर—सभी के काम का ख़ज़ाना है। कोई भी पढ़े हरज नहीं। समझ में आ जाये तो नफ़ा-ही-नफ़ा।इस पुस्तक के माध्यम से आप सन्तों से मिलिए; महात्माओं से मिलिए; राजनेताओं से मिलिए; बहादुर सूरमाओं से मिलिए; नंगे फ़क़ीरों से मिलिए; कवियों से मिलिए; और फिर चाहे नर-नारायनों से मिलिए, और पूजा के योग्य देवियों और नारियों से मिलिए।यह ठीक है कि यह आपकी पूरी भूख न मिटा सकेगी; पर ज्ञान की भूख मिटाना ठीक भी नहीं। और फिर ज्ञान की भूख मिटा भी कौन सकता है? —भगवानदीन

Additional Information
Book Type

Paperback

Publisher Jnanpith Vani Prakashan LLP
Language Hindi
ISBN 812-6310987
Pages 252
Publishing Year 2016

Jnanganga

ज्ञानगंगा - साहित्य को साधना का मार्ग मानकर चलने वाले श्री नारायणप्रसाद जैन द्वारा संकलित सूक्ति-संग्रह है 'ज्ञानगंगा' ... । इस गंगा में पूरब-पच्छिम दोनों ओर से पग-पग पर आकर नयी-नयी विचार-धारें मिली हैं; और हर धार कहती है : 'मुझे देखिए; मेरा पानी चखिए; बन सके तो मुझमें नहाइए।' धार तो यह कहती है, पर मैं कहता हूँ—'नहाइए और हल्के हो जाइए।' हो सकता है किसी धार में नहाकर आप अपने-आपको इतना हल्का महसूस करने लगें कि आपको लगे आपके पाँव ज़मीन से उठे जा रहे हैं... यह तो विचारों का ख़ज़ाना है—कभी न घटनेवाला ख़ज़ाना, सबके काम का ख़जाना। क्या विद्यार्थी, क्या पुजारी, क्या राजनेता, क्या सिपाही, क्या बनिया, क्या कारीगर—सभी के काम का ख़ज़ाना है। कोई भी पढ़े हरज नहीं। समझ में आ जाये तो नफ़ा-ही-नफ़ा।इस पुस्तक के माध्यम से आप सन्तों से मिलिए; महात्माओं से मिलिए; राजनेताओं से मिलिए; बहादुर सूरमाओं से मिलिए; नंगे फ़क़ीरों से मिलिए; कवियों से मिलिए; और फिर चाहे नर-नारायनों से मिलिए, और पूजा के योग्य देवियों और नारियों से मिलिए।यह ठीक है कि यह आपकी पूरी भूख न मिटा सकेगी; पर ज्ञान की भूख मिटाना ठीक भी नहीं। और फिर ज्ञान की भूख मिटा भी कौन सकता है? —भगवानदीन