कथा-क्रम
1. कोहरे के पीछे - 7
2. नज़्ज़ारा दरम्याँ है - 30
3. हसब- नसब - 47
4. लकड़बग्गे की हँसी - 67
5. दो सय्याह - 86
6. आवारागर्द - 98
7. अकसर इस तरह से भी - 108
8. रक्से फ़ुग़ाँ होता है - 108
9. फ़ोटोग्राफ़र - 124
10. जिन बोलो तारा - तारा - 132
11. रौशनी की रफ़्तार - 148
कोहरे के पीछे
खच्चरों, घोड़ों, रिक्शाओं और डाँडियों पर सवार अँग्रेज़ साहब और मेम और
बाबा लोग बाज़ार के उस पुल पर से दिन-भर गुज़रा करते हैं; शाम को हिंदुस्तानी
उमड़ आते हैं। तेज़-तेज़ चलते, ढलान उतरते या चढ़ते-हाँफते काँपते इनसानों
का रेला ज्वार-भाटा मालूम होता है । सिनेमाघरों में इस्थर विलियम्ज़, जोन फ़ोंटेन
और नूरजहाँ और खुरशीद की पिक्चरें चल रही हैं। रिंक में स्केटिंग जारी है ।
अभी सेवाय के बालरूम में ऐंग्लो-इंडियन क्रूनर और उसके साथी 'Enjoy
yourself; it's later than you think' गाना शुरू करेंगे। ड्रम पर चोट पड़ेगी।
महाराजा और महारानी लोग और नवाब लोग और बड़ा साहब और बड़ा मेम
लोग डैंस बनाएगा।
उस वक़्त जब सारा मसूरी तफ़रीह में मसरूफ़ होता है, एक ग़रीब आदमी
बाज़ार के उस पुल पर चुप साधे खड़ा नज़र आता है - कबिरा खड़ा बजार में
माँगे सबकी खैर ।
फटा-पुराना ख़ाकी कोट और कंटोप पहने, हुलिये से बेरोज़गार मेहतर मालूम
होता है। एक अँग्रेज़ बच्ची गोद में उठाए बाज़ार में आ निकलता है । झुटपुटे
के वक़्त तक चुपचाप खड़ा रहता है या पुल की मुँडेर पर बैठ जाता है।
यह फ़ज़ल मसीह जमादार किसी 'साहब' की बच्ची खिलाता है तो इतना
मिस्कीन' और फटे हाल क्यों ? ताज्जुब !
यह फ़ज़ल मसीह फ़ातिरुल अक्ल ' भी मालूम होता है । जारशाही रूस में
नज़्ज़ारा दरम्याँ है
ताराबाई की आँखें तारों की ऐसी रौशन हैं और वह चारों तरफ़ की हर चीज़
को हैरत से तकती है। दरअस्ल ताराबाई के चेहरे पर आँखें ही आँखें हैं। वह
क़हत' की सूखी मारी लड़की है जिसे बेगम अल्मास खुर्शीद आलम के हाँ काम
करते हुए सिर्फ़ चंद माह हुए हैं, और वह अपनी मालकिन के शानदार फ़्लैट के
साजो-सामान को आँखें फाड़-फाड़ देखती रहती है कि ऐसा ऐशोइशरत उसे पहले
कभी ख़्वाब में भी नज़र न आया था। वह गोरखपुर के एक गाँव की बाल-विधवा
है, जिसके ससुर और माँ-बाप के मरने के बाद उसके मामा ने, जो बंबई में दूधवाला
भय्या है, उसे यहाँ बुला भेजा था।
अल्मास बेगम के ब्याह को अभी तीन-चार महीने ही गुज़रे हैं। उनकी
मंग्लूरियन आया जो उनके साथ मैके से आई थी 'मुल्क' चली गई तो उनकी बेहद
मुंतज़िम' ख़ाला बेगम उस्मानी ने, जो एक नामवर सोशल वर्कर हैं, एम्प्लायमेंट
एक्सचेंज फ़ोन किया और ताराबाई पटबीजने' की तरह आँखें झपकाती कम्बाला
हिल के ‘स्काइस्क्रैपर' गल नसत्रन की दसवीं मंज़िल पर आन पहुँचीं। अल्मास
बेगम ने उनको हर तरह क़ाबिले-इतमीनान पाया, मगर जब दूसरे मुलाज़िमों ने
उन्हें ताराबाई कहकर पुकारा तो वह बहुत बिगड़ीं, “हम कोई पतुरिया हूँ ?"
उन्होंने एहतिज़ाज़' किया। मगर अब उनको तारादई के बजाय ताराबाई कहलाने
की आदत हो गई है और वह चुपचाप काम में मसरूफ़ रहती हैं और बेगम साह
और उनके साहब को आँखें झपका-झपकाकर देखा करती हैं।
आवारागर्द
पिछले साल, एक रोज़ शाम के वक़्त दरवाज़े की घंटी बजी। मैं बाहर गई । एक
लंबा-तड़ंगा यूरोपियन लड़का कैनवस का थैला कंधे पर उठाए सामने खड़ा था।
दूसरा बंडल उसने हाथ में सँभाल रखा था और पैरों में ख़ाक आलूद' पेशावरी चप्पल
थे। मुझे देखकर उसने अपनी दोनों एड़ियाँ ज़रा-सी जोड़कर सर ख़म किया। मेरा
नाम पूछा और एक लिफ़ाफ़ा थमा दिया । "आपके मायूँ ने यह ख़त दिया है, "
उसने कहा ।
“अंदर आ जाओ,” मैंने उससे कहा और ज़रा अचंभे से ख़त पर नज़र डाली।
यह अल्लन मामूँ का ख़त था और उन्होंने लिखा था-
हम लोग कराची से हैदराबाद-सिंध वापस जा रहे थे। ठठ की माकली
हिल पर क़ब्रों के दरम्यान इस लड़के को बैठा देखा। इसने अँगूठा
उठा-उठाकर लिफ़्ट की फ़रमाइश की और हम इसे घर ले आए। यह
दुनिया के सफ़र पर निकला है और अब हिंदुस्तान जा रहा है। ओटो
हुत प्यारा लड़का है। मैंने इसे हिंदुस्तान में अज़ीज़ों के नाम ख़त
दिए हैं और उनके पास ठहरेगा। तुम भी इसकी मेज़बानी करो ।
नोट : इसके पास पैसे तक़रीबन बिलकुल नहीं हैं ।
लड़के ने कमरे में आकर थैले फ़र्श पर रख दिए। और अब आँखें चुँधियाकर
दीवारों पर लगी हुई तसवीरें देख रहा था। इतने ऊँचे क़द के साथ उसका बच्चों