Ganje Farishte - Manto

Rs. 199 Rs. 149

तीन गोले हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे, मैं ग़ौर से उनकी तरफ़ देख रहा था और मीराजी की बातें सुन रहा था। उस शख़्स को पहली बार मैंने यहीं देखा। ग़ालिबन1 सन चालीस था। बंबई छोड़ कर मुझे दिल्ली आए... Read More

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S.K.

Dnt get after many day passed

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Pramod Dhangar
Nice collection

Must read book

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Ravinder Kumar
Ravinder Bhartiya

1 copy. Gunje friste

Description

तीन गोले

हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे, मैं ग़ौर से उनकी तरफ़ देख रहा था और मीराजी की बातें सुन रहा था। उस शख़्स को पहली बार मैंने यहीं देखा। ग़ालिबन1 सन चालीस था। बंबई छोड़ कर मुझे दिल्ली आए कोई ज़ियादा अ’र्सा2 नहीं गुज़रा था। मुझे याद नहीं कि वो फ़्लैट नंबर एक वालों का दोस्त था या ऐसे ही चला आया था लेकिन मुझे इतना याद है कि उसने ये कहा था कि उसको रेडियो स्टेशन से पता चला था कि मैं निकल्सन रोड पर सआ’दत हसन बिल्डिंग्स में रहता हूँ।
इस मुलाक़ात से क़ब्ल3 मेरे और उसके दर्मियान मा’मूली सी ख़त-ओ-किताबत4 हो चुकी थी। मैं बंबई में था जब उसने अदबी दुनिया5 के लिए मुझसे एक अफ़्साना6 तलब7 किया था। मैंने उसकी ख़्वाहिश8 के मुताबिक़9 अफ़्साना भेज दिया लेकिन साथ ही ये भी लिख दिया कि इसका मुआ’वज़ा10 मुझे ज़रूर मिलना चाहिए। इसके जवाब में उसने एक ख़त लिखा कि मैं अफ़्साना वापस भेज रहा हूँ इसलिए कि "अदबी दुनिया" के मालिक मुफ़्तख़ोर11 क़िस्म के आदमी हैं। अफ़्साने का नाम "मौसम की शरारत" था। इस पर उसने ए’तिराज़12 किया था कि इस शरारत का मौज़ू’13 से कोई तअ’ल्लुक़ नहीं इसलिए इसे तब्दील कर दिया जाए। मैंने उसके जवाब में उसको लिखा कि मौसम की शरारत ही अफ़्साने का मौज़ू है। मुझे हैरत14 है कि ये तुम्हें क्यों नज़र न आई। मीराजी का दूसरा ख़त आया जिसमें उसने अपनी ग़लती तस्लीम15 कर ली और अपनी हैरत का इज़्हार16 किया कि मौसम की शरारत वो मौसम की शरारत में क्यों देख न सका।

1 लगभग, संभवत: 2 समय, दूरी 3 पूर्व 4 पत्र, कवाहत 5 पत्रिका का नाम 6 कहानी 7 माँगा 8 इच्छा 9 अनुसार 10 पारिश्रमिक 11 मुफ़्त खाने वाला 12 आपत्ति 13 विषय 14 आश्चर्य 15 मान ली 16 व्यक्त करना, प्रदर्शित करना


मीराजी की लिखाई बहुत साफ़ और वाज़ेह1 थी। मोटे ख़त के निब से निकले हुए बड़े सही नशिस्त2 के हुरूफ़,3 तिकोन की सी आसानी से बने हुए, हर जोड़ नुमायाँ,4 मैं उससे बहुत मुतअ’स्सिर5 हुआ था लेकिन अ'जीब बात है कि मुझे उसमें मौलाना हामिद अली ख़ाँ मुदीर6 हुमायूँ7 की ख़त्ताती8 की झलक नज़र आई। ये हल्की सी मगर काफ़ी मरई9 मुमासिलत-ओ-मुशाबिहत10 अपने अंदर क्या गहराई रखती है इसके मुतअ’ल्लिक़ मैं अब भी ग़ौर करता हूँ तो मुझे ऐसा कोई शोशा11 या नुक्ता12 सुझाई नहीं देता जिस पर मैं किसी मफ़रुज़े13 की बुनियादें खड़ी कर सकूँ।
हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे और मीराजी तुम-तड़ंगे और गोल-मटोल शेर कहने वाला शाइ’र मुझसे बड़े सही क़द-ओ-क़ामत14 और बड़ी सही नोक पलक की बातें कर रहा था जो मेरे अफ़्सानों के मुतअ’ल्लिक़ थीं। वो ता'रीफ़ कर रहा था न तन्क़ीस15। एक मुख़्तसर16 सा तब्सिरा17 था। एक सरसरी18 सी तन्क़ीद19 थी मगर उससे पता चलता था कि मीराजी के दिमाग़ में मकड़ी के जाले नहीं। उसकी बातों में उलझाव नहीं था और ये चीज़ मेरे लिए बाइस-ए-हैरत20 थी, इसलिए कि उसकी अक्सर नज़्में इब्हाम21 और उलझाव की वजह से हमेशा मेरी फ़हम22 से बालातर23 रही थीं लेकिन शक्ल-ओ-सूरत और वज़ा' क़ता'24 के ए'तिबार से वो बिल्कुल ऐसा ही था जैसा कि उसका बेक़ाफ़िया25 मुब्हम26 कलाम27। उसको देख कर उसकी शाइ'री मेरे लिए और भी पेचीदा28 हो गई।

1 स्पष्ट 2 हालत 3 अक्षर, बहुवचन 4 देखने वाला 5 प्रभवित 6 संपादक 7 पत्रिका का नाम 8 सुलेखकला, विद्या 9 दिखने वाली 10 समानता 11 टुकड़ा 12 बिन्दु 13 परिक्लाना 14 लम्बार्इ-चौड़ार्इ 15 कमी निकालना 16 छोटा 17 समीक्षा 18 कम महत्व रखाने वाली 19 आलोचना 20 आश्चर्य का कारण 21 अस्पष्ट 22 समझ 23 ऊपर 24 पहनावा 25 क़ाफ़िया रहित 26 धुंधलकापूर्ण 27 काथा 28 जटिल


नून मीम राशिद बे क़ाफ़िया शाइ'री का इमाम माना जाता है। उसको देखने का इत्तिफ़ाक़ भी दिल्ली में हुआ था। उसका कलाम मेरी समझ में आ जाता था और उसको एक नज़र देखने से उसकी शक्ल-ओ-सूरत भी मेरी समझ में आ गई। चुनांचे1 एक बार मैंने रेडियो स्टेशन के बरामदे में पड़ी हुई बग़ैर मड्गार्डों की साईकिल देख कर उससे अज़2 राह-ए-मज़ाक़3 कहा था, "लो, ये तुम हो और तुम्हारी शाइ'री।" लेकिन मीराजी को देख कर मेरे ज़ेहन4 में सिवाए उसकी मुब्हम5 नज़्मों के और कोई शक्ल नहीं बनती थी।
मेरे सामने मेज़ पर तीन गोले पड़े थे। तीन आहनी6 गोले। सिगरेट की पन्नियों में लिपटे हुए। दो बड़े एक छोटा। मैंने मीराजी की तरफ़ देखा। उसकी आँखें चमक रही थीं और उनके ऊपर उसका बड़ा भूरे बालों से अटा हुआ सर... ये भी तीन गोले थे। दो छोटे छोटे, एक बड़ा। मैंने ये मुमासिलत7 महसूस की तो उसका रद्द-ए-अ'मल8 मेरे होंठों पर मुस्कुराहट में नुमूदार9 हुआ। मीराजी दूसरों का रद्द-ए-अमल ताेड़ने में बड़ा होशियार था। उसने फ़ौरन10 अपनी शुरू'' की हुई बात अधूरी छोड़कर मुझसे पूछा, "क्यों भय्या, किस बात पर मुस्कुराए?"
मैंने मेज़ पर पड़े हुए उन तीन गोलों की तरफ़ इशारा किया। अब मीराजी की बारी थी। उसके पतले पतले होंट महीन महीन भूरी मूंछों के नीचे गोल गोल अन्दाज़ में मुस्कुराए।
उसके गले में मोटे-मोटे गोल मनकों की माला थी जिसका सिर्फ़ बालाई11 हिस्सा क़मीज़12 के खुले हुए काॅलर से नज़र आता था... मैंने सोचा। इस इन्सान ने अपनी क्या हैयत13 कुज़ाई14 बना रखी है... लम्बे-लम्बे ग़लीज़15 बाल जो गर्दन से नीचे लटकते थे। फ़्रैंच कट सी दाढ़ी। मैल से भरे हुए नाख़ुन। सर्दियों के दिन थे। ऐसा मा'लूम होता था कि महीनों से उसके बदन ने पानी की शक्ल नहीं देखी।

1 इसलिए, अतः 2 से 3 मज़ाक़ के रूप में 4 मस्तिष्क 5 अस्पष्ट 6 लोहे के 7 समानता 8 प्रतिक्रिया 9 दिखा 10 तुरन्त 11 ऊपरी 12 कुर्ता 13 रूप 14 वैसी ही, वैसा रूप 15 गंदे


ये उस ज़माने की बात है जब शाइ'र, अदीब और एडिटर आम तौर पर लॉन्ड्री में नंगे बैठ कर डबल रेट पर अपने कपड़े धुलवाया करते थे और बड़ी मैली कुचैली ज़िन्दगी बसर करते थे, मैंने सोचा, शायद मीराजी भी उसी क़िस्म का शाइर और एडिटर है लेकिन उसकी ग़लाज़त। उसके लम्बे बाल, उसकी फ़्रैंच कट दाढ़ी। गले की माला और वो तीन आहनी1 गोले... मआशी2 हालात के मज़हर3 मा'लूम नहीं होते थे। उनमें एक दरवेशाना4-पन था। एक क़िस्म की राहबियत5... जब मैंने राहबियत के मुतअ’ल्लिक़ सोचा तो मेरा दिमाग़ रूस के दीवाने राहिब रास्पोतिन की तरफ़ चला गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि वो बहुत ग़लाज़त पसंद6 था। बल्कि यूँ कहना चाहिए कि ग़लाज़त का उसको कोई एहसास ही नहीं था। उसके नाख़ुनों में भी हर वक़्त मैल भरा रहता था। खाना खाने के बाद उसकी उँगलियाँ लिथड़ी होती थीं। जब उसे उनकी सफ़ाई मत्लूब7 होती तो वो अपनी हथेली शहज़ादियों8 और रईस-ज़ादियों9 की तरफ़ बढ़ा देता जो उनकी तमाम आलूदगी10 अपनी ज़बान से चाट लेती थीं।
क्या मीराजी इसी क़िस्म का दरवेश11 और राहिब था? ये सवाल उस वक़्त और बाद में कई बार मेरे दिमाग़ में पैदा हुआ, मैं अमृतसर में साईं घोड़े शाह को देख चुका था जो अलिफ़ नंगा12 रहता था और कभी नहाता नहीं था। इसी तरह के और भी कई साईं और दरवेश मेरी नज़र से गुज़र चुके थे जो ग़लाज़त आग के पुतले थे मगर उनसे मुझे घिन आती थी। मीराजी की ग़लाज़त से मुझे नफ़रत कभी नहीं हुई। उलझन अलबत्ता बहुत होती थी।
घोड़े शाह की क़बील13 के साईं आम तौर पर ब-क़द्र-ए-तौफ़ीक़ मुग़ल्लिज़ात14 बकते हैं मगर मीराजी के मुँह से मैंने कभी कोई ग़लीज़ कलिमा15 न सुना। इस क़िस्म के साईं ब ज़ाहिर मुजर्रिद16 (मुजर्रद) मगर दरपर्दा17 हर क़िस्म के जिन्सी फे़अ’ल18 के मुर्तक़िब19 होते हैं।

1 लोहे के 2 आर्थिक 3 अभिव्यक्ति 4 दरवेशों जैसा 5 वह र्इसार्इ पुरुष जो संसारिक दुखों से नितृत्त हो चुका हो उसी से संबंधित 6 गन्दगी-प्रिय 7 मनोनित 8 राजकुमानियाँ 9 धनी युवितयाँ 10 गन्दगी 11 साधू 12 पूरानंगा13 समूह 14 जान बूझकर गन्दी बातें करना 15 वाक्य 16 नंगे 17 पर्दे के पीछे 18 क्रिया 19 पाप करने वाला


