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अद्वैत के दर्शन के साथ जहां परम तत्व, अनुत्तर, ईश्वर, राजा. एकाधिकारवाद, नियम, नीति, और आनुगत्य के आदर्शों का एक पूरा ब्रह्मांड नज़र आता है, वहीं शिवाद्वयता से दो के समान अस्तित्व के विस्थापनाभास, शिव-शक्ति, प्रत्यभिज्ञा, बहुलता, विमर्श, स्वातंत्र्य का भिन्नता में एकान्विती का एक अन्य संसार आभासित होता है। वही प्रेम का संसार है। मज़े की बात है कि अपनी तमाम विरूपताओं और बाधाओं के बावजूद महानगरों में ही अद्वैत पर इस द्वयता की अंतिम विजय के संकेत सबसे प्रकट के रूप में सामने आते हैं। इसीलिए इस शहर के प्रेम का यशगान किया जाना चाहिए। यह सभ्यता के इतिहास में स्वातंत्र्य और जनतंत्र की कीर्ति पताका को लहराना है।
Description
अद्वैत के दर्शन के साथ जहां परम तत्व, अनुत्तर, ईश्वर, राजा. एकाधिकारवाद, नियम, नीति, और आनुगत्य के आदर्शों का एक पूरा ब्रह्मांड नज़र आता है, वहीं शिवाद्वयता से दो के समान अस्तित्व के विस्थापनाभास, शिव-शक्ति, प्रत्यभिज्ञा, बहुलता, विमर्श, स्वातंत्र्य का भिन्नता में एकान्विती का एक अन्य संसार आभासित होता है। वही प्रेम का संसार है। मज़े की बात है कि अपनी तमाम विरूपताओं और बाधाओं के बावजूद महानगरों में ही अद्वैत पर इस द्वयता की अंतिम विजय के संकेत सबसे प्रकट के रूप में सामने आते हैं। इसीलिए इस शहर के प्रेम का यशगान किया जाना चाहिए। यह सभ्यता के इतिहास में स्वातंत्र्य और जनतंत्र की कीर्ति पताका को लहराना है।
NA
Additional Information
Book Type |
Paperback
|
Publisher |
SURYA PRAKASHAN MANDIR, BIKANER |
Language |
HINDI |
ISBN |
978-93-92252-47-1 |
Pages |
104 |
Publishing Year |
2023 |