Description
उसको गुरूरे-हुस्न ने क्या क्या बना दिया पत्थर बना दिया, कभी शीशा बना दिया हर ज़ख्मे-दिल को हम ने सजाया है इस तरह जुगनू बना दिया कभी तारा बना दिया मैं किस ज़ुबां से शुक्र ख़ुदा का अदा करूंजिस ने मुझे 'फ़िराक' का शैदा बना दिया सारे जहां के दर्द की आमाज़गाह है दिल तूने मेरे पहलू में अच्छा बना दिया उस को ख़ुलूस कैसे नज़र आयेगा 'अशोक'दुश्मन को इन्तेकाम ने अँधा बना दिया "अशोक साहनी, खुद तो बड़े शायर हैं ही, इसके साथ अदब और अदीब नवाज़ भी बहुत बड़े हैं। उनका यह संकलन गुलिस्ताने-ग़ज़ल यक़ीनन अदब की दुनिया का एक बेहतरीन कारनामा है। मेरी दुआ है कि उनकी शायरी में और निखार आए, और शायरी की दुनिया में उनके काम को सराहा जाए।"-बशीर बद्र