मीराजी भी मुजर्रिद था मगर उसने अपनी जिन्सी तस्कीन के लिए सिर्फ़ अपने दिल-ओ-दिमाग़ को अपना शरीक-ए-कार बना लिया था। इस लिहाज़ से गो उसमें और घोड़े शाह की क़बील के साइयों में एक गो ना-मुमासिलत थी मगर वो उनसे बहुत मुख़्तलिफ़ था। वो तीन गोले था... जिनको लुढ़काने के लिए उसको किसी ख़ारिजी मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। हाथ की ज़रा सी हरकत और तख़य्युल1 की हल्की सी जुम्बिश2 से वो उन तीन जाम3 को ऊँची और ऊँची बुलन्दी और नीची से नीची गहराई की सैर करा सकता था और ये गुर उसकी इन्हीं तीन गोलों ने बताया था जो ग़ालिबन4 उसको कहीं पड़े हुए मिले थे। इन ख़ारिजी5 इशारों ही ने उस पर एक अज़ली6-ओ-अबदी7 हक़ीक़त को मुनकशिफ़8 किया था। हुस्न इ'श्क़ और मौत... इस तस्लीस9 के तमाम अक़लीदसी10 ज़ाविए11 सिर्फ़ उन तीन गोलों की बदौलत12 उसकी समझ में आए थे लेकिन हुस्न और इ'श्क़ के अन्जाम को

चूँकि13 उसने शिकस्त ख़ूर्दा14 ऐनक से देखा था। सही नहीं थी। यही वजह है कि उसके सारे वजूद15 में एक नाक़ाबिल16-ए-बयान17 इब्हाम18 का ज़हर फैल गया था। जो एक नुक़्ते19 से शुरू'' हो कर एक दायरे20 में तब्दील हो गया था। इस तौर21 पर कि उसका हर नुक़्ता उसका नुक़्ता-ए-आग़ाज़22 है और वही नुक़्ता-ए-अन्जाम। यही वजह है कि उसका इब्हाम नोकीला नहीं था। उसका रुख़23 मौत की तरफ़ था न ज़िन्दगी की तरफ़। रज़ाइयत24 की सिम्त25, न क़ुनूतियत26 की जानिब27। उसने आग़ाज़28 और अन्जाम को अपनी मुट्ठी में इस ज़ोर से भींच रखा था कि उन दोनों का लहू निचुड़ निचुड़ कर उसमें से टपकता रहता था लेकिन सादियत29 पसंदों की तरह वो उससे मसरूर30 नज़र नहीं आता था। यहाँ फिर उसके जज़्बात गोल हो जाते थे। तीन उन आहनी31 गोलों की तरह, जिनको मैंने पहली मर्तबा हसन बिल्डिंग्ज़ के फ़्लैट नंबर एक में देखा था।
उसके शे'र का एक मिसरा' है:
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

1 कल्पनालोक 2 हिलना 3 शराब का पात्र 4 यक़ीन से 5 बाहरी 6 अनादि एवं अनंत 7 अनन्त 8 खोलना 9 तीन भाग 10 महक 11 कोण 12 के कारण 13 क्योंकि 14 हारा हुआ 15 अस्तित्व 16 जो व्यक्त करने योग्य न हो 17 अभिव्यक्ति 18 अस्पष्टता 19 बिन्दु 20 परिधी 21 इस रूप में 22 आरम्भ का बिन्दु 23 दिशा 24 आशा 25 दिशा 26 ना-उम्मीदी 27 की ओर 28 आरम्भ 29 स्वंय की पीड़ा देने वालों 30 आनंदित 31 लोहे के


मुसाफ़िर को रस्ता भूलना ही था। इसलिए कि उसने चलते वक़्त नुक़्ता-ए-आग़ाज़ पर कोई निशान नहीं बनाया था। अपने बनाए हुए दायरे के ख़त के साथ साथ घूमता वो यक़ीनन कई बार इधर से गुज़रा मगर उसे याद न रहा कि उसने अपना ये तवील1 सफ़र कहाँ से शुरू'' किया था और मैं तो समझता हूँ कि मेरा जी ये भूल गया था कि वो मुसाफ़िर है, सफ़र है या रास्ता। ये तस्लीस2 भी उसके दिल-ओ-दिमाग़ के ख़लियों3 में दायरे4 की शक्ल इख़्तियार कर गई थी।
उसने एक लड़की मीरा से मोहब्बत की और वो सनाउल्लाह से मीराजी बन गया। उसी मीरा के नाम की रिआ'यत5 से उसने मीरा बाई के कलाम6 को पसंद करना शुरू'' कर दिया। जब अपनी उस महबूबा का जिस्म मयस्सर7 न आया तो कूज़ागर8 की तरह चाक घुमा कर अपने तख़य्युल9 की मिट्टी से शुरू'’-शुरू'’ में इसी शक्ल-ओ-सूरत के जिस्म तैयार करने शुरू'' कर दिए लेकिन बा'द में आहिस्ता-आहिस्ता उस जिस्म की साख़्त10 के तमाम मुमय्यज़ात11, उसकी तमाम नुमायाँ12 ख़ुसूसियतें13 तेज़ रफ़्तार चाक पर घूम घूम कर नित नई हैयत14 इख़्तियार करती गईं और एक वक़्त ऐसा आया कि मीराजी के हाथ, उसके तख़य्युल की नर्म नर्म मिट्टी और चाक, मुतवातिर15 गर्दिश16 से बिल्कुल गोल हो गए। कोई भी टाँग मीरा की टाँग हो सकती थी। कोई भी चीथड़ा मीरा का पैराहन17 बन सकता था। कोई भी रहगुज़र18 मीरा की रहगुज़र में तब्दील हो सकती थी और इन्तिहा ये हुई कि तख़य्युल की नर्म नर्म मिट्टी की सोंधी सोंधी बास सड़ांद बन गई और वो शक्ल देने से पहले ही उसको चाक से उतारने लगा।

1लम्बा 2 तीन काम करना 3 अन्तर्ग्रथन 4 परिधि 5 विचार 6 काव्य 7 मिलना 8 कुम्हार 9 कल्पना 10 बनावट 11 तमीज़ करनेवाली चीज़ें या उमूर 12 दिखने वाली 13 विशेषताएँ 14 रूप 15 लगातार 16 भटकन 17 कुर्ता 18 रास्ता


पहले मीरा बुलन्द नाम महलों में रहती थी। मीराजी ऐसा भटका कि रास्ता भूल कर उसने नीचे उतरना शुरू'' कर दिया। उसको इस गिरावट का मुतलक़न1 एहसास न था। इसलिए कि उतराई में हर क़दम पर मीरा का तख़य्युल उसके साथ था जो उसके जूते के तलवों की तरह घिसता गया। पहले मीरा आम महबूबाओं की तरह बड़ी ख़ूबसूरत थी लेकिन ये ख़ूबसूरती हर निस्वानी2 पोशाक में मलबूस3 देख देख कर कुछ इस तौर पर उस दिल के दिल-ओ-दिमाग़ में मस्ख़4 हो गई थी कि उसके सही तसव्वुर की अलम-नाक5 जुदाई का भी मीरा को एहसास न था। अगर एहसास होता तो इतने बड़े अलमिये6 के जुलूस7 के चन्द ग़ैर मुब्हम8 निशानात उसके कलाम9 में यक़ीनन मौजूद होते जो मीरा से मोहब्बत करते ही उसके दिल-ओ-दिमाग़ में से निकलना शुरू' हो गया था।
हुस्न, इश्क़ और मौत। ये तिकोन पिचक कर मीराजी के वजूद में गोल हो गई थी। सिर्फ़ यही नहीं दुनिया की हर मुसल्लस10 उसके दिल-ओ-दिमाग़ में मुदव्वर11 हो गई थी। यही वजह है कि उसके अरकान-ए-सलासा12 कुछ इस तरह आप में गड्ड-मड्ड हो गए थे कि उनकी तर्तीब दरहम-बरहम13 हो गई थी। कभी मौत पहले हुस्न आख़िर और इ'श्क़ दर्मियान में। कभी इ'श्क़ पहले मौत उसके बा'द और हुस्न आख़िर में और ये चक्कर ना-महसूस तौर पर चलता रहता था।
किसी भी औ'रत से इ'श्क़ किया जाए तिगड्डा एक ही क़िस्म का बनता है। हुस्न, इ'श्क़ और मौत। आ'शिक़, मा'शूक़ और वस्ल14। मीरा से सनाउल्लाह का विसाल15 जैसा कि जानने वालों को मा'लूम है, न हुआ या न हो सका। इस न होने या न हो सकने का रद्द-ए-अमल16 मीराजी था। उसने इस मु'आशक़े17 में शिकस्त18 खा कर इस तस्लीस19 के टुकड़ों को इस तरह जोड़ा था कि उनमें एक सालमियत20 तो आ गई थी मगर असलियत मस्ख़ हो गई थी। वो तीन नोकें जिनका रुख़ ख़त्त-ए-मुस्तक़ीम21 में एक दूसरे की तरफ़ होता है, दब गईं थीं। विसाल-ए-महबूब22 के लिए अब ये लाज़िम23 नहीं था कि महबूब मौजूद हो। वो ख़ुद ही आ'शिक़ था ख़ुद ही माशूक़ और ख़ुद ही विसाल।

1 बिल्कुल 2 स्त्री संबंधी 3 पहने हुए 4 विकृति 5 दुखदायक 6 दुख 7 इकट्ठे निकलना 8 अस्पष्ट 9 काव्य 10 तीन भागों वाली वस्तुएँ 11 परिधि जैसी गोल बनना 12 तीन आयाम 13 उथल-पुथल होना 14 मिलाप 15 प्रेमी प्रेमिका का िमलन 16 प्रतिक्रिया 17 प्रेम-लीला 18 हार 19 तीन भाग 20 पूर्णता 21 सीधी रेखा 22 प्रेमी से िमलन होना 23 आवश्यक


मुझे मा'लूम नहीं उसने लोहे के ये गोले कहाँ से लिये थे। ख़ुद हासिल किए थे या कहीं पड़े हुए मिल गए थे। मुझे याद है, एक मर्तबा उनके मुतअ’ल्लिक़ मैंने बंबई में उससे इस्तिफ़्सार1 किया था तो उसने सरसरी तौर पर इतना कहा था, "मैंने ये ख़ुद पैदा नहीं किए, अपने आप पैदा हो गए हैं।"
फिर उसने उस गोले की तरफ़ इशारा किया था जो सबसे बड़ा था। पहले ये वजूद में आया। उसके बाद ये दूसरा जो उससे छोटा है उसके पीछे ये कोचक!
मैंने मुस्कुरा कर उससे कहा था, "बड़े तो बावा आदम अलैहिस सलाम हुए। ख़ुदा उनको वो जन्नत नसीब करे जिससे वो निकाले गए थे... दूसरे को हम अम्माँ हव्वा कह लेते हैं और तीसरे को उनकी औलाद!"
मेरी इस बात पर मीराजी ख़ूब खुल कर हँसा था। मैं अब सोचता हूँ तो मुझे तो उन तीन गोलों पर सारी दुनिया घूमती नज़र आती है। तस्लीस2 क्या तख़्लीक़3 का दूसरा नाम नहीं? वो तमाम मुसल्लसें4 जो हमारी ज़िन्दगी की अक़्लीदस5 में मौजूद हैं। क्या उनमें इन्सान की तख़्लीक़ी कुव्वतों का निशान नहीं है?
ख़ुदा, बेटा और रूहुल-ए-क़ुदुस,6 ईसाइयत के अक़ानीम7 त्रिशूल, महादेव कासा शाख़ा भाला... तीन देवता। ब्रह्मा, विष्णु, त्रिलोक... आसमान ज़मीन और पाताल। ख़ुश्की,8 तरी9 और हवा तीन बुनियादी रंग सुर्ख़,10 नीला और ज़र्द11। फिर हमारे रुसूम और मज़हबी अहकाम,12 ये तीजे13। सोइम14 और तलीन्डियाँ। वुज़ू में तीन मर्तबा हाथ मुँह धोने की शर्त, तीन तलाक़ें और सेह गूना मुआ’नक़े15 और जुए में नर्द बाज़ी16 के तीन पाँसों के तीन नुक़्ते यानी तीन काने। मौसीक़ी के तिये हयात-ए-इन्सानी17 के मलबे को अगर खोद कर देखा जाए तो मेरा ख़याल है, ऐसी कई तस्लीसें मिल जाएँगी इसलिए कि उसके तवल्लुद-18ओ-तनासुल19 के अफ़आ’ल20 का मह्वर21 भी आ'ज़ा-ए-सलासा22 है।

1 प्रश्न, पूछताछ 2 तीन भाग 3 रचना 4 तीन भागों में त्रिकोण 5 महान ज्ञनानी गणित 6 हज़रत जिबरर्इल 7 बहुवचन 9 सूखापन 10 ज़मीन के नीचे 11 लाल रंग 12 पीला 12 आदेश 13 मृत्यु का तीसरा दिन 14 तीसरा दिन मृत्यु के बा'द 15 तीन बार गले मिलना 16 चौसर का खेल 17 संगीत 18 इन्सान का जीवन 19 उत्पन्न होना 20 नस्ल बढ़ना 26 कार्य 21 केंद्र 22 तीन अंग 23 आकृतियाँ


