हम भारतीय सभ्यता और हिन्दू मिथकों की औपनिवेशिक व्याख्याओं से घिरे हैं या इनके संबंध में अन्ध-राष्ट्रवादी विचारों और बाज़ार की धार्मिक वस्तुओं से इधर हिन्दू मिथकों का निर्बुद्धिपरक राजनीतिकरण अधिक हुआ है या बाजारीकरण। यह उनकी बौद्धिक पुनर्कल्पना की प्राचीन उदारवादी परम्पराओं से प्रस्थान है। यह पुस्तक इन्हीं परिस्थितियों में हिंदू मिथकों को बुद्धिपरक ढंग से समझने के अलावा भारत के स्वभाव को पहचानने की कोशिश है। किसी सभ्यता को सिर्फ़ इतिहास के पुरातात्विक साक्ष्यों से समझना कभी सम्भव नहीं है, क्योंकि इतिहास के बाहर भी एक बड़ा अतीत है। यह अतीत कई बार अपमानित करता है, हालाँकि कुछ चीजों पर पछताने, कुछ का ध्वंस करने और कुछ के पुनर्निर्माण के लिए भी प्रेरित करता है। ‘हिन्दू मिथक : आधुनिक मन' एक सांस्कृतिक अध्ययन है। इसके लिए आधुनिक हिन्दी कविता की पूरी परम्परा की जगह हिन्दू मिथकों की व्याख्या में सहायक कुछ ख़ास कृतियाँ चुनी गई हैं। इस काम ने मुझे मथा है, साथ ही अपने देश की सभ्यता को शुद्धतावाद और उच्छेदवाद से बाहर निकल कर समझने का अवसर दिया है।