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SHAHAR JO KHO GAYA

VIJAY KUMAR

Rs. 550

About the Book:एक शहर बहुत सारी स्मृतियों से बनता है। अपनी स्थानिकताओं से हमारे ये रिश्ते इस कदर सघन होते हैं कि कई बार तो यह समूचा परिवेश एक पहेली, तिलस्म या मिथक की तरह से लगने लगता है। समय की गति इस तरह से अनुभव होती है कि जो... Read More

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About the Book:
एक शहर बहुत सारी स्मृतियों से बनता है। अपनी स्थानिकताओं से हमारे ये रिश्ते इस कदर सघन होते हैं कि कई बार तो यह समूचा परिवेश एक पहेली, तिलस्म या मिथक की तरह से लगने लगता है। समय की गति इस तरह से अनुभव होती है कि जो कल तक मौजूद था वह अब वहाँ नहीं है। लेकिन उसकी स्मृति हमारे भीतर अब अपने नये अर्थ रचने लगती है। एक आक्रामक ग्लोबल समय में अपने जनपद, अपनी स्थानिकताओं से यह रिश्ता मुझे ज़रूरी लगता है, वह अपने होने के बोध को एक नया अर्थ देता है। मेरा यह शहर जो विकास का एक मिथक रचता है और भारतीय आधुनिकता का प्रतीक कहलाता है, शायद वह हमारी आधुनिक सभ्यता की किसी मायावी दुनिया के तमाम रहस्यों को अपने भीतर समेटे किसी अकथ विकलता को रचता है। इस शहर की बसावट, इसकी बस्तियाँ, बाज़ार, मोहल्ले, इमारतें और गलियाँ, पुल और सड़कें, इसकी पहाड़ियाँ और इसका प्राचीन समुद्र, इसके दिन और रात, शोर और निस्तब्धता, भीड़ और घनघोर अकेलापन, क्रूरताएँ और करुणा, भव्यता और क्षुद्रताएँ, स्मृति और विस्मृति, संवाद और निर्वात सब एक-दूसरे से जटिल रूप से आबद्ध हैं। मनुष्य इन्हीं सबके बीच जीता चला जाता है। यह शहर मेरे लिए एक पाठ की तरह से रहा है, जिसमें समय, स्थितियों, मनुष्य और परिवेश के रिश्तों को खोलती हुई अनेक परतें हैं। एक गहरा विश्वास रहा है कि साहित्य और कला में कोई भी स्थानिकता कभी पूरी तरह से स्थानिक नहीं होती।
Description
About the Book:
एक शहर बहुत सारी स्मृतियों से बनता है। अपनी स्थानिकताओं से हमारे ये रिश्ते इस कदर सघन होते हैं कि कई बार तो यह समूचा परिवेश एक पहेली, तिलस्म या मिथक की तरह से लगने लगता है। समय की गति इस तरह से अनुभव होती है कि जो कल तक मौजूद था वह अब वहाँ नहीं है। लेकिन उसकी स्मृति हमारे भीतर अब अपने नये अर्थ रचने लगती है। एक आक्रामक ग्लोबल समय में अपने जनपद, अपनी स्थानिकताओं से यह रिश्ता मुझे ज़रूरी लगता है, वह अपने होने के बोध को एक नया अर्थ देता है। मेरा यह शहर जो विकास का एक मिथक रचता है और भारतीय आधुनिकता का प्रतीक कहलाता है, शायद वह हमारी आधुनिक सभ्यता की किसी मायावी दुनिया के तमाम रहस्यों को अपने भीतर समेटे किसी अकथ विकलता को रचता है। इस शहर की बसावट, इसकी बस्तियाँ, बाज़ार, मोहल्ले, इमारतें और गलियाँ, पुल और सड़कें, इसकी पहाड़ियाँ और इसका प्राचीन समुद्र, इसके दिन और रात, शोर और निस्तब्धता, भीड़ और घनघोर अकेलापन, क्रूरताएँ और करुणा, भव्यता और क्षुद्रताएँ, स्मृति और विस्मृति, संवाद और निर्वात सब एक-दूसरे से जटिल रूप से आबद्ध हैं। मनुष्य इन्हीं सबके बीच जीता चला जाता है। यह शहर मेरे लिए एक पाठ की तरह से रहा है, जिसमें समय, स्थितियों, मनुष्य और परिवेश के रिश्तों को खोलती हुई अनेक परतें हैं। एक गहरा विश्वास रहा है कि साहित्य और कला में कोई भी स्थानिकता कभी पूरी तरह से स्थानिक नहीं होती।

Additional Information
Title

Default title

Publisher Setu Prakashan Pvt. Ltd.
Language Hindi
ISBN 9789395160285
Pages 470
Publishing Year 2023

SHAHAR JO KHO GAYA

About the Book:
एक शहर बहुत सारी स्मृतियों से बनता है। अपनी स्थानिकताओं से हमारे ये रिश्ते इस कदर सघन होते हैं कि कई बार तो यह समूचा परिवेश एक पहेली, तिलस्म या मिथक की तरह से लगने लगता है। समय की गति इस तरह से अनुभव होती है कि जो कल तक मौजूद था वह अब वहाँ नहीं है। लेकिन उसकी स्मृति हमारे भीतर अब अपने नये अर्थ रचने लगती है। एक आक्रामक ग्लोबल समय में अपने जनपद, अपनी स्थानिकताओं से यह रिश्ता मुझे ज़रूरी लगता है, वह अपने होने के बोध को एक नया अर्थ देता है। मेरा यह शहर जो विकास का एक मिथक रचता है और भारतीय आधुनिकता का प्रतीक कहलाता है, शायद वह हमारी आधुनिक सभ्यता की किसी मायावी दुनिया के तमाम रहस्यों को अपने भीतर समेटे किसी अकथ विकलता को रचता है। इस शहर की बसावट, इसकी बस्तियाँ, बाज़ार, मोहल्ले, इमारतें और गलियाँ, पुल और सड़कें, इसकी पहाड़ियाँ और इसका प्राचीन समुद्र, इसके दिन और रात, शोर और निस्तब्धता, भीड़ और घनघोर अकेलापन, क्रूरताएँ और करुणा, भव्यता और क्षुद्रताएँ, स्मृति और विस्मृति, संवाद और निर्वात सब एक-दूसरे से जटिल रूप से आबद्ध हैं। मनुष्य इन्हीं सबके बीच जीता चला जाता है। यह शहर मेरे लिए एक पाठ की तरह से रहा है, जिसमें समय, स्थितियों, मनुष्य और परिवेश के रिश्तों को खोलती हुई अनेक परतें हैं। एक गहरा विश्वास रहा है कि साहित्य और कला में कोई भी स्थानिकता कभी पूरी तरह से स्थानिक नहीं होती।