अक़्लीदस में मुसल्लस बहुत अहम हैसियत रखती है। दूसरी अश्काल के मुक़ाबले में ये ऐसी कट्टर और बे लोच शक्ल है जिसे आप किसी और शक्ल में तब्दील नहीं कर सकते लेकिन मीराजी ने अपने दिल-ओ-दिमाग़ और जिस्म में इस सुकून को जिसका ज़िक्र ऊपर हो चुका है कुछ इस तरह दबाया कि उसके रुक्न1 अपनी जगहों से हट गए। जिसका नतीजा ये हुआ कि आस-पास की दूसरी चीज़ें भी उस तिकोन के साथ मस्ख़2 हो गईं और मीराजी की शाइरी ज़ुहूर3 में आई।
पहली मुलाक़ात ही में मेरी उसकी बे-तकल्लुफ़ी4 हो गई थी। उसने मुझे दिल्ली में बताया कि उसकी जिन्सी इजाबत5 आम तौर पर रेडियो स्टेशन के स्टूडियोज़ में होती है जब ये कमरे ख़ाली होते थे तो वो बड़े इत्मिनान से अपनी हाजत-ए-रफ़ा6 (हाजत रफ़ा) कर लिया करता था। उसकी ये जिन्सी ज़लालत7 ही, जहाँ तक मैं समझता हूँ उसकी मुब्हम8 मन्ज़ूमात9 का बाइस है वर्ना जैसा कि मैं पहले बयान कर चुका हूँ। आम गुफ़्तुगू में वो बड़ा वाज़ेह10 दिमाग़ था। वो चाहता था कि जो कुछ उस पर बीती है अशआ'र11 में बयान हो जाए मगर मुसीबत ये थी कि जो मुसीबत उस पर टूटी थी, उसको उसने बड़े बे-ढंगे तरीक़े से जोड़ कर अपनी निगाहों के सामने रक्खा था। उसको इसका इ'ल्म था। इस ज़िम्न12 में वो अपनी बेचारगी अच्छी तरह महसूस करता था लेकिन आम आदमियों की तरह उसने अपनी इस कमज़ोरी को अपना ख़ास रंग बनाने की कोशिश की और आहिस्ता-आहिस्ता इस मीरा को भी अपनी गुमराही13 की सूली पर चढ़ा दिया।
ब-हैसियत शाइ'र के उसकी हैसियत वही है जो गले-सड़े पत्तों की होती है। जिसे खाद के तौर पर इस्ति'माल किया जा सकता है। मैं समझता हूँ उसका कलाम14 बड़ी उम्दा15 खाद है जिसकी इफ़ादियत16 एक न एक दिन ज़रूर ज़ाहिर हो के रहेगी। उसकी शाइ'री एक गुमराह इन्सान का कलाम है जो इन्सानियत की अमीक़ तरीन17 पस्तियों18 से मुतअ’ल्लिक़ होने के बावजूद दूसरे इन्सानों के लिए ऊँची फ़िज़ाओं19 में मर्ग-ए-बाद-नुमा20 का काम दे सकता है। उसका कलाम21 एक "जिग्सा पज़ल" है जिसके टुकड़े बड़े इत्मिनान और सुकून से जोड़ कर देखने चाहिए।

1 स्तंभ 2 विकृति 3 प्रकट होना 4 एक-दूसरे से खुल जाना 5 स्वीकृति 6 शौच 7 अपमान 8 अस्पष्ट 9 कविताएँ 10 स्पष्ट 11 पंक्तियाँ 12 अंतर्गत 13 राह से भटकना 14 काव्य 15 अच्छी 16 लाभ होना 17 अत्यधिक गहरी 18 तलों 19 वातावरण 20 वह आदमी जो समय और परिस्थितियों के साथ बदल जाता है 21 काव्य


ब-हैसियत इन्सान के वो बड़ा दिलचस्प था। परले दर्जे1 का मुख़्लिस2 जिसको अपनी इस क़रीब-क़रीब नायाब3 सिफ़त4 का मुतलक़न5 एहसास नहीं था। मेरा ज़ाती ख़याल है कि वो अश्ख़ास6 जो अपनी ख़्वाहिशात-ए-जिस्मानी7 का फ़ैसला अपने हाथों को सौंप देते हैं, आम तौर पर इसी क़िस्म के मुख़लिस होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि वो ख़ुद को सरीहन8 धोका देते हैं मगर इस फ़रेब-दही9 में जो ख़ुलूस10 होता है, वो ज़ाहिर है।
मीरा जी ने शाइ'री की, बड़े ख़ुलूस के साथ। शराब पी, बड़े ख़ुलूस के साथ, भांग पी, वो भी बड़े ख़ुलूस के साथ। लोगों से दोस्ती की, और उसे निभाया। अपनी ज़िन्दगी की एक अ'ज़ीम तरीन11 ख़्वाहिश को जुल12 देने के बाद वो किसी और से धोका-फ़रेब करने का अह्ल13 ही नहीं रहा था उस अह्लियत14 के इख़राज15 के बा'द वो इस क़दर16 बेज़रर17 हो गया था कि बे-मसरफ़18 सा मा'लूम होता था। एक भटका हुआ मुसाफ़िर जो नगरी नगरी फिर रहा है। मन्ज़िलें क़दम क़दम पर अपनी आग़ोश19 उसके लिए वा20 करती हैं, मगर वो उनकी तरफ़ देखे बग़ैर आगे निकलता जा रहा है। किसी ऐसी जगह, जिसकी कोई सिम्त21 है न रक़्बा22। एक ऐसी तिकोन की जानिब जिसके अरकान23 अपनी जगह से हट कर तीन दायरों24 की शक्ल में उसके गिर्द घूम रहे हैं।
मैंने मीराजी से उसके कलाम के मुतअ'ल्लिक़ दो तीन जुमलों से ज़ियादा कभी गुफ़्तुगू नहीं की, मैं उसे बकवास कहा करता था और वो उसे तस्लीम करता था। उन तीन गोलों और मोटे मोटे दानों की माला को मैं उसका फ़्रॉड कहता था, उसे भी वो तस्लीम करता था। हालाँकि हम दोनों जानते थे कि ये चीज़ें फ़्रॉड नहीं हैं।

1 बहुत अधिक 2 सज्जन 3 अप्राप्य 4 विशेषता के लिए प्रयुक्त 5 नितांत 6 व्यक्ति 7 शारीरिक कामनाएँ 8 खुल्लम खुल्ला 9 धोका देना 10 प्रेम भाव 11 महानतम 12 धोका देना 13 योग्य 14 योग्यता 15 बाहर निकालना 16 इतना अधिक 17 भोला 18 निरर्थक, बेकार 19 आलिंगम 20 खोलना 21 दिशा 22 क्षेत्र 23 खंभे (बहुवचन) 24 वृत्त / परिधि

एक दफ़ा1 उसके हाथ में तीन के बजाए दो गोले देख कर मुझे बहुत तअ'ज्जुब2 हुआ, मैं ने जब इसका इज़्हार किया तो मीराजी ने कहा, "बरखु़र्दार3 का इंतिक़ाल4 हो गया है मगर अपने वक़्त पर एक और पैदा हो जाएगा!"
मैं जब तक बंबई में रहा, ये दूसरा बरखु़र्दार पैदा न हुआ। या तो अम्माँ हव्वा5 अक़ीम6 हो गई थी या बावा आदम7 मर्दुम-ख़ेज़8 नहीं रहे थे। ये रही-सही ख़ारिजी9 तस्लीस10 भी टूट गई थी और ये बुरी फ़'अ'आल11 थी। बा'द में मुझे मा'लूम हुआ कि मीराजी को इसका एहसास था, चुनांचे जैसा कि सुनने में आया है, उसने उसके बाक़ी के उक़्नूम12 भी अपने हाथ से अलाहिदा13 कर दिए थे।
मुझे मा'लूम नहीं मीराजी घूमता-घामता कब बंबई पहुँचा, मैं उन दिनों फिल्मिस्तान में था। जब वो मुझसे मिलने के लिए आया बहुत ख़स्ता-हालत14 में था, हाथ में तीन गोले बदस्तूर15 मौजूद थे। बोसीदा16 सी कॉपी भी थी। जिसमें ग़ालिबन17 मीरा बाई का कलाम18 उसने अपने हाथ से लिखा हुआ था। साथ ही एक अ'जीब शक्ल की बोतल थी जिसकी गर्दन मुड़ी हुई थी, उसमें मीराजी ने शराब डाल रक्खी थी, ब-वक़्त-ए-तलब19 वो उसका काग खोलता और एक घूँट चढ़ा लेता था।
दाढ़ी ग़ायब थी, सर के बाल बहुत हल्के थे, मगर बदन की ग़लाज़त20 बदस्तूर मौजूद। चप्पल का एक पैर दुरुस्त हालत में था, दूसरा मरम्मत21 तलब22 था। ये कमी उसने पाँव पर रस्सी बाँध कर रक्खी थी।

1 बार 2 आश्चर्य 3 प्रसन्न 4 मृत्यु 5 आदम की पत्नी 6 बाँझ 7 प्रथम पैग़म्बर 8 संतानोत्पत्ति करने योग्य 9 बाहरी 10 तीन भागों की त्रिभुज 11 पूर्वानुमान 12 नींव 13 अलग 14 पतली स्थिति 15 पहले की तरह 16 पुरानी 17 संभवतः 18 माव्य 19 आवश्यकताके समय 20 गन्दगी 21 सही 22 खोज


थोड़ी देर इधर उधर की बातें हुईं, उन दिनों ग़ालिबन आठ दिन की शूटिंग हो रही थी। उसकी कहानी मेरी थी जिस के लिए दो एक गानों की ज़रूरत थी। मैंने इस ख़याल से कि मीराजी को कुछ रुपये मिल जाएँ, उससे ये गाने लिखने के लिए कहा जो उसने वहीं बैठे-बैठे लिख दिए मगर खड़े खड़े क़िस्म के निहायत1 वाहियात2 जो यकसर3 ग़ैर फ़िल्मी थे। मैंने जब उसको अपना फ़ैसला सुनाया तो वो ख़ामोश रहा। वापस जाते हुए उसने मुझसे सात रुपये तलब किए कि उसे एक अद्धा4 लेना था।
उसके बाद बहुत देर तक उसको हर रोज़ साढे़ सात रुपये देना मेरा फ़र्ज़ हो गया। मैं ख़ुद बोतल का रसिया था। ये मुँह न लगे तो जी पर क्या गुज़रती है इसका मुझे बख़ूबी इ'ल्म था। इसलिए मैं इस रक़म का इन्तिज़ाम कर रखता। सात रुपये में रम का अद्धा आता था, बाक़ी आठ आने उसके आने-जाने के लिए होते थे।
बारिशों का मौसम आया तो उसे बड़ी दिक़्क़त महसूस हुई। बंबई में इतनी शदीद5 बारिश होती है कि आदमी की हड्डियाँ तक भीग जाती हैं। उसके पास फ़ालतू कपड़े नहीं थे। इसलिए ये मौसम उसके लिए और भी ज़ियादा तकलीफ़-देह6 था। इत्तिफ़ाक़ से मेरे पास एक बरसाती थी जो मेरा एक हट्टा-कट्टा फ़ौजी दोस्त सिर्फ़ इसलिए मेरे घर भूल गया था कि वो बहुत वज़्नी7 थी और उसके कंधे शल8 कर देती थी। मैंने उसका ज़िक्र मीराजी से किया और उसके वज़्न से भी उसको आगाह9 कर दिया। मीराजी ने कहा, "कोई परवाह नहीं, मेरे कंधे उसका बोझ बर्दाश्त कर लेंगे!" चुनांचे मैंने वो बरसाती उसके हवाले कर दी जो सारी बरसात उसके कंधों पर रही।
मरहूम10 को समुन्दर से बहुत दिलचस्पी थी। मेरा एक दूर का रिश्तेदार अशरफ़ है वो उन दिनों पायलट था जुहू में समुन्दर के किनारे रहता था। ये मीराजी का दोस्त था मा'लूम नहीं उनकी दोस्ती की बिना क्या थी, क्योंकि अशरफ़ को शेर-ओ-शाइ'री से दूर का वास्ता भी नहीं है। बहरहाल मीराजी उसके यहाँ रहता था और दिन को उसके हिसाब में पीता था।

1 अधिक 2 बेकार 3 बिल्कुल 4 शराब 5 प्रचंड 6 पीड़ादायक 7 भारी 8 सुन्न 9 जागरुक 10 स्वर्गीय


