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Rekhta ke Zauq
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Mohammad Ibrahim Zauq was one of the most acclaimed Urdu poets and a shayar laureate of the Mughal Court in Delhi. His father was a humble soldier in the Mughal army and was able to impart only basic education to Zauq. He was sent to an elementary religious school where he developed an attraction for Urdu poetry. His flair was further honed under the mentorship of the famous poet Shah Nasir. Zauq was introduced to the Mughal Court through his friend and going forward, he became the guide of Bahadur Shah Zafar. He persisted to be the poet laureate of the Mughal Court till 1854, the year of his passing away. Zauq was a major contemporary of Ghalib and in the history of Urdu sher-o-shayari the rivalry of the two poets is widely known. When he was alive, Zauq’s popularity exceeded that of Ghalib for the critical values in those days were mainly confined to judging a piece of poetry on the play of words, phrases and idioms. Matter and flair were barely taken into account while relishing poetry. The credit of Zauq’s reputation in Urdu poetry goes to his eulogies that reflect his command over the language and his expertise in composing poetry in extremely difficult meters.

 

  • Binding: Paperback
  • Pages: 190
  • ISBN No. 9788193968147
  • Language: Urdu (Devanagari Script) 
  • Year Published: 2019
  • Dimensions: 5.5 in x 8.5 in

 

 


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फ़ेह्‍‌रिस्त

1 मज़्कूर तिरी बज़्म में किस का नहीं आता
2 वो कौन है जो मुझ प तअस्सुफ़ नहीं करता
3 नाला इस शोर से क्यों मेरा दुहाई देता
4 लिखये उसे ख़त में कि सितम उठ नहीं सकता
5 नाला है उनसे बयाँ दर्द-ए-जुदाई करता
6 हम हैं और साया तिरे कूचे की दीवारों का
7 पानी तबीब दे है हमें क्या बुझा हुआ
8 नाम मन्ज़ूर है तो फ़ैज़ के अस्बाब बना
9 हो तू आ’शिक़ सोच कर उस दुशमन-ए-ईमान का
10 कोह के चश्मों से अश्कों को निकलते देखा
11 मैं हमेशा आ’शिक़-ए-पेचीदा-मूयाँ1 ही रहा
12 नाला जब दिल से चला सीने में फोड़ा अटका
13 दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया
14 मैं कहाँ संग-ए-दर-ए-यार से टल जाऊँगा
15 उसे हम ने बहुत ढूँडा न पाया
16 माल जब उस ने बहुत रद्द-ओ-बदल में मारा
17 नाम यूँ पस्ती में बाला-तर हमारा हो गया
18 बड़े मूज़ी को मारा नफ़्स-ए-अम्मारा को गर मारा
19 आँखें मिरी तल्वों से वो मल जाए तो अच्छा
20 सुर्मा है सफ़्फ़ाक शोहरा है निगाह-ए-यार का
21 हर गाम पर रखे है वो ये होश-ए-नक़्श-ए-पा
22 जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
23 उनसे कुछ वस्ल का ज़िक्र अब नहीं लाना अच्छा
24 तुम चलो रख कर जो मेरा दीदा-ए-तर ज़ेर-ए-पा
25 मिरे ताले’ में है क्या काम ऐ गर्दूं सितारे का
26 बरसों हो हिज्र, वस्ल हो गर एक दम नसीब
27 दिल इ’बादत से चुराना और जन्नत की तलब
28 मा’लूम जो होता हमें अन्जाम-ए-मोहब्बत
29 है वो आज़ार-ए-मोहब्बत से दिल-ए-ज़ार को रन्ज
30 फ़ुर्क़त की रात जी चुके हम ता ज़मान-ए-सुब्ह
31 ठहरी है उनके आने की याँ कल प जा सलाह
32 क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बा’द
33 मुज़्दा-ए-क़त्ल है उस अ’ह्द-शिकन का काग़ज़
34 तिफ़्ल-ए-अश्क ऐसा गिरा दामान-ए-मिज़्गाँ छोड़ कर
35 मैं वो मज्नूँ हूँ जो निकलूँ कुन्ज-ए-ज़िन्दाँ छोड़ कर
36 बुलबुल हूँ सेह्न-ए-बाग़ से दूर और शिकस्ता-पर
37 बादाम दो जो भेजे हैं बटुवे में डाल कर
38 दम ज़ो’फ़ से उलटता है आ कर दहन के पास
39 सब मज़ाहिब में यही है नहीं इस्लाम में ख़ास
40 जो खुल कर उनका जूड़ा बाल आएँ सर से पाँवों तक
41 फँसा है हल्क़ा-ए-गेसू-ए-ताबदार में दिल
42 पाबन्द जूँ दुख़ाँ हैं परेशानियों में हम
43 गर तिरा नूर नहीं चश्म में क्या है इसमें
44 अ’न्क़ा की तरह ख़ल्क़ से उ’ज़्लत-गुज़ीं हूँ मैं
45 वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
46 गुज़रती उ’म्र है यूँ दौर-ए-आस्मानी में
47 मय मिला कर साक़ियान-ए-सामरी-फ़न आब में
48 मैं हूँ वो ख़िश्त-ए-कुहन मुद्दत से इस वीराने में
49 है जी मैं अपने ग़र्रा-ए-जौहर को तोड़ दूँ
50 सीने से जो मैं आह-ए-दिल-ए-तंग निकालूँ
51 मज़्मून-ए-पेच-ओ-ताब की ताब-ए-रक़म नहीं
52 इस गुलिस्तान-ए-जहाँ में क्या गुल-ए-इश्रत नहीं
53 हाँ तअम्मुल दम-ए-नावक-फ़िगनी ख़ूब नहीं
54 बलाएँ आँखों से उनकी मुदाम लेते हैं

