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Ismat Chughtai Ke Do Novel

Ismat Chughtai

Rs. 195 Rs. 181

सौदाई और दिल की दुनिया इस्मत चुग़ताई के दो छोटे उपन्यास हैं। जिनकी बहुत चर्चा नहीं होती! चर्चा न होने से किसी कृति का महत्त्व कम नहीं हो जाता, न ही उसकी पठनीयता को लेकर कोई सन्देह बनता है! इतना अवश्य है कि किसी भी रचनाकार की सभी कृतियाँ समान... Read More

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Description
सौदाई और दिल की दुनिया इस्मत चुग़ताई के दो छोटे उपन्यास हैं। जिनकी बहुत चर्चा नहीं होती! चर्चा न होने से किसी कृति का महत्त्व कम नहीं हो जाता, न ही उसकी पठनीयता को लेकर कोई सन्देह बनता है! इतना अवश्य है कि किसी भी रचनाकार की सभी कृतियाँ समान स्तर की नहीं होती! होना भी नहीं चाहिए। सौदाई हो या दिल की दुनिया दोनों ही उपन्यासों में वह कथ्य को इस त्रासद तथ्य का साक्ष्य बनाने में सफल रही हैं कि कैसे धार्मिक कानूनों, सम्पत्ति व अवसरों की बन्दर बाँट में पुरुष लगातार शक्तिशाली होता गया और स्त्री कमज़ोर! अपने तमाम सामर्थ्य, प्रतिभा व निष्ठा के बावजूद पुरुषों के हाथ की कठपुतली बन जाना स्त्री की जैसे नियति ही बन गयी! दिल की दुनिया में इस्मत चुग़ताई बुआ और कुदसिया के माध्यम से इस यूटोपिया को तोड़ने की दिशा में जाती हैं! जहाँ स्त्री अधिकार के बुनियादी प्रश्न भी उठते हैं! कुदसिया रूढ़िवादी पारिवारिक संरचना को भी आघात लगती है! दोनों उपन्यासों में भाषा का अपना सुख है! इस्मत ने अपनी भाषा आप बनाई है! कथ्य के साथ ऐसा ग़ज़ब का तालमेल कम दिखता है!

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Paperback

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Ismat Chughtai Ke Do Novel

सौदाई और दिल की दुनिया इस्मत चुग़ताई के दो छोटे उपन्यास हैं। जिनकी बहुत चर्चा नहीं होती! चर्चा न होने से किसी कृति का महत्त्व कम नहीं हो जाता, न ही उसकी पठनीयता को लेकर कोई सन्देह बनता है! इतना अवश्य है कि किसी भी रचनाकार की सभी कृतियाँ समान स्तर की नहीं होती! होना भी नहीं चाहिए। सौदाई हो या दिल की दुनिया दोनों ही उपन्यासों में वह कथ्य को इस त्रासद तथ्य का साक्ष्य बनाने में सफल रही हैं कि कैसे धार्मिक कानूनों, सम्पत्ति व अवसरों की बन्दर बाँट में पुरुष लगातार शक्तिशाली होता गया और स्त्री कमज़ोर! अपने तमाम सामर्थ्य, प्रतिभा व निष्ठा के बावजूद पुरुषों के हाथ की कठपुतली बन जाना स्त्री की जैसे नियति ही बन गयी! दिल की दुनिया में इस्मत चुग़ताई बुआ और कुदसिया के माध्यम से इस यूटोपिया को तोड़ने की दिशा में जाती हैं! जहाँ स्त्री अधिकार के बुनियादी प्रश्न भी उठते हैं! कुदसिया रूढ़िवादी पारिवारिक संरचना को भी आघात लगती है! दोनों उपन्यासों में भाषा का अपना सुख है! इस्मत ने अपनी भाषा आप बनाई है! कथ्य के साथ ऐसा ग़ज़ब का तालमेल कम दिखता है!