अशरफ़ जब अपने झोंपड़े में नहीं होता था तो मीराजी साहिल की नर्म नर्म और गीली गीली रेत पर वो बरसाती बिछाकर लेट जाता और मुब्हम1 शेर-ओ-फ़िक्र2 किया करता था।
उन दिनों हर इतवार को जुहू जाना और दिन भर पीना मेरा मा'मूल3 सा हो गया था। दो-तीन दोस्त इकट्ठे हो कर सुबह निकल जाते और सारा दिन साहिल4 पर गुज़ारते। मीराजी वहीं मिल जाता। ऊट-पटाँग क़िस्म के मशाग़िल5 रहते, हमने इस दौरान शायद ही कभी अदब6 के बारे में गुफ़्तुगू7 की हो। मर्दों और औ'रतों के तीन चौथाई नंगे जिस्म देखते थे। दही बड़े और चाट खाते थे। नारियल के पानी के साथ शराब मिला कर पीते थे और मीराजी को वहीं छोड़ कर वापस घर चले आते थे।
अशरफ़ कुछ अर्से8 के बाद मीराजी का बोझ महसूस करने लगा था। वो ख़ुद पीता था मगर अपनी मुक़र्ररा9 हद से आगे नहीं बढ़ता था, लेकिन मीराजी के मुतअ’ल्लिक़ उसे शिकायत थी कि वो अपनी हद से गुज़र कर एक और हद क़ाइम10 कर लेता है जिसकी कोई हद नहीं होती। बेहोश पड़ा है, मगर और माँगे जा रहा है। अपनी इस तलब का दायरा बना लेता है और भूल जाता है कि ये कहाँ से शुरू' हुई थी और इसे कहाँ ख़त्म होना था।
मुझे उसकी शराब-नोशी11 के इस पहलू का इ'ल्म12 नहीं था लेकिन एक दिन उसका तज्रबा भी हो गया जिसको याद कर के मेरा दिल आज भी अफ़्सुर्दा13 हो जाता है।
सख़्त बारिश हो रही थी जिसके बाइस बर्क़ी14 गाड़ियों की नक़्ल-ओ-हरकत15 का सिलसिला दरहम-बरहम16 हो गया था। "ख़ुश्क17 दिन" होने की वजह से शहर में शराब की दुकानें बंद थीं। मज़ाफ़ात18 में सिर्फ़ बांद्रा ही एक ऐसी जगह थी जहाँ से मुक़र्ररा दामों पर ये चीज़ मिल सकती थी। मीराजी मेरे साथ था। उसके अलावा मेरा पुराना लँगोटिया हसन अब्बास जो दिल्ली से मेरे साथ चन्द दिन गुज़ारने के लिए आया था। हम तीनों बांद्रा उतर गए और डेढ़ बोतल रम ख़रीद ली। वापस स्टेशन पर आए तो राजा मेंह्दी अली ख़ाँ मिल गया, मेरी बीवी लाहौर गई हुई थी। इसलिए प्रोग्राम ये बना कि मीराजी और राजा रात मेरे ही यहाँ रहेंगे।

1 अस्पष्ट 2 चिंता 3 दिनचर्या 4 तट 5 व्यस्तता 6 साहित्य 7 बातचीत 8 समय 9 निश्चित 10 बना लेना 11 मधपान 12 ज्ञान 13 उदास 14 बिजली से चलने वाली 15 आवागमन 16 उथल पुथल 17 सूखा 18 नगर के उस पार के क्षेत्र


एक बजे तक रम के दौर चलते रहे, बड़ी बोतल ख़त्म हो गई। राजा के लिए दो पैग काफ़ी थे, उनको ख़त्म करके वो एक कोने में बैठ गया और फ़िल्मी गीत लिखने की प्रैक्टिस करता रहा। मैं, हसन अब्बास और मीराजी पीते और फ़ुज़ूल फ़ुज़ूल1 बातें करते रहे जिनका सर था न पैर। कर्फ़्यू के बाइस बाज़ार सुनसान था। मैंने कहा अब सोना चाहिए, अब्बास और राजा ने मेरे इस फ़ैसले पर साद2 किया। मीराजी न माना। अद्धे की मौजूदगी उसके इ'ल्म3 में थी। इसलिए वो और पीना चाहता था, मा'लूम नहीं क्यों, मैं और अब्बास ज़िद में आ गए और वो अद्धा खोलने से इन्कार कर दिया। मीराजी ने पहले मिन्नतें4 कीं, फिर हुक्म देने लगा। मैं और अब्बास दोनों इन्तिहा दर्जे5 के सिफ़ले6 हो गए। हमने उससे ऐसी बातें कीं कि उनकी याद से मुझे नदामत7 महसूस होती है। लड़ झगड़ कर हम दूसरे कमरे में चले गए।
मैं सुब्ह ख़ेज़8 हूँ, सबसे पहले उठा और साथ वाले कमरे में गया। मैंने रात को राजा से कह दिया था कि वो मीराजी के लिए स्ट्रेचर बिछा दे और ख़ुद सोफ़े पर सो जाए। राजा स्ट्रेचर में लबालब9 भरा था मगर सोफ़े पर मीराजी मौजूद नहीं था। मुझे सख़्त हैरत हुई, ग़ुस्लख़ाने10 और बावर्चीख़ाने में देखा। वहाँ भी कोई नहीं था। मैंने सोचा शायद वो नाराज़गी की हालत में चला गया है। चुनांचे वाक़ियात11 मा'लूम करने के लिए मैंने राजा को जगाया। उसने बताया कि मीराजी मौजूद था। उसने ख़ुद उसे सोफ़े पर लिटाया था हम ये गुफ़्तुगू12 कर ही रहे थे कि मीराजी की आवाज़ आई, "मैं यहाँ मौजूद हूँ।"

1 बेकार 2 पसंद किया 3 ज्ञान 4 विनतियाँ 5 चरमसीमा 6 कमीने 7 पश्चात 8 सुब्ह उठने वाला 9 पूर्ण रूप से 10 स्नान घर 11 घटनाएँ 12 बातचीत


वो फ़र्श पर राजा मेह्दी अ’ली ख़ान के स्ट्रेचर के नीचे लेटा हुआ था। स्ट्रेचर उठा कर उसको बाहर निकाला गया। रात की बात हम सब के दिल-ओ-दिमाग़ में ऊद1 कर आई लेकिन किसी ने उस पर तब्सिरा2 न किया। मीराजी ने मुझसे आठ आने लिए और भारी-भरकम बरसाती उठा कर चला गया। मुझे उस पर बहुत तरस आया और अपने पर बहुत ग़ुस्सा। चुनांचे3 मैंने दिल ही दिल में ख़ुद को बहुत लानत मलामत4 की कि मैं रात को एक निकम्मी सी बात पर उसको दुख पहुँचाने का बाइस बना।
इसके बाद भी मीराजी मुझसे मिलता रहा। फ़िल्म इंडस्ट्री के हालात मुन्क़लिब5 हो जाने के बाइस मेरा हाथ तंग हो गया था। अब मैं हर रोज़ मीराजी की शराब का ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उससे कभी इसका ज़िक्र नहीं किया लेकिन उसको इ'ल्म हो गया था, चुनांचे एक दिन मुझे उससे मा'लूम हुआ कि उसने शराब छोड़ने के क़सद6 से भंग खानी शुरू' कर दी है।
भंग से मुझे सख़्त नफ़रत है। एक दो बार इस्तेमाल करने से मैं उसके ज़िल्लत आफ़रीन7 नशे और उसके रद्द-ए-अमल8 का तजुर्बा कर चुका हूँ। मैंने मीराजी से जब इसके बारे में गुफ़्तुगू की तो उसने कहा, "नहीं... मेरा ख़याल है ये नशा भी कोई बुरा नहीं, इसका अपना रंग है। अपनी कैफ़ियत9 है, अपना मिज़ाज है।"
उसने भंग के नशे की ख़ुसूसियत10 पर एक लेक्चर सा शुरू' कर दिया। अफ़्सोस है कि मुझे पूरी तरह याद नहीं कि उसने क्या कहा था। उस वक़्त मैं अपने दफ़्तर में था और आठ दिन के एक मुश्किल बाब11 की मन्ज़र नवीसी12 में मशग़ूल13 था और मेरा दिमाग़ एक वक़्त में सिर्फ़ एक काम करने का आदी है वो बातें करता रहा और मैं मनाज़िर14 सोचने में मशग़ूल रहा।

1 लौट आर्इ 2 टिप्पणी 3 अतः 4 निंदा-धिक्कार 5 अस्त व्यस्त 6 इरादे से 7 अत्यधिक घृणा 8 प्रतिक्रिया 9 स्थिति 10 विशेषता 11 अध्याय 12 पटकथा-लेखन 13 व्यस्त 14 दृश्यों


भांग पीने के बाद दिमाग़ पर क्या गुज़रती है। मुझे उसके मुतअ’ल्लिक़ सिर्फ़ इतना ही मा'लूम था कि िगर्द-ओ-पेश की चीज़ें या तो बहुत छोटी हो जाती हैं या बहुत बड़ी। आदमी हद से ज़ियादा ज़की-उल-हिस1 हो जाता है। कानों में ऐसा शोर मचता है जैसे उनमें लोहे के कारख़ाने खुल गए हैं। दरिया पानी की हल्की सी लकीर बन जाते हैं और पानी की हल्की सी लकीरें बहुत बड़े दरिया। आदमी हँसना शुरू' करे तो हँसता ही जाता है। रोए तो रोते नहीं थकता।
मीराजी ने इस नशे की जो कैफ़ियत2 बयान की वो मेरा ख़याल है उससे बहुत मुख़्तलिफ़ थी। उसने मुझे उसके मुख़्तलिफ़ मदारिज3 बताए थे, उस वक़्त जबकि वो भांग खाए हुए था। ग़ालिबन4 लहरों की बात कर रहा था... लो वह कुछ गड़बड़ सी हुई... कोई चीज़ इधर उधर की चीज़ों से मिल मिला कर ऊपर को उठी... नीचे आ गई... फिर गड़बड़ सी हुई... और... आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ने लगी... दिमाग़ की नालियों में रेंगने लगी, सरसराहाट महसूस हो रही है... पर बड़ी नर्म नर्म... पूरे ए’लान के साथ... अब ये ग़ुस्से में तब्दील हो रहा है... धीरे धीरे... हौले हौले... जैसे बिल्ली गुदगुदे पंजों पर चल रही है... ओह... ज़ोर से मियाऊँ हुई... लहर टूट गई... ग़ायब हो गई और वो चौंक पड़ता।
थोड़े वक़्फ़े5 के बाद वो फिर यही कैफ़ियत नए सिरे से महसूस करता। लो, अब फिर नून6 के ए’लान की तैयारियाँ होने लगीं। गड़बड़ शुरू' हो गई है... आस-पास की चीज़ें ये ए’लान सुनने के लिए जमा हो रही हैं। काना-फूसियाँ भी हो रही हैं... हो गया... ए’लान हो गया... नून ऊपर को उठा... आहिस्ता आहिस्ता नीचे आया... फिर वही गड़बड़...वही काना फूसियाँ... आस-पास की चीज़ों के हुजूम7 में नून ने अंगड़ाई ली और रेंगने लगा... ग़ुन्ना8 खिंच कर लम्बा होता जा रहा है... कोई उसे कूट रहा है, रुई के हथौड़ों से... ज़र्बें9 सुनाई नहीं देतीं, लेकिन उनका नन्हा मुन्ना, पर से भी हल्का लम्स10 महसूस हो रहा है... गूँ, गूँ, गूँ... जैसे बच्चा माँ का दूध पीते-पीते सो रहा है... ठहरो, दूध का बुलबुला11 बन गया है... लो वो फट भी गया... और वो फिर चौंक पड़ता।

1 जल्दी प्रभावित होने वाला 2 स्थिति 3 सीमा 4 यक़ीन से 5 देर 6 उर्दू वर्णामला का अक्षर 7 भीड़ में 8 अनुसार 9 मारना 10 छुअन 11 धनी और हक़ का छल्ला


मुझे याद है, मैंने उससे कहा था कि वो अपने इस तज्रबे, अपनी इस कैफ़ियत को अशआर1 में मिन-ओ-अ'न2 बयान करे। उसने वा'दा किया था, मा'लूम नहीं उसने इधर तवज्जो3 दी या भूल गया।
कुरेद कुरेद कर मैं किसी से कुछ पूछा नहीं करता। सरसरी गुफ़्तुगूओं4 के दौरान मीराजी से मुख़्तलिफ़5 मौज़ूओं6 पर तबादला-ए-ख़यालात7 होता था, लेकिन उसकी ज़ातियात8 कभी मारिज़-ए-गुफ़्तुगू9 में नहीं आई थीं। एक मर्तबा मा'लूम नहीं किस सिलसिले में उसकी इजाबत-ए-जिन्सी10 के ख़ास ज़रीए का ज़िक्र11 आ गया। उसने मुझे बताया। उसके लिए अब मुझे ख़ारिजी12 चीज़ों से मदद लेनी पड़ती है। मिसाल के तौर पर ऐसी टाँगें जिन पर से मैल उतारा जा रहा है... ख़ून में लिथड़ी हुई ख़ामोशियाँ...
ये सुनकर मैंने महसूस किया था कि मीराजी की ज़लालत13, अब इस इन्तिहा को पहुँच गई है कि उसे ख़ारिजी ज़राए14 की इम्दाद15 तलब16 करनी पड़ गई है। अच्छा हुआ वो जल्दी मर गया क्योंकि उसकी ज़िन्दगी के ख़राबे17 में और ज़ियादा ख़राब होने की गुन्जाइश बाक़ी नहीं रही थी। वो अगर कुछ देर से मरता तो यक़ीनन उसकी मौत भी एक दर्दनाक इब्हाम18 बन जाती।

1 पंक्तियाँ 2 ज्यों का त्यों 3 ध्यान देना 4 बातचीत 5 विभिन्न 6 विषययों 7 विचारों का उदान प्रदान 8 व्यक्तित्व 9 बातों में व्यक्त होना 10 यौन स्वीकार्यता 11 उल्लेख 12 बाहरी 13 अपमान 14 साधन 15 मदद 16 अावश्यक्ता 17 विखंडित स्थान 18 अस्पष्टता, धुंदलका

