इस श्रृंखला के बारे में
आधुनिक विश्व-साहित्य की महानतम क्लासिकी कृतियों का एक प्रतिनिधि
चयन हिन्दी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने की महत्वाकांक्षी अनुवाद-परियोजना
के अन्तर्गत, 'धरोहर' हमारी पहली श्रृंखला है।
इस श्रृंखला के अन्तर्गत, पुनर्जागरण (Renaissance) से लेकर
प्रबोधनकाल (Age of Enlightenment प्रायः इसे ज्ञानोदय या
ज्ञान-प्रसारणकाल भी कहा जाता है) तक की कालजयी साहित्यिक-वैचारिक
कृतियों के अनुवाद शामिल होंगे। यह सुदीर्घ कालखण्ड, मोटे तौर पर,
चौदहवीं शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों तक, यानी
महान फ्रांसीसी जनवादी क्रान्ति की पूर्वबेला तक फैला हुआ है।
विश्व - इतिहास के युगान्तरकारी परिवर्तन पूरे भूमण्डल पर एक साथ
घटित नहीं होते रहे हैं । भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाली महान
क्रान्तियों के रंगमंच प्रायः स्थानान्तरित होते रहे हैं । जाहिर है कि अनायास
नहीं, बल्कि सुनिश्चित आर्थिक-राजनीतिक कारणों से ऐसा होता रहा है।
इस अन्तरण की अपनी एक गतिकी है।
पुनर्जागरण की घटनाओं का रंगमंच मुख्यतः यूरोप था । प्रबोधनकालीन
वैचारिक सांस्कृतिक सक्रियताओं का दायरा यूरोप से लेकर रूस तक तथा
अमेरिका महादेश की ‘नई दुनिया' तक फैला हुआ था। एशिया, अरब
अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के उपनिवेशों में, कुछ आगे-पीछे, प्रायः
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, उपनिवेशवाद-विरोधी राष्ट्रीय जागरण
की जो चेतना निर्मित हुई, उसमें भी यूरोपीय पुनर्जागरण और प्रबोधनकाल
के जैसे विचारों एवं संस्कृति के कुछ तत्त्व मौजूद थे, लेकिन उनकी अपनी
अन्तर्निहित निर्बलताएँ और विच्युतियाँ थीं, जिनके जन्मचिह्न आज भी
भारत सहित तमाम उत्तर- औपनिवेशिक समाजों में मौजूद हैं।
पुनर्जागरण और प्रबोधन की घटनाएँ यूरोपीय इतिहास की घटनाएँ
मात्र न होकर, विश्व-ऐतिहासिक परिघटनाएँ थीं । उन युगों के सर्जक
पात्रों का परिचय
जां ल रोंद दालम्बेर (1717-83) तोपखाने के एक अफसर शेवालिए देस्तूश
( इस कृति में इसे ला तूश कहा गया है) से मदाम द तेंसां की नाजायज
औलाद था । मदाम द तेंसां अठारहवीं सदी के फ्रांस की एक विलक्षण
महिला थी। वह अत्यन्त बुद्धिमती थी और उसूलों के बन्धन से पूरी तरह
मुक्त थी। वह भिक्षुणी (नन) के जीवन को ठुकराकर कई प्रभावशाली
व्यक्तियों की प्रेमिका और मिस्ट्रेस बनी जिनसे उसने काफी लाभ कमाया ।
पेरिस में उसका सैलों (महफिल) बड़ा मशहूर था और वह अनेक
राजनीतिक षड्यन्त्रों में भी दिलचस्पी रखती थी। इसके अलावा वह
भावुकता से भरे उपन्यास भी लिखा करती थी। अपने बच्चे के जन्म को
वह एक थका देनेवाली दुर्घटना मानती थी। बच्चे का नामकरण उसने
सन्त जां ल रोंद के नाम पर किया और फिर उससे कोई लेना-देना नहीं
रखा, उसके मशहूर हो जाने के बाद भी नहीं । लेकिन ज्यादातर नाजायज
बापों के विपरीत उसके पिता ने बच्चे को अपनाया, सक्रिय सैन्य सेवा
से लौटते ही उसे अनाथालय से घर ले आया और उसे मदाम रूसो नाम
की धाय-माँ की देख-रेख में सौंप दिया। एक शीशागर की पत्नी मदाम
रूसो ने बच्चे को माँ की तरह प्यार किया और करीब पचास साल की
उम्र तक वह उसी के घर में रहा। बाप ने उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा
दिलाने का इन्तजाम किया और जल्द ही लड़के की असाधारण बौद्धिक
क्षमताएँ सामने आने लगीं। वह अपने समय के महानतम गणितज्ञों में
से एक बना। वह अकादेमी दे साइंसेज और अकादेमी फ्रांसेस सहित यूरोप
के विद्वानों की ज्यादातर सोसाइटियों का सदस्य बना। वह दिदेरो के साथ
विश्वकोश का सह-सम्पादक रहा और 1751 में लिखा गया उसका
Discours Preliminaire अठारहवीं सदी में प्रत्यक्षवाद का एक शानदार
घोषणापत्र माना जाता है। पर दालम्बेर एक जुझारू नास्तिक नहीं था बल्कि
सच्चा सन्देहवादी ही था जो आस्था और अनास्था के समझौताविहीन दावों
दालम्बेर का सपना
वक्ता - दालम्बेर, मदमोज़ाल द लेस्पिनास, डॉक्टर बोर्दो
बोर्दो : हाँ, अब क्या हुआ ? क्या वह बीमार है ?