 

ग़ज़लें


 

1

मज़्कूर1 तिरी बज़्म2 में किस का नहीं आता

पर ज़िक्‍3 हमारा नहीं आता नहीं आता

1 चर्चा 2 महफ़िल 3 चर्चा

 

क्या जाने उसे वह्​म1 है क्या मेरी तरफ़ से

जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता

1 शंका, संदेह

 

हम रोने प आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें

शबनम1 की तरह से हमें रोना नहीं आता

1 ओस

 

दुनिया है वो सय्याद1 कि सब दाम2 में उसके

आ जाते हैं लेकिन कोई दाना3 नहीं आता

1 शिकारी 2 जाल 3 ज्ञानी, दाना

 

मरने का मज़ा वो है तिरे कूचे1 में क़ातिल

जाता है वहाँ कोई तो जीता नहीं आता

1 गली

 

बेजा1 है दिला2 उसके न आने की शिकायत

क्या कीजेगा, फ़रमाइए3, अच्छा नहीं आता

1 अनुचित 2 ऐ दिल 3 कहिए

 

साथ उसके हैं हमसाए1 के मानिन्द2 वलेकिन3

इस पर भी जुदा हैं कि लिपटना नहीं आता

1 पड़ोसी 2 की तरह 3 लेकिन

 

जाती रहे ज़ुल्फ़ों की लटक दिल से हमारे

अफ़्सोस कुछ ऐसा हमें लटका नहीं आता

 

क़िस्मत ही से लाचार हूँ ऐ ‘ज़ौक़’ वगर्ना1

सब फ़न2 में हूँ मैं ताक़3 मुझे क्या नहीं आता

1 नहीं तो 2 कला 3 दक्ष


 

2

वो कौन है जो मुझ प तअस्सुफ़1 नहीं करता

पर मेरा जिगर देख कि मैं उफ़ नहीं करता

1 अफ़्सोस, दुख प्रकट करना

 

क्या क़ह्​र1 है वक़्फ़ा2 है अभी आने में उसके

और    मिरा जाने में तवक़्क़ुफ़4 नहीं करता

1 प्रकट 2 देर 3 जान 4 देर

 

पढ़ता नहीं ख़त ग़ैर1 मिरा वाँ2 किसी उ’न्वाँ3

जब तक कि वो मज़्मूँ4 में तसर्रुफ़5 नहीं करता

1 रक़ीब, माशूक़ का अन्य आशिक़ 2 वहाँ 3 तरह, शीर्षक 4 लेख 5 हेर-फेर

 

दिल फ़क़्‍र1 की दौलत से मिरा इतना ग़नी2 है

दुनिया के ज़र3-ओ-माल प मैं तुफ़4 नहीं करता

1 फ़क़ीरी, माया-मोह से दूर होना 2 निर्लिप्त, धनी 3 दौलत 4 धिक्कार

 

ता1 दिल न करे साफ़ मय-ए-साफ़2 से सूफ़ी

कुछ सूद-ओ-सफ़ा3 इ’ल्म-ए-तसव्वुफ़4 नहीं करता

1 जब तक 2 अध्यात्म की शराब 3 फ़ायदा और पवित्रता 4 अध्यात्म का ज्ञान

 

ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़1 में है तक्लीफ़2 सरासर3

आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता

1 औपचारिकता, दिखावा 2 कष्ट 3 पूरी तरह


 

3

नाला1 इस शोर से क्यों मेरा दुहाई देता

ऐ फ़लक2 गर तुझे ऊँचा न सुनाई देता

1 फ़र्याद, रोना 2 आस्मान

 

देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता

आस्माँ आँख के तिल में है दिखाई देता

 

रविश-ए-अश्क1 गिरा देंगे नज़र से इक दिन

है इन आँखों से यही मुझको दिखाई देता

1 आँसू की तरह

 

पन्जा-ए-मेह्​र1 को भी ख़ून-ए-शफ़क़2 में हर रोज़3

ग़ोते क्या क्या है तिरा दस्त-ए-हिनाई4 देता

1 सूरज की किरनें 2 आस्मान की लालिमा 3 दिन 4 मेंहदी लगा हाथ

 

कौन घर आइने के आता अगर वो घर में

ख़ाकसारी1 से न जारूब2-ए-सफ़ाई देता

1 विनम्रता 2 झाड़ू

 

ख़ूगर-ए-नाज़1 हूँ किस का कि मुझे साग़र-ए-मय2

बोसा-ए-लब3 नहीं बे-चश्म-नुमाई4 देता

1 अभिमान का आदी 2 शराब का प्याला 3 होठों का चुंबन 4 आँखें तरेरे बिना

 

देख गर देखना है ‘ज़ौक़’ कि वो पर्दा-नशीं1

दीदाः-ए-रौज़न-ए-दिल2 से है दिखाई देता

1 पर्दे में रहने वाली / वाला 2 आँख जैसा दिल का झरोखा


 

4

लिखये उसे ख़त में कि सितम1 उठ नहीं सकता

पर ज़ो’फ़2 से हाथों में क़लम उठ नहीं सकता

1 अत्याचार 2 कमज़ोरी

 

आती है सदा-ए-जरस-ए-नाक़ा-ए-लैला1

सद-हैफ़2 कि मज्नूँ का क़दम उठ नहीं सकता

1 लैला की ऊँटनी की घंटियों की आवाज़ 2 बहुत दुख की बात है

 

जूँ दाना-ए-रूईदा-तह-ए-संग1, हमारा

सर ज़ेर-ए-गराँबार-ए-अलम2 उठ नहीं सकता

1 पत्थर तले दबा उगा हुआ दाना 2 दुखों के बोझ तले

 

जो दाग़-ए-मआ’सी1 है मिरे दामन-ए-तर में

जूँ हर्फ़-ए-सर-ए-काग़ज़-ए-नम2 उठ नहीं सकता

1 पापों का दाग़ 2 भीगे काग़ज़ पर लिखा अक्षर

 

क्यो इतना गराँ-बार1 है जो रख़्त-ए-सफ़र2 भी

ऐ राहरव-ए-राह-ए-अ’दम3 उठ नहीं सकता

1 बोझल 2 सफ़र का सामान 3 नश्वरता की राह का यात्री

 

पर्दा दर-ए-का’बा1 से उठाना तो है आसाँ2

पर पर्दा-ए-रुख़्सार-ए-सनम3 उठ नहीं सकता

1 काबे का दरवाज़ा 2 आसान 3 मूर्ति / माशूक़ के गाल का पर्दा

 

दुनिया का ज़र1-ओ-माल किया जम्अ’2 तो क्या ‘ज़ौक़’

कुछ फ़ायदा बे-दस्त-ए-करम3 उठ नहीं सकता

1 दौलत 2 इकट्ठा 3 कृपाशील हाथ के बिना


 

5

नाला1 है उनसे बयाँ दर्द-ए-जुदाई करता

काम क़ासिद2 का है ये तीर-ए-हवाई3 करता

1 फ़र्याद, रोना 2 संदेश वाहक 3 हवाई तीर

 

बैठ रहिए तो कफ़स1 है अ’जब आराम की जा2

पर है बेचैन हमें शौक-ए-रिहाई3 करता

1 पिंजरा, क़ैदख़ाना 2 जगह 3 मुक्ति की चाहत

 

बन्द आँखें किए जाता है किधर तू कि तुझे

है तिरा नक़्श-ए-क़दम1 चश्म-नुमाई2 करता

1 पद चिन्ह 2 सावधान

 

सोज़-ए-दिल1 कौन बुझाए कि नहीं चश्म2 में अश्क3

पर है कुछ ख़ून-ए-जिगर4 काररवाई5 करता

1 दिल की आग 2 आँख 3 आँसू  4 दिल का ख़ून 5 काम दिखाना

 

नहीं गोश-ए-शुन्वा1 बाग़-ए-जहाँ2 में ग़ाफ़िल3

वर्ना4 हर बर्ग5 है याँ नग़्मा-सराई6 करता

1 सुनने वाला कान 2 संसार रूपी बाग़ 3 नासमझ 4 नहीं तो 5 पत्ता 6 गीत गाना

 

‘ज़ौक़’ उस पा-ए-निगारीं1 का जो है वस्फ़-निगार2

अश्क-ए-ख़ूनीं3 से है काग़ज़ को हिनाई4 करता

1 सजा हुआ पाँव 2 प्रशंसा लिखने वाला 3 ख़ून भरे आँसू 4 मेंहदी जैसा


 

6

हम हैं और साया1 तिरे कूचे2 की दीवारों का

काम जन्नत3 में है क्या हमसे गुनहगारों4 का

1 छाया 2 गली 3 स्वर्ग 4 पापियों

 

मुहतसिब1 दुश्मन-ए-जाँ गर्चे2 है मय-ख़्वारों3 का

दीजे इक जाम4 तो है यार अभी यारों का

1 धर्म अधिकारी 2 यद्दपि 3 शराब पीने वाले 4 प्याला

 

चर्ख़1 पर बैठ रहा जान बचा कर ई’सा2

हो सका जब न मुदावा3 तिरे बीमारों का

1 आस्मान 2 जो मुर्दों को जिला देते थे 3 इ’लाज

 

क्यों न हर तार में सौ दिल हों गिरफ़्तार कि ज़ुल्फ़

जेलख़ाना है मोहब्बत के गिरफ़्तारों का

 

‘ज़ौक़’ पेचीदा1 कहाँ ज़ुल्फ़ है उस काफ़िर2 की

है मगर नामा-ए-आ’माल3 सियहकारों4 का

1 पेचदार, उलझी हुई 2 ईमान लूटने वाला 3 कर्म पत्र 4 पापियों

 

बे-सियाही न चला काम क़लम का ऐ ‘ज़ौक़’

रू-सियाही1 सर-ओ-सामाँ2 है सियहकारों का

1 मुंह काला होना 2 पूँजी


 

7

पानी तबीब1 दे है हमें क्या बुझा2 हुआ

है दिल ही ज़िन्दगी से हमारा बुझा हुआ

1 चिकित्सक 2 मंत्र पढ़ा हुआ

 

कहते  थे आफ़्ताब-ए-क़यामत1 जिसे तो वो

निकला चराग़-ए-दाग़-ए-दिल अपना बुझा हुआ

1 प्रलय के दिन का सूरज

 

फिर आह-ए-सर्द दिल में हुई मेरे मौजज़न1

तो फिर भड़क उठा ये फ़तीला2 बुझा हुआ

1 लहर लेना 2 चराग़ जलाने की बत्ती, फ़लीता

 

पहले निशाना करता वो बन्दूक़ का मुझे

पर था मिरे नसीब से तोड़ा1 बुझा हुआ

1 जिससे बन्दूक़ दाग़ी जाती थी

 

जल कर अगर बुझे भी दिल-ए-सोख़्ता1 मिरा

तो फिर जलेगा जैसे कि कोला1 बुझा हुआ

1 जला हुआ दिल 2 कोयला

 

हम आप जल बुझे मगर इस दिल की आग को

सीने में हमने ‘ज़ौक़’ न पाया बुझा हुआ


 

8

नाम1 मन्ज़ूर2 है तो फ़ैज़3 के अस्बाब4 बना

पुल बना चाह5 बना मस्जिद-आे-तालाब बना

1 प्रसिद्धि 2 चाहना, स्वीकार 3 भलाई 4 सामान 5 कुवाँ

 

चश्म-ए-मख़्मूर1 का हूँ किसकी मैं कुश्ता2 या-रब3

कि मिरी ख़ाक4 से भी जाम-ए-मय-ए-नाब5 बना

1  मस्त आँख 2 मारा हुआ 3 ऐ ख़ुदा 4 मिट्टी 5 ख़ालिस शराब का प्याला

 

हाय पछताता हूँ क्यों उससे किया मैंने बिगाड़

कि जो इस तर्ह से अब फिरता हूँ बेताब1 बना

1 बेचैन

 

सुर्मा-ए-चश्म-ए-अ’ज़ीज़ाँ1 न बना तू नादाँ2

क्या बना ख़ाक-ए-ग़ुबार-ए-दिल-ए-अहबाब3 बना

1 अपने प्यारों की आँख का सुर्मा 2 नासमझ 3 दोस्तों के दिल का मैल

 

तू अगर आप1 को देखे तो मिरी आँख से देख

अपना आइना मिरा दीदा-ए-पुर-आब2 बना

1 ख़ुद 2 आँसू भरी आँख

 

आयत-ए-सज्दा1 है हक़2 में मिरे हर जौहर-ए-तेग़3

है ख़म-ए-तेग़4 फ़क़त क्या ख़म-ए-महराब बना

1 क़ुरान की वो आयत जिसे पढ़ कर सर झुकाते हैं 2 पक्ष में 3 तल्वार की तेज़ी 4 तल्वर का घुमाव 5 केवल

 

जब किया इ’श्क़ के दरिया ने तलातुम1 ऐ ‘ज़ौक़’

तो कहीं मौज2 बनी और कहीं गिर्दाब3 बना

1 बाढ़ 2 लहर 3 भँवर


 

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