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Ganje Farishte - Manto

तीन गोले

हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे, मैं ग़ौर से उनकी तरफ़ देख रहा था और मीराजी की बातें सुन रहा था। उस शख़्स को पहली बार मैंने यहीं देखा। ग़ालिबन1 सन चालीस था। बंबई छोड़ कर मुझे दिल्ली आए कोई ज़ियादा अ’र्सा2 नहीं गुज़रा था। मुझे याद नहीं कि वो फ़्लैट नंबर एक वालों का दोस्त था या ऐसे ही चला आया था लेकिन मुझे इतना याद है कि उसने ये कहा था कि उसको रेडियो स्टेशन से पता चला था कि मैं निकल्सन रोड पर सआ’दत हसन बिल्डिंग्स में रहता हूँ।
इस मुलाक़ात से क़ब्ल3 मेरे और उसके दर्मियान मा’मूली सी ख़त-ओ-किताबत4 हो चुकी थी। मैं बंबई में था जब उसने अदबी दुनिया5 के लिए मुझसे एक अफ़्साना6 तलब7 किया था। मैंने उसकी ख़्वाहिश8 के मुताबिक़9 अफ़्साना भेज दिया लेकिन साथ ही ये भी लिख दिया कि इसका मुआ’वज़ा10 मुझे ज़रूर मिलना चाहिए। इसके जवाब में उसने एक ख़त लिखा कि मैं अफ़्साना वापस भेज रहा हूँ इसलिए कि "अदबी दुनिया" के मालिक मुफ़्तख़ोर11 क़िस्म के आदमी हैं। अफ़्साने का नाम "मौसम की शरारत" था। इस पर उसने ए’तिराज़12 किया था कि इस शरारत का मौज़ू’13 से कोई तअ’ल्लुक़ नहीं इसलिए इसे तब्दील कर दिया जाए। मैंने उसके जवाब में उसको लिखा कि मौसम की शरारत ही अफ़्साने का मौज़ू है। मुझे हैरत14 है कि ये तुम्हें क्यों नज़र न आई। मीराजी का दूसरा ख़त आया जिसमें उसने अपनी ग़लती तस्लीम15 कर ली और अपनी हैरत का इज़्हार16 किया कि मौसम की शरारत वो मौसम की शरारत में क्यों देख न सका।

1 लगभग, संभवत: 2 समय, दूरी 3 पूर्व 4 पत्र, कवाहत 5 पत्रिका का नाम 6 कहानी 7 माँगा 8 इच्छा 9 अनुसार 10 पारिश्रमिक 11 मुफ़्त खाने वाला 12 आपत्ति 13 विषय 14 आश्चर्य 15 मान ली 16 व्यक्त करना, प्रदर्शित करना


मीराजी की लिखाई बहुत साफ़ और वाज़ेह1 थी। मोटे ख़त के निब से निकले हुए बड़े सही नशिस्त2 के हुरूफ़,3 तिकोन की सी आसानी से बने हुए, हर जोड़ नुमायाँ,4 मैं उससे बहुत मुतअ’स्सिर5 हुआ था लेकिन अ'जीब बात है कि मुझे उसमें मौलाना हामिद अली ख़ाँ मुदीर6 हुमायूँ7 की ख़त्ताती8 की झलक नज़र आई। ये हल्की सी मगर काफ़ी मरई9 मुमासिलत-ओ-मुशाबिहत10 अपने अंदर क्या गहराई रखती है इसके मुतअ’ल्लिक़ मैं अब भी ग़ौर करता हूँ तो मुझे ऐसा कोई शोशा11 या नुक्ता12 सुझाई नहीं देता जिस पर मैं किसी मफ़रुज़े13 की बुनियादें खड़ी कर सकूँ।
हसन बिल्डिंग्स के फ़्लैट नंबर एक में तीन गोले मेरे सामने मेज़ पर पड़े थे और मीराजी तुम-तड़ंगे और गोल-मटोल शेर कहने वाला शाइ’र मुझसे बड़े सही क़द-ओ-क़ामत14 और बड़ी सही नोक पलक की बातें कर रहा था जो मेरे अफ़्सानों के मुतअ’ल्लिक़ थीं। वो ता'रीफ़ कर रहा था न तन्क़ीस15। एक मुख़्तसर16 सा तब्सिरा17 था। एक सरसरी18 सी तन्क़ीद19 थी मगर उससे पता चलता था कि मीराजी के दिमाग़ में मकड़ी के जाले नहीं। उसकी बातों में उलझाव नहीं था और ये चीज़ मेरे लिए बाइस-ए-हैरत20 थी, इसलिए कि उसकी अक्सर नज़्में इब्हाम21 और उलझाव की वजह से हमेशा मेरी फ़हम22 से बालातर23 रही थीं लेकिन शक्ल-ओ-सूरत और वज़ा' क़ता'24 के ए'तिबार से वो बिल्कुल ऐसा ही था जैसा कि उसका बेक़ाफ़िया25 मुब्हम26 कलाम27। उसको देख कर उसकी शाइ'री मेरे लिए और भी पेचीदा28 हो गई।

1 स्पष्ट 2 हालत 3 अक्षर, बहुवचन 4 देखने वाला 5 प्रभवित 6 संपादक 7 पत्रिका का नाम 8 सुलेखकला, विद्या 9 दिखने वाली 10 समानता 11 टुकड़ा 12 बिन्दु 13 परिक्लाना 14 लम्बार्इ-चौड़ार्इ 15 कमी निकालना 16 छोटा 17 समीक्षा 18 कम महत्व रखाने वाली 19 आलोचना 20 आश्चर्य का कारण 21 अस्पष्ट 22 समझ 23 ऊपर 24 पहनावा 25 क़ाफ़िया रहित 26 धुंधलकापूर्ण 27 काथा 28 जटिल


नून मीम राशिद बे क़ाफ़िया शाइ'री का इमाम माना जाता है। उसको देखने का इत्तिफ़ाक़ भी दिल्ली में हुआ था। उसका कलाम मेरी समझ में आ जाता था और उसको एक नज़र देखने से उसकी शक्ल-ओ-सूरत भी मेरी समझ में आ गई। चुनांचे1 एक बार मैंने रेडियो स्टेशन के बरामदे में पड़ी हुई बग़ैर मड्गार्डों की साईकिल देख कर उससे अज़2 राह-ए-मज़ाक़3 कहा था, "लो, ये तुम हो और तुम्हारी शाइ'री।" लेकिन मीराजी को देख कर मेरे ज़ेहन4 में सिवाए उसकी मुब्हम5 नज़्मों के और कोई शक्ल नहीं बनती थी।
मेरे सामने मेज़ पर तीन गोले पड़े थे। तीन आहनी6 गोले। सिगरेट की पन्नियों में लिपटे हुए। दो बड़े एक छोटा। मैंने मीराजी की तरफ़ देखा। उसकी आँखें चमक रही थीं और उनके ऊपर उसका बड़ा भूरे बालों से अटा हुआ सर... ये भी तीन गोले थे। दो छोटे छोटे, एक बड़ा। मैंने ये मुमासिलत7 महसूस की तो उसका रद्द-ए-अ'मल8 मेरे होंठों पर मुस्कुराहट में नुमूदार9 हुआ। मीराजी दूसरों का रद्द-ए-अमल ताेड़ने में बड़ा होशियार था। उसने फ़ौरन10 अपनी शुरू'' की हुई बात अधूरी छोड़कर मुझसे पूछा, "क्यों भय्या, किस बात पर मुस्कुराए?"
मैंने मेज़ पर पड़े हुए उन तीन गोलों की तरफ़ इशारा किया। अब मीराजी की बारी थी। उसके पतले पतले होंट महीन महीन भूरी मूंछों के नीचे गोल गोल अन्दाज़ में मुस्कुराए।
उसके गले में मोटे-मोटे गोल मनकों की माला थी जिसका सिर्फ़ बालाई11 हिस्सा क़मीज़12 के खुले हुए काॅलर से नज़र आता था... मैंने सोचा। इस इन्सान ने अपनी क्या हैयत13 कुज़ाई14 बना रखी है... लम्बे-लम्बे ग़लीज़15 बाल जो गर्दन से नीचे लटकते थे। फ़्रैंच कट सी दाढ़ी। मैल से भरे हुए नाख़ुन। सर्दियों के दिन थे। ऐसा मा'लूम होता था कि महीनों से उसके बदन ने पानी की शक्ल नहीं देखी।

1 इसलिए, अतः 2 से 3 मज़ाक़ के रूप में 4 मस्तिष्क 5 अस्पष्ट 6 लोहे के 7 समानता 8 प्रतिक्रिया 9 दिखा 10 तुरन्त 11 ऊपरी 12 कुर्ता 13 रूप 14 वैसी ही, वैसा रूप 15 गंदे


ये उस ज़माने की बात है जब शाइ'र, अदीब और एडिटर आम तौर पर लॉन्ड्री में नंगे बैठ कर डबल रेट पर अपने कपड़े धुलवाया करते थे और बड़ी मैली कुचैली ज़िन्दगी बसर करते थे, मैंने सोचा, शायद मीराजी भी उसी क़िस्म का शाइर और एडिटर है लेकिन उसकी ग़लाज़त। उसके लम्बे बाल, उसकी फ़्रैंच कट दाढ़ी। गले की माला और वो तीन आहनी1 गोले... मआशी2 हालात के मज़हर3 मा'लूम नहीं होते थे। उनमें एक दरवेशाना4-पन था। एक क़िस्म की राहबियत5... जब मैंने राहबियत के मुतअ’ल्लिक़ सोचा तो मेरा दिमाग़ रूस के दीवाने राहिब रास्पोतिन की तरफ़ चला गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि वो बहुत ग़लाज़त पसंद6 था। बल्कि यूँ कहना चाहिए कि ग़लाज़त का उसको कोई एहसास ही नहीं था। उसके नाख़ुनों में भी हर वक़्त मैल भरा रहता था। खाना खाने के बाद उसकी उँगलियाँ लिथड़ी होती थीं। जब उसे उनकी सफ़ाई मत्लूब7 होती तो वो अपनी हथेली शहज़ादियों8 और रईस-ज़ादियों9 की तरफ़ बढ़ा देता जो उनकी तमाम आलूदगी10 अपनी ज़बान से चाट लेती थीं।
क्या मीराजी इसी क़िस्म का दरवेश11 और राहिब था? ये सवाल उस वक़्त और बाद में कई बार मेरे दिमाग़ में पैदा हुआ, मैं अमृतसर में साईं घोड़े शाह को देख चुका था जो अलिफ़ नंगा12 रहता था और कभी नहाता नहीं था। इसी तरह के और भी कई साईं और दरवेश मेरी नज़र से गुज़र चुके थे जो ग़लाज़त आग के पुतले थे मगर उनसे मुझे घिन आती थी। मीराजी की ग़लाज़त से मुझे नफ़रत कभी नहीं हुई। उलझन अलबत्ता बहुत होती थी।
घोड़े शाह की क़बील13 के साईं आम तौर पर ब-क़द्र-ए-तौफ़ीक़ मुग़ल्लिज़ात14 बकते हैं मगर मीराजी के मुँह से मैंने कभी कोई ग़लीज़ कलिमा15 न सुना। इस क़िस्म के साईं ब ज़ाहिर मुजर्रिद16 (मुजर्रद) मगर दरपर्दा17 हर क़िस्म के जिन्सी फे़अ’ल18 के मुर्तक़िब19 होते हैं।

1 लोहे के 2 आर्थिक 3 अभिव्यक्ति 4 दरवेशों जैसा 5 वह र्इसार्इ पुरुष जो संसारिक दुखों से नितृत्त हो चुका हो उसी से संबंधित 6 गन्दगी-प्रिय 7 मनोनित 8 राजकुमानियाँ 9 धनी युवितयाँ 10 गन्दगी 11 साधू 12 पूरानंगा13 समूह 14 जान बूझकर गन्दी बातें करना 15 वाक्य 16 नंगे 17 पर्दे के पीछे 18 क्रिया 19 पाप करने वाला


मीराजी भी मुजर्रिद था मगर उसने अपनी जिन्सी तस्कीन के लिए सिर्फ़ अपने दिल-ओ-दिमाग़ को अपना शरीक-ए-कार बना लिया था। इस लिहाज़ से गो उसमें और घोड़े शाह की क़बील के साइयों में एक गो ना-मुमासिलत थी मगर वो उनसे बहुत मुख़्तलिफ़ था। वो तीन गोले था... जिनको लुढ़काने के लिए उसको किसी ख़ारिजी मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। हाथ की ज़रा सी हरकत और तख़य्युल1 की हल्की सी जुम्बिश2 से वो उन तीन जाम3 को ऊँची और ऊँची बुलन्दी और नीची से नीची गहराई की सैर करा सकता था और ये गुर उसकी इन्हीं तीन गोलों ने बताया था जो ग़ालिबन4 उसको कहीं पड़े हुए मिले थे। इन ख़ारिजी5 इशारों ही ने उस पर एक अज़ली6-ओ-अबदी7 हक़ीक़त को मुनकशिफ़8 किया था। हुस्न इ'श्क़ और मौत... इस तस्लीस9 के तमाम अक़लीदसी10 ज़ाविए11 सिर्फ़ उन तीन गोलों की बदौलत12 उसकी समझ में आए थे लेकिन हुस्न और इ'श्क़ के अन्जाम को

चूँकि13 उसने शिकस्त ख़ूर्दा14 ऐनक से देखा था। सही नहीं थी। यही वजह है कि उसके सारे वजूद15 में एक नाक़ाबिल16-ए-बयान17 इब्हाम18 का ज़हर फैल गया था। जो एक नुक़्ते19 से शुरू'' हो कर एक दायरे20 में तब्दील हो गया था। इस तौर21 पर कि उसका हर नुक़्ता उसका नुक़्ता-ए-आग़ाज़22 है और वही नुक़्ता-ए-अन्जाम। यही वजह है कि उसका इब्हाम नोकीला नहीं था। उसका रुख़23 मौत की तरफ़ था न ज़िन्दगी की तरफ़। रज़ाइयत24 की सिम्त25, न क़ुनूतियत26 की जानिब27। उसने आग़ाज़28 और अन्जाम को अपनी मुट्ठी में इस ज़ोर से भींच रखा था कि उन दोनों का लहू निचुड़ निचुड़ कर उसमें से टपकता रहता था लेकिन सादियत29 पसंदों की तरह वो उससे मसरूर30 नज़र नहीं आता था। यहाँ फिर उसके जज़्बात गोल हो जाते थे। तीन उन आहनी31 गोलों की तरह, जिनको मैंने पहली मर्तबा हसन बिल्डिंग्ज़ के फ़्लैट नंबर एक में देखा था।
उसके शे'र का एक मिसरा' है:
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

1 कल्पनालोक 2 हिलना 3 शराब का पात्र 4 यक़ीन से 5 बाहरी 6 अनादि एवं अनंत 7 अनन्त 8 खोलना 9 तीन भाग 10 महक 11 कोण 12 के कारण 13 क्योंकि 14 हारा हुआ 15 अस्तित्व 16 जो व्यक्त करने योग्य न हो 17 अभिव्यक्ति 18 अस्पष्टता 19 बिन्दु 20 परिधी 21 इस रूप में 22 आरम्भ का बिन्दु 23 दिशा 24 आशा 25 दिशा 26 ना-उम्मीदी 27 की ओर 28 आरम्भ 29 स्वंय की पीड़ा देने वालों 30 आनंदित 31 लोहे के


मुसाफ़िर को रस्ता भूलना ही था। इसलिए कि उसने चलते वक़्त नुक़्ता-ए-आग़ाज़ पर कोई निशान नहीं बनाया था। अपने बनाए हुए दायरे के ख़त के साथ साथ घूमता वो यक़ीनन कई बार इधर से गुज़रा मगर उसे याद न रहा कि उसने अपना ये तवील1 सफ़र कहाँ से शुरू'' किया था और मैं तो समझता हूँ कि मेरा जी ये भूल गया था कि वो मुसाफ़िर है, सफ़र है या रास्ता। ये तस्लीस2 भी उसके दिल-ओ-दिमाग़ के ख़लियों3 में दायरे4 की शक्ल इख़्तियार कर गई थी।
उसने एक लड़की मीरा से मोहब्बत की और वो सनाउल्लाह से मीराजी बन गया। उसी मीरा के नाम की रिआ'यत5 से उसने मीरा बाई के कलाम6 को पसंद करना शुरू'' कर दिया। जब अपनी उस महबूबा का जिस्म मयस्सर7 न आया तो कूज़ागर8 की तरह चाक घुमा कर अपने तख़य्युल9 की मिट्टी से शुरू'’-शुरू'’ में इसी शक्ल-ओ-सूरत के जिस्म तैयार करने शुरू'' कर दिए लेकिन बा'द में आहिस्ता-आहिस्ता उस जिस्म की साख़्त10 के तमाम मुमय्यज़ात11, उसकी तमाम नुमायाँ12 ख़ुसूसियतें13 तेज़ रफ़्तार चाक पर घूम घूम कर नित नई हैयत14 इख़्तियार करती गईं और एक वक़्त ऐसा आया कि मीराजी के हाथ, उसके तख़य्युल की नर्म नर्म मिट्टी और चाक, मुतवातिर15 गर्दिश16 से बिल्कुल गोल हो गए। कोई भी टाँग मीरा की टाँग हो सकती थी। कोई भी चीथड़ा मीरा का पैराहन17 बन सकता था। कोई भी रहगुज़र18 मीरा की रहगुज़र में तब्दील हो सकती थी और इन्तिहा ये हुई कि तख़य्युल की नर्म नर्म मिट्टी की सोंधी सोंधी बास सड़ांद बन गई और वो शक्ल देने से पहले ही उसको चाक से उतारने लगा।

1लम्बा 2 तीन काम करना 3 अन्तर्ग्रथन 4 परिधि 5 विचार 6 काव्य 7 मिलना 8 कुम्हार 9 कल्पना 10 बनावट 11 तमीज़ करनेवाली चीज़ें या उमूर 12 दिखने वाली 13 विशेषताएँ 14 रूप 15 लगातार 16 भटकन 17 कुर्ता 18 रास्ता


पहले मीरा बुलन्द नाम महलों में रहती थी। मीराजी ऐसा भटका कि रास्ता भूल कर उसने नीचे उतरना शुरू'' कर दिया। उसको इस गिरावट का मुतलक़न1 एहसास न था। इसलिए कि उतराई में हर क़दम पर मीरा का तख़य्युल उसके साथ था जो उसके जूते के तलवों की तरह घिसता गया। पहले मीरा आम महबूबाओं की तरह बड़ी ख़ूबसूरत थी लेकिन ये ख़ूबसूरती हर निस्वानी2 पोशाक में मलबूस3 देख देख कर कुछ इस तौर पर उस दिल के दिल-ओ-दिमाग़ में मस्ख़4 हो गई थी कि उसके सही तसव्वुर की अलम-नाक5 जुदाई का भी मीरा को एहसास न था। अगर एहसास होता तो इतने बड़े अलमिये6 के जुलूस7 के चन्द ग़ैर मुब्हम8 निशानात उसके कलाम9 में यक़ीनन मौजूद होते जो मीरा से मोहब्बत करते ही उसके दिल-ओ-दिमाग़ में से निकलना शुरू' हो गया था।
हुस्न, इश्क़ और मौत। ये तिकोन पिचक कर मीराजी के वजूद में गोल हो गई थी। सिर्फ़ यही नहीं दुनिया की हर मुसल्लस10 उसके दिल-ओ-दिमाग़ में मुदव्वर11 हो गई थी। यही वजह है कि उसके अरकान-ए-सलासा12 कुछ इस तरह आप में गड्ड-मड्ड हो गए थे कि उनकी तर्तीब दरहम-बरहम13 हो गई थी। कभी मौत पहले हुस्न आख़िर और इ'श्क़ दर्मियान में। कभी इ'श्क़ पहले मौत उसके बा'द और हुस्न आख़िर में और ये चक्कर ना-महसूस तौर पर चलता रहता था।
किसी भी औ'रत से इ'श्क़ किया जाए तिगड्डा एक ही क़िस्म का बनता है। हुस्न, इ'श्क़ और मौत। आ'शिक़, मा'शूक़ और वस्ल14। मीरा से सनाउल्लाह का विसाल15 जैसा कि जानने वालों को मा'लूम है, न हुआ या न हो सका। इस न होने या न हो सकने का रद्द-ए-अमल16 मीराजी था। उसने इस मु'आशक़े17 में शिकस्त18 खा कर इस तस्लीस19 के टुकड़ों को इस तरह जोड़ा था कि उनमें एक सालमियत20 तो आ गई थी मगर असलियत मस्ख़ हो गई थी। वो तीन नोकें जिनका रुख़ ख़त्त-ए-मुस्तक़ीम21 में एक दूसरे की तरफ़ होता है, दब गईं थीं। विसाल-ए-महबूब22 के लिए अब ये लाज़िम23 नहीं था कि महबूब मौजूद हो। वो ख़ुद ही आ'शिक़ था ख़ुद ही माशूक़ और ख़ुद ही विसाल।

1 बिल्कुल 2 स्त्री संबंधी 3 पहने हुए 4 विकृति 5 दुखदायक 6 दुख 7 इकट्ठे निकलना 8 अस्पष्ट 9 काव्य 10 तीन भागों वाली वस्तुएँ 11 परिधि जैसी गोल बनना 12 तीन आयाम 13 उथल-पुथल होना 14 मिलाप 15 प्रेमी प्रेमिका का िमलन 16 प्रतिक्रिया 17 प्रेम-लीला 18 हार 19 तीन भाग 20 पूर्णता 21 सीधी रेखा 22 प्रेमी से िमलन होना 23 आवश्यक


मुझे मा'लूम नहीं उसने लोहे के ये गोले कहाँ से लिये थे। ख़ुद हासिल किए थे या कहीं पड़े हुए मिल गए थे। मुझे याद है, एक मर्तबा उनके मुतअ’ल्लिक़ मैंने बंबई में उससे इस्तिफ़्सार1 किया था तो उसने सरसरी तौर पर इतना कहा था, "मैंने ये ख़ुद पैदा नहीं किए, अपने आप पैदा हो गए हैं।"
फिर उसने उस गोले की तरफ़ इशारा किया था जो सबसे बड़ा था। पहले ये वजूद में आया। उसके बाद ये दूसरा जो उससे छोटा है उसके पीछे ये कोचक!
मैंने मुस्कुरा कर उससे कहा था, "बड़े तो बावा आदम अलैहिस सलाम हुए। ख़ुदा उनको वो जन्नत नसीब करे जिससे वो निकाले गए थे... दूसरे को हम अम्माँ हव्वा कह लेते हैं और तीसरे को उनकी औलाद!"
मेरी इस बात पर मीराजी ख़ूब खुल कर हँसा था। मैं अब सोचता हूँ तो मुझे तो उन तीन गोलों पर सारी दुनिया घूमती नज़र आती है। तस्लीस2 क्या तख़्लीक़3 का दूसरा नाम नहीं? वो तमाम मुसल्लसें4 जो हमारी ज़िन्दगी की अक़्लीदस5 में मौजूद हैं। क्या उनमें इन्सान की तख़्लीक़ी कुव्वतों का निशान नहीं है?
ख़ुदा, बेटा और रूहुल-ए-क़ुदुस,6 ईसाइयत के अक़ानीम7 त्रिशूल, महादेव कासा शाख़ा भाला... तीन देवता। ब्रह्मा, विष्णु, त्रिलोक... आसमान ज़मीन और पाताल। ख़ुश्की,8 तरी9 और हवा तीन बुनियादी रंग सुर्ख़,10 नीला और ज़र्द11। फिर हमारे रुसूम और मज़हबी अहकाम,12 ये तीजे13। सोइम14 और तलीन्डियाँ। वुज़ू में तीन मर्तबा हाथ मुँह धोने की शर्त, तीन तलाक़ें और सेह गूना मुआ’नक़े15 और जुए में नर्द बाज़ी16 के तीन पाँसों के तीन नुक़्ते यानी तीन काने। मौसीक़ी के तिये हयात-ए-इन्सानी17 के मलबे को अगर खोद कर देखा जाए तो मेरा ख़याल है, ऐसी कई तस्लीसें मिल जाएँगी इसलिए कि उसके तवल्लुद-18ओ-तनासुल19 के अफ़आ’ल20 का मह्वर21 भी आ'ज़ा-ए-सलासा22 है।

1 प्रश्न, पूछताछ 2 तीन भाग 3 रचना 4 तीन भागों में त्रिकोण 5 महान ज्ञनानी गणित 6 हज़रत जिबरर्इल 7 बहुवचन 9 सूखापन 10 ज़मीन के नीचे 11 लाल रंग 12 पीला 12 आदेश 13 मृत्यु का तीसरा दिन 14 तीसरा दिन मृत्यु के बा'द 15 तीन बार गले मिलना 16 चौसर का खेल 17 संगीत 18 इन्सान का जीवन 19 उत्पन्न होना 20 नस्ल बढ़ना 26 कार्य 21 केंद्र 22 तीन अंग 23 आकृतियाँ