मदमोज़ाल द लेस्पिनास ः मुझे डर है कि ऐसा ही है; वह पूरी रात
बहुत परेशान रहे।
बोर्दो : क्या वह जगा हुआ है ?
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : अभी नहीं ।
बोर्दो (दालम्बेर के बिस्तर तक जाकर उसकी नाड़ी देखने और माथे
पर हाथ रखने के बाद) : कुछ नहीं होगा ।
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : आपको ऐसा लगता है ?
बोर्दो : मेरी बात मानो। नाड़ी एकदम ठीक है... थोड़ी धीमी है... त्वचा
नम है...साँस ठीक चल रही है |
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : हमें उनके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं
बोर्दो : नहीं, कुछ नहीं ।
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : यह सुनकर खुशी हुई; उन्हें दवाएँ लेने
से चिढ़ है ।
बोर्दो : मुझे भी है। कल रात खाने में क्या लिया था ?
मदमोज़ाल द लेस्पिनास ः उन्होंने कुछ खाया नहीं। मुझे पता नहीं
कि उन्होंने शाम कहाँ गुजारी लेकिन जब वह लौटे तो उनके दिमाग में
कुछ चल रहा था ।
बोर्दो : बस, हल्की-सी हरारत है और इससे कुछ खास असर नहीं
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : जैसे ही वह लौटकर आए, कपड़े बदलकर
अपना ड्रेसिंग-गाउन पहन लिया, नाइट कैप लगाई, एक आरामकुर्सी पर
संवाद का उत्तरभाग
वक्ता: मदमोज़ाल द लेस्पिनास, बोर्दो
(डॉक्टर दो बजे लौटे। दालम्बेर खाना खाने बाहर गए थे इसलिए
डॉक्टर और मदमोज़ाल द लेस्पिनास अकेले थे । खाना परोसा गया और
अन्त में मिठाई आने तक वे यूँ ही इधर-उधर की बातें करते रहे, लेकिन
जब नौकर चले गए तो मदमोज़ाल द लेस्पिनास ने डॉक्टर से कहा :)
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : डॉक्टर, एक गिलास मलागा लीजिए और
फिर आप मेरे सवाल का जवाब दे सकते हैं। यह मेरे दिमाग में बड़ी
देर से चक्कर काट रहा है और आपके सिवा किसी से मैं यह पूछ नहीं
सकती।
बोर्दो : बहुत बढ़िया मलागा है ।...हाँ, तुम्हारा सवाल क्या है ?
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : प्रजातियों के बीच क्रास-ब्रीडिंग के बारे
में आप क्या सोचते हैं ?
बोर्दो : हूँ, अच्छा सवाल है ! मेरे ख्याल से क्रिया को बहुत महत्त्व दिया है,
और सही किया है, लेकिन इस बारे में उसके नागरिक और धार्मिक कानूनों के
बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है।
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : आपको इनमें गलत क्या लगता है ?
बोर्दो : यही कि उन्हें बनाते समय न तो समता का ख्याल किया गया, न कोई स्पष्ट
लक्ष्य रखा गया, न यह देखा गया कि चