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Kohbar Kavya

Anamika Verma

Rs. 225 Rs. 192

राग-रंग-रस-रूपकोहबर काव्य अनूपकोहबर यानी कि कोष्ठवर ! वर का प्रकोष्ठ ! बिहार में कोहबर के बिना विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती !वह छोटा-सा कमरा जहाँ वर-वधू को बैठाकर देवताओं का पूजन और अन्य अनुष्ठान करवाए जाते हैं, कोहबर होता है।इस कक्ष में हास-परिहास भी चलता है ओर... Read More

Description
राग-रंग-रस-रूपकोहबर काव्य अनूपकोहबर यानी कि कोष्ठवर ! वर का प्रकोष्ठ ! बिहार में कोहबर के बिना विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती !वह छोटा-सा कमरा जहाँ वर-वधू को बैठाकर देवताओं का पूजन और अन्य अनुष्ठान करवाए जाते हैं, कोहबर होता है।इस कक्ष में हास-परिहास भी चलता है ओर इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत कोहबर गीत कहलाते हैं।कोहबर की दीवारों पर घर की स्त्रियाँ गेरू, चावल और हल्दी इत्यादि से जो अईपन चित्र या मांडना बनाती हैं, उसे कोहबर चि़त्र कहते हैं। भारत सरकार ने 12 मई 2020 को झारखण्ड की कोहबर कला को जी.आई. टैग भी प्रदान किया है।इस सम्मान ही इस कोहबर संकल्न की कल्पना का हेतु बना।
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Kohbar Kavya

राग-रंग-रस-रूपकोहबर काव्य अनूपकोहबर यानी कि कोष्ठवर ! वर का प्रकोष्ठ ! बिहार में कोहबर के बिना विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती !वह छोटा-सा कमरा जहाँ वर-वधू को बैठाकर देवताओं का पूजन और अन्य अनुष्ठान करवाए जाते हैं, कोहबर होता है।इस कक्ष में हास-परिहास भी चलता है ओर इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत कोहबर गीत कहलाते हैं।कोहबर की दीवारों पर घर की स्त्रियाँ गेरू, चावल और हल्दी इत्यादि से जो अईपन चित्र या मांडना बनाती हैं, उसे कोहबर चि़त्र कहते हैं। भारत सरकार ने 12 मई 2020 को झारखण्ड की कोहबर कला को जी.आई. टैग भी प्रदान किया है।इस सम्मान ही इस कोहबर संकल्न की कल्पना का हेतु बना।