अक़्लीदस में मुसल्लस बहुत अहम हैसियत रखती है। दूसरी अश्काल के मुक़ाबले में ये ऐसी कट्टर और बे लोच शक्ल है जिसे आप किसी और शक्ल में तब्दील नहीं कर सकते लेकिन मीराजी ने अपने दिल-ओ-दिमाग़ और जिस्म में इस सुकून को जिसका ज़िक्र ऊपर हो चुका है कुछ इस तरह दबाया कि उसके रुक्न1 अपनी जगहों से हट गए। जिसका नतीजा ये हुआ कि आस-पास की दूसरी चीज़ें भी उस तिकोन के साथ मस्ख़2 हो गईं और मीराजी की शाइरी ज़ुहूर3 में आई।
पहली मुलाक़ात ही में मेरी उसकी बे-तकल्लुफ़ी4 हो गई थी। उसने मुझे दिल्ली में बताया कि उसकी जिन्सी इजाबत5 आम तौर पर रेडियो स्टेशन के स्टूडियोज़ में होती है जब ये कमरे ख़ाली होते थे तो वो बड़े इत्मिनान से अपनी हाजत-ए-रफ़ा6 (हाजत रफ़ा) कर लिया करता था। उसकी ये जिन्सी ज़लालत7 ही, जहाँ तक मैं समझता हूँ उसकी मुब्हम8 मन्ज़ूमात9 का बाइस है वर्ना जैसा कि मैं पहले बयान कर चुका हूँ। आम गुफ़्तुगू में वो बड़ा वाज़ेह10 दिमाग़ था। वो चाहता था कि जो कुछ उस पर बीती है अशआ'र11 में बयान हो जाए मगर मुसीबत ये थी कि जो मुसीबत उस पर टूटी थी, उसको उसने बड़े बे-ढंगे तरीक़े से जोड़ कर अपनी निगाहों के सामने रक्खा था। उसको इसका इ'ल्म था। इस ज़िम्न12 में वो अपनी बेचारगी अच्छी तरह महसूस करता था लेकिन आम आदमियों की तरह उसने अपनी इस कमज़ोरी को अपना ख़ास रंग बनाने की कोशिश की और आहिस्ता-आहिस्ता इस मीरा को भी अपनी गुमराही13 की सूली पर चढ़ा दिया।
ब-हैसियत शाइ'र के उसकी हैसियत वही है जो गले-सड़े पत्तों की होती है। जिसे खाद के तौर पर इस्ति'माल किया जा सकता है। मैं समझता हूँ उसका कलाम14 बड़ी उम्दा15 खाद है जिसकी इफ़ादियत16 एक न एक दिन ज़रूर ज़ाहिर हो के रहेगी। उसकी शाइ'री एक गुमराह इन्सान का कलाम है जो इन्सानियत की अमीक़ तरीन17 पस्तियों18 से मुतअ’ल्लिक़ होने के बावजूद दूसरे इन्सानों के लिए ऊँची फ़िज़ाओं19 में मर्ग-ए-बाद-नुमा20 का काम दे सकता है। उसका कलाम21 एक "जिग्सा पज़ल" है जिसके टुकड़े बड़े इत्मिनान और सुकून से जोड़ कर देखने चाहिए।

1 स्तंभ 2 विकृति 3 प्रकट होना 4 एक-दूसरे से खुल जाना 5 स्वीकृति 6 शौच 7 अपमान 8 अस्पष्ट 9 कविताएँ 10 स्पष्ट 11 पंक्तियाँ 12 अंतर्गत 13 राह से भटकना 14 काव्य 15 अच्छी 16 लाभ होना 17 अत्यधिक गहरी 18 तलों 19 वातावरण 20 वह आदमी जो समय और परिस्थितियों के साथ बदल जाता है 21 काव्य


ब-हैसियत इन्सान के वो बड़ा दिलचस्प था। परले दर्जे1 का मुख़्लिस2 जिसको अपनी इस क़रीब-क़रीब नायाब3 सिफ़त4 का मुतलक़न5 एहसास नहीं था। मेरा ज़ाती ख़याल है कि वो अश्ख़ास6 जो अपनी ख़्वाहिशात-ए-जिस्मानी7 का फ़ैसला अपने हाथों को सौंप देते हैं, आम तौर पर इसी क़िस्म के मुख़लिस होते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि वो ख़ुद को सरीहन8 धोका देते हैं मगर इस फ़रेब-दही9 में जो ख़ुलूस10 होता है, वो ज़ाहिर है।
मीरा जी ने शाइ'री की, बड़े ख़ुलूस के साथ। शराब पी, बड़े ख़ुलूस के साथ, भांग पी, वो भी बड़े ख़ुलूस के साथ। लोगों से दोस्ती की, और उसे निभाया। अपनी ज़िन्दगी की एक अ'ज़ीम तरीन11 ख़्वाहिश को जुल12 देने के बाद वो किसी और से धोका-फ़रेब करने का अह्ल13 ही नहीं रहा था उस अह्लियत14 के इख़राज15 के बा'द वो इस क़दर16 बेज़रर17 हो गया था कि बे-मसरफ़18 सा मा'लूम होता था। एक भटका हुआ मुसाफ़िर जो नगरी नगरी फिर रहा है। मन्ज़िलें क़दम क़दम पर अपनी आग़ोश19 उसके लिए वा20 करती हैं, मगर वो उनकी तरफ़ देखे बग़ैर आगे निकलता जा रहा है। किसी ऐसी जगह, जिसकी कोई सिम्त21 है न रक़्बा22। एक ऐसी तिकोन की जानिब जिसके अरकान23 अपनी जगह से हट कर तीन दायरों24 की शक्ल में उसके गिर्द घूम रहे हैं।
मैंने मीराजी से उसके कलाम के मुतअ'ल्लिक़ दो तीन जुमलों से ज़ियादा कभी गुफ़्तुगू नहीं की, मैं उसे बकवास कहा करता था और वो उसे तस्लीम करता था। उन तीन गोलों और मोटे मोटे दानों की माला को मैं उसका फ़्रॉड कहता था, उसे भी वो तस्लीम करता था। हालाँकि हम दोनों जानते थे कि ये चीज़ें फ़्रॉड नहीं हैं।

1 बहुत अधिक 2 सज्जन 3 अप्राप्य 4 विशेषता के लिए प्रयुक्त 5 नितांत 6 व्यक्ति 7 शारीरिक कामनाएँ 8 खुल्लम खुल्ला 9 धोका देना 10 प्रेम भाव 11 महानतम 12 धोका देना 13 योग्य 14 योग्यता 15 बाहर निकालना 16 इतना अधिक 17 भोला 18 निरर्थक, बेकार 19 आलिंगम 20 खोलना 21 दिशा 22 क्षेत्र 23 खंभे (बहुवचन) 24 वृत्त / परिधि

एक दफ़ा1 उसके हाथ में तीन के बजाए दो गोले देख कर मुझे बहुत तअ'ज्जुब2 हुआ, मैं ने जब इसका इज़्हार किया तो मीराजी ने कहा, "बरखु़र्दार3 का इंतिक़ाल4 हो गया है मगर अपने वक़्त पर एक और पैदा हो जाएगा!"
मैं जब तक बंबई में रहा, ये दूसरा बरखु़र्दार पैदा न हुआ। या तो अम्माँ हव्वा5 अक़ीम6 हो गई थी या बावा आदम7 मर्दुम-ख़ेज़8 नहीं रहे थे। ये रही-सही ख़ारिजी9 तस्लीस10 भी टूट गई थी और ये बुरी फ़'अ'आल11 थी। बा'द में मुझे मा'लूम हुआ कि मीराजी को इसका एहसास था, चुनांचे जैसा कि सुनने में आया है, उसने उसके बाक़ी के उक़्नूम12 भी अपने हाथ से अलाहिदा13 कर दिए थे।
मुझे मा'लूम नहीं मीराजी घूमता-घामता कब बंबई पहुँचा, मैं उन दिनों फिल्मिस्तान में था। जब वो मुझसे मिलने के लिए आया बहुत ख़स्ता-हालत14 में था, हाथ में तीन गोले बदस्तूर15 मौजूद थे। बोसीदा16 सी कॉपी भी थी। जिसमें ग़ालिबन17 मीरा बाई का कलाम18 उसने अपने हाथ से लिखा हुआ था। साथ ही एक अ'जीब शक्ल की बोतल थी जिसकी गर्दन मुड़ी हुई थी, उसमें मीराजी ने शराब डाल रक्खी थी, ब-वक़्त-ए-तलब19 वो उसका काग खोलता और एक घूँट चढ़ा लेता था।
दाढ़ी ग़ायब थी, सर के बाल बहुत हल्के थे, मगर बदन की ग़लाज़त20 बदस्तूर मौजूद। चप्पल का एक पैर दुरुस्त हालत में था, दूसरा मरम्मत21 तलब22 था। ये कमी उसने पाँव पर रस्सी बाँध कर रक्खी थी।

1 बार 2 आश्चर्य 3 प्रसन्न 4 मृत्यु 5 आदम की पत्नी 6 बाँझ 7 प्रथम पैग़म्बर 8 संतानोत्पत्ति करने योग्य 9 बाहरी 10 तीन भागों की त्रिभुज 11 पूर्वानुमान 12 नींव 13 अलग 14 पतली स्थिति 15 पहले की तरह 16 पुरानी 17 संभवतः 18 माव्य 19 आवश्यकताके समय 20 गन्दगी 21 सही 22 खोज


थोड़ी देर इधर उधर की बातें हुईं, उन दिनों ग़ालिबन आठ दिन की शूटिंग हो रही थी। उसकी कहानी मेरी थी जिस के लिए दो एक गानों की ज़रूरत थी। मैंने इस ख़याल से कि मीराजी को कुछ रुपये मिल जाएँ, उससे ये गाने लिखने के लिए कहा जो उसने वहीं बैठे-बैठे लिख दिए मगर खड़े खड़े क़िस्म के निहायत1 वाहियात2 जो यकसर3 ग़ैर फ़िल्मी थे। मैंने जब उसको अपना फ़ैसला सुनाया तो वो ख़ामोश रहा। वापस जाते हुए उसने मुझसे सात रुपये तलब किए कि उसे एक अद्धा4 लेना था।
उसके बाद बहुत देर तक उसको हर रोज़ साढे़ सात रुपये देना मेरा फ़र्ज़ हो गया। मैं ख़ुद बोतल का रसिया था। ये मुँह न लगे तो जी पर क्या गुज़रती है इसका मुझे बख़ूबी इ'ल्म था। इसलिए मैं इस रक़म का इन्तिज़ाम कर रखता। सात रुपये में रम का अद्धा आता था, बाक़ी आठ आने उसके आने-जाने के लिए होते थे।
बारिशों का मौसम आया तो उसे बड़ी दिक़्क़त महसूस हुई। बंबई में इतनी शदीद5 बारिश होती है कि आदमी की हड्डियाँ तक भीग जाती हैं। उसके पास फ़ालतू कपड़े नहीं थे। इसलिए ये मौसम उसके लिए और भी ज़ियादा तकलीफ़-देह6 था। इत्तिफ़ाक़ से मेरे पास एक बरसाती थी जो मेरा एक हट्टा-कट्टा फ़ौजी दोस्त सिर्फ़ इसलिए मेरे घर भूल गया था कि वो बहुत वज़्नी7 थी और उसके कंधे शल8 कर देती थी। मैंने उसका ज़िक्र मीराजी से किया और उसके वज़्न से भी उसको आगाह9 कर दिया। मीराजी ने कहा, "कोई परवाह नहीं, मेरे कंधे उसका बोझ बर्दाश्त कर लेंगे!" चुनांचे मैंने वो बरसाती उसके हवाले कर दी जो सारी बरसात उसके कंधों पर रही।
मरहूम10 को समुन्दर से बहुत दिलचस्पी थी। मेरा एक दूर का रिश्तेदार अशरफ़ है वो उन दिनों पायलट था जुहू में समुन्दर के किनारे रहता था। ये मीराजी का दोस्त था मा'लूम नहीं उनकी दोस्ती की बिना क्या थी, क्योंकि अशरफ़ को शेर-ओ-शाइ'री से दूर का वास्ता भी नहीं है। बहरहाल मीराजी उसके यहाँ रहता था और दिन को उसके हिसाब में पीता था।

1 अधिक 2 बेकार 3 बिल्कुल 4 शराब 5 प्रचंड 6 पीड़ादायक 7 भारी 8 सुन्न 9 जागरुक 10 स्वर्गीय


अशरफ़ जब अपने झोंपड़े में नहीं होता था तो मीराजी साहिल की नर्म नर्म और गीली गीली रेत पर वो बरसाती बिछाकर लेट जाता और मुब्हम1 शेर-ओ-फ़िक्र2 किया करता था।
उन दिनों हर इतवार को जुहू जाना और दिन भर पीना मेरा मा'मूल3 सा हो गया था। दो-तीन दोस्त इकट्ठे हो कर सुबह निकल जाते और सारा दिन साहिल4 पर गुज़ारते। मीराजी वहीं मिल जाता। ऊट-पटाँग क़िस्म के मशाग़िल5 रहते, हमने इस दौरान शायद ही कभी अदब6 के बारे में गुफ़्तुगू7 की हो। मर्दों और औ'रतों के तीन चौथाई नंगे जिस्म देखते थे। दही बड़े और चाट खाते थे। नारियल के पानी के साथ शराब मिला कर पीते थे और मीराजी को वहीं छोड़ कर वापस घर चले आते थे।
अशरफ़ कुछ अर्से8 के बाद मीराजी का बोझ महसूस करने लगा था। वो ख़ुद पीता था मगर अपनी मुक़र्ररा9 हद से आगे नहीं बढ़ता था, लेकिन मीराजी के मुतअ’ल्लिक़ उसे शिकायत थी कि वो अपनी हद से गुज़र कर एक और हद क़ाइम10 कर लेता है जिसकी कोई हद नहीं होती। बेहोश पड़ा है, मगर और माँगे जा रहा है। अपनी इस तलब का दायरा बना लेता है और भूल जाता है कि ये कहाँ से शुरू' हुई थी और इसे कहाँ ख़त्म होना था।
मुझे उसकी शराब-नोशी11 के इस पहलू का इ'ल्म12 नहीं था लेकिन एक दिन उसका तज्रबा भी हो गया जिसको याद कर के मेरा दिल आज भी अफ़्सुर्दा13 हो जाता है।
सख़्त बारिश हो रही थी जिसके बाइस बर्क़ी14 गाड़ियों की नक़्ल-ओ-हरकत15 का सिलसिला दरहम-बरहम16 हो गया था। "ख़ुश्क17 दिन" होने की वजह से शहर में शराब की दुकानें बंद थीं। मज़ाफ़ात18 में सिर्फ़ बांद्रा ही एक ऐसी जगह थी जहाँ से मुक़र्ररा दामों पर ये चीज़ मिल सकती थी। मीराजी मेरे साथ था। उसके अलावा मेरा पुराना लँगोटिया हसन अब्बास जो दिल्ली से मेरे साथ चन्द दिन गुज़ारने के लिए आया था। हम तीनों बांद्रा उतर गए और डेढ़ बोतल रम ख़रीद ली। वापस स्टेशन पर आए तो राजा मेंह्दी अली ख़ाँ मिल गया, मेरी बीवी लाहौर गई हुई थी। इसलिए प्रोग्राम ये बना कि मीराजी और राजा रात मेरे ही यहाँ रहेंगे।

1 अस्पष्ट 2 चिंता 3 दिनचर्या 4 तट 5 व्यस्तता 6 साहित्य 7 बातचीत 8 समय 9 निश्चित 10 बना लेना 11 मधपान 12 ज्ञान 13 उदास 14 बिजली से चलने वाली 15 आवागमन 16 उथल पुथल 17 सूखा 18 नगर के उस पार के क्षेत्र


एक बजे तक रम के दौर चलते रहे, बड़ी बोतल ख़त्म हो गई। राजा के लिए दो पैग काफ़ी थे, उनको ख़त्म करके वो एक कोने में बैठ गया और फ़िल्मी गीत लिखने की प्रैक्टिस करता रहा। मैं, हसन अब्बास और मीराजी पीते और फ़ुज़ूल फ़ुज़ूल1 बातें करते रहे जिनका सर था न पैर। कर्फ़्यू के बाइस बाज़ार सुनसान था। मैंने कहा अब सोना चाहिए, अब्बास और राजा ने मेरे इस फ़ैसले पर साद2 किया। मीराजी न माना। अद्धे की मौजूदगी उसके इ'ल्म3 में थी। इसलिए वो और पीना चाहता था, मा'लूम नहीं क्यों, मैं और अब्बास ज़िद में आ गए और वो अद्धा खोलने से इन्कार कर दिया। मीराजी ने पहले मिन्नतें4 कीं, फिर हुक्म देने लगा। मैं और अब्बास दोनों इन्तिहा दर्जे5 के सिफ़ले6 हो गए। हमने उससे ऐसी बातें कीं कि उनकी याद से मुझे नदामत7 महसूस होती है। लड़ झगड़ कर हम दूसरे कमरे में चले गए।
मैं सुब्ह ख़ेज़8 हूँ, सबसे पहले उठा और साथ वाले कमरे में गया। मैंने रात को राजा से कह दिया था कि वो मीराजी के लिए स्ट्रेचर बिछा दे और ख़ुद सोफ़े पर सो जाए। राजा स्ट्रेचर में लबालब9 भरा था मगर सोफ़े पर मीराजी मौजूद नहीं था। मुझे सख़्त हैरत हुई, ग़ुस्लख़ाने10 और बावर्चीख़ाने में देखा। वहाँ भी कोई नहीं था। मैंने सोचा शायद वो नाराज़गी की हालत में चला गया है। चुनांचे वाक़ियात11 मा'लूम करने के लिए मैंने राजा को जगाया। उसने बताया कि मीराजी मौजूद था। उसने ख़ुद उसे सोफ़े पर लिटाया था हम ये गुफ़्तुगू12 कर ही रहे थे कि मीराजी की आवाज़ आई, "मैं यहाँ मौजूद हूँ।"

1 बेकार 2 पसंद किया 3 ज्ञान 4 विनतियाँ 5 चरमसीमा 6 कमीने 7 पश्चात 8 सुब्ह उठने वाला 9 पूर्ण रूप से 10 स्नान घर 11 घटनाएँ 12 बातचीत


वो फ़र्श पर राजा मेह्दी अ’ली ख़ान के स्ट्रेचर के नीचे लेटा हुआ था। स्ट्रेचर उठा कर उसको बाहर निकाला गया। रात की बात हम सब के दिल-ओ-दिमाग़ में ऊद1 कर आई लेकिन किसी ने उस पर तब्सिरा2 न किया। मीराजी ने मुझसे आठ आने लिए और भारी-भरकम बरसाती उठा कर चला गया। मुझे उस पर बहुत तरस आया और अपने पर बहुत ग़ुस्सा। चुनांचे3 मैंने दिल ही दिल में ख़ुद को बहुत लानत मलामत4 की कि मैं रात को एक निकम्मी सी बात पर उसको दुख पहुँचाने का बाइस बना।
इसके बाद भी मीराजी मुझसे मिलता रहा। फ़िल्म इंडस्ट्री के हालात मुन्क़लिब5 हो जाने के बाइस मेरा हाथ तंग हो गया था। अब मैं हर रोज़ मीराजी की शराब का ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उससे कभी इसका ज़िक्र नहीं किया लेकिन उसको इ'ल्म हो गया था, चुनांचे एक दिन मुझे उससे मा'लूम हुआ कि उसने शराब छोड़ने के क़सद6 से भंग खानी शुरू' कर दी है।
भंग से मुझे सख़्त नफ़रत है। एक दो बार इस्तेमाल करने से मैं उसके ज़िल्लत आफ़रीन7 नशे और उसके रद्द-ए-अमल8 का तजुर्बा कर चुका हूँ। मैंने मीराजी से जब इसके बारे में गुफ़्तुगू की तो उसने कहा, "नहीं... मेरा ख़याल है ये नशा भी कोई बुरा नहीं, इसका अपना रंग है। अपनी कैफ़ियत9 है, अपना मिज़ाज है।"
उसने भंग के नशे की ख़ुसूसियत10 पर एक लेक्चर सा शुरू' कर दिया। अफ़्सोस है कि मुझे पूरी तरह याद नहीं कि उसने क्या कहा था। उस वक़्त मैं अपने दफ़्तर में था और आठ दिन के एक मुश्किल बाब11 की मन्ज़र नवीसी12 में मशग़ूल13 था और मेरा दिमाग़ एक वक़्त में सिर्फ़ एक काम करने का आदी है वो बातें करता रहा और मैं मनाज़िर14 सोचने में मशग़ूल रहा।

1 लौट आर्इ 2 टिप्पणी 3 अतः 4 निंदा-धिक्कार 5 अस्त व्यस्त 6 इरादे से 7 अत्यधिक घृणा 8 प्रतिक्रिया 9 स्थिति 10 विशेषता 11 अध्याय 12 पटकथा-लेखन 13 व्यस्त 14 दृश्यों


भांग पीने के बाद दिमाग़ पर क्या गुज़रती है। मुझे उसके मुतअ’ल्लिक़ सिर्फ़ इतना ही मा'लूम था कि िगर्द-ओ-पेश की चीज़ें या तो बहुत छोटी हो जाती हैं या बहुत बड़ी। आदमी हद से ज़ियादा ज़की-उल-हिस1 हो जाता है। कानों में ऐसा शोर मचता है जैसे उनमें लोहे के कारख़ाने खुल गए हैं। दरिया पानी की हल्की सी लकीर बन जाते हैं और पानी की हल्की सी लकीरें बहुत बड़े दरिया। आदमी हँसना शुरू' करे तो हँसता ही जाता है। रोए तो रोते नहीं थकता।
मीराजी ने इस नशे की जो कैफ़ियत2 बयान की वो मेरा ख़याल है उससे बहुत मुख़्तलिफ़ थी। उसने मुझे उसके मुख़्तलिफ़ मदारिज3 बताए थे, उस वक़्त जबकि वो भांग खाए हुए था। ग़ालिबन4 लहरों की बात कर रहा था... लो वह कुछ गड़बड़ सी हुई... कोई चीज़ इधर उधर की चीज़ों से मिल मिला कर ऊपर को उठी... नीचे आ गई... फिर गड़बड़ सी हुई... और... आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ने लगी... दिमाग़ की नालियों में रेंगने लगी, सरसराहाट महसूस हो रही है... पर बड़ी नर्म नर्म... पूरे ए’लान के साथ... अब ये ग़ुस्से में तब्दील हो रहा है... धीरे धीरे... हौले हौले... जैसे बिल्ली गुदगुदे पंजों पर चल रही है... ओह... ज़ोर से मियाऊँ हुई... लहर टूट गई... ग़ायब हो गई और वो चौंक पड़ता।
थोड़े वक़्फ़े5 के बाद वो फिर यही कैफ़ियत नए सिरे से महसूस करता। लो, अब फिर नून6 के ए’लान की तैयारियाँ होने लगीं। गड़बड़ शुरू' हो गई है... आस-पास की चीज़ें ये ए’लान सुनने के लिए जमा हो रही हैं। काना-फूसियाँ भी हो रही हैं... हो गया... ए’लान हो गया... नून ऊपर को उठा... आहिस्ता आहिस्ता नीचे आया... फिर वही गड़बड़...वही काना फूसियाँ... आस-पास की चीज़ों के हुजूम7 में नून ने अंगड़ाई ली और रेंगने लगा... ग़ुन्ना8 खिंच कर लम्बा होता जा रहा है... कोई उसे कूट रहा है, रुई के हथौड़ों से... ज़र्बें9 सुनाई नहीं देतीं, लेकिन उनका नन्हा मुन्ना, पर से भी हल्का लम्स10 महसूस हो रहा है... गूँ, गूँ, गूँ... जैसे बच्चा माँ का दूध पीते-पीते सो रहा है... ठहरो, दूध का बुलबुला11 बन गया है... लो वो फट भी गया... और वो फिर चौंक पड़ता।

1 जल्दी प्रभावित होने वाला 2 स्थिति 3 सीमा 4 यक़ीन से 5 देर 6 उर्दू वर्णामला का अक्षर 7 भीड़ में 8 अनुसार 9 मारना 10 छुअन 11 धनी और हक़ का छल्ला


मुझे याद है, मैंने उससे कहा था कि वो अपने इस तज्रबे, अपनी इस कैफ़ियत को अशआर1 में मिन-ओ-अ'न2 बयान करे। उसने वा'दा किया था, मा'लूम नहीं उसने इधर तवज्जो3 दी या भूल गया।
कुरेद कुरेद कर मैं किसी से कुछ पूछा नहीं करता। सरसरी गुफ़्तुगूओं4 के दौरान मीराजी से मुख़्तलिफ़5 मौज़ूओं6 पर तबादला-ए-ख़यालात7 होता था, लेकिन उसकी ज़ातियात8 कभी मारिज़-ए-गुफ़्तुगू9 में नहीं आई थीं। एक मर्तबा मा'लूम नहीं किस सिलसिले में उसकी इजाबत-ए-जिन्सी10 के ख़ास ज़रीए का ज़िक्र11 आ गया। उसने मुझे बताया। उसके लिए अब मुझे ख़ारिजी12 चीज़ों से मदद लेनी पड़ती है। मिसाल के तौर पर ऐसी टाँगें जिन पर से मैल उतारा जा रहा है... ख़ून में लिथड़ी हुई ख़ामोशियाँ...
ये सुनकर मैंने महसूस किया था कि मीराजी की ज़लालत13, अब इस इन्तिहा को पहुँच गई है कि उसे ख़ारिजी ज़राए14 की इम्दाद15 तलब16 करनी पड़ गई है। अच्छा हुआ वो जल्दी मर गया क्योंकि उसकी ज़िन्दगी के ख़राबे17 में और ज़ियादा ख़राब होने की गुन्जाइश बाक़ी नहीं रही थी। वो अगर कुछ देर से मरता तो यक़ीनन उसकी मौत भी एक दर्दनाक इब्हाम18 बन जाती।

1 पंक्तियाँ 2 ज्यों का त्यों 3 ध्यान देना 4 बातचीत 5 विभिन्न 6 विषययों 7 विचारों का उदान प्रदान 8 व्यक्तित्व 9 बातों में व्यक्त होना 10 यौन स्वीकार्यता 11 उल्लेख 12 बाहरी 13 अपमान 14 साधन 15 मदद 16 अावश्यक्ता 17 विखंडित स्थान 18 अस्पष्टता, धुंदलका