Description
सुधीर रंजन विधा के रूप में कविता और आलोचना की जो समझ विकसित करते हैं, वह कविता-आलोचना को समृद्ध करती है। उनके यहाँ रचना और आलोचना की जाँच-परख बहुत ही संवेदनात्मक, सुचिन्तित और व्यवस्थित है, तभी वे ‘कविता का अर्थ’, ‘वाग्मिता और बिम्ब’, ‘कविता और अनुभव’, ‘कविता और राजनीति’, ‘कविता और मनोविमर्श’ के पारम्परिक ‘नरेटिव’ का आधुनिक पाठ तैयार करते हैं। वे आलोचना की काव्यशास्त्रीय परम्परा के साथ आधुनिक कविता-आलोचना की यात्रा में अनुभूति, यथार्थ, भाषा, तकनीक, दृष्टि और काव्य-सिद्धान्त को विधिवत विश्लेषित करते हैं, और उसके माध्यम से राष्ट्रीय काव्यधारा, छायावाद और परवर्ती कविता में नागार्जुन, मुक्तिबोध, शमशेर और अज्ञेय की कविता पर अलहदा विचार करते हैं। समकालीन कविता की संश्लेषी परम्परा, आठवें दशक की कविता में समाजवादी यूटोपिया के अन्त और नब्बे के बाद की कविता पर जिरह करते हुए अपने समय, समाज, संस्कृति की सृजनात्मकता और उसके सिद्धान्तो के अन्तर्विरोधों की खोज करते हैं। इस तरह यह पुस्तक कविता की ही समझ नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की सृजनात्मकता और सिद्धान्तों द्वारा निर्मित द्वैत के भेद को खोलती है जिस पर कविता के भविष्य का पाठ भी निर्भर करता है। -दुर्गा प्रसाद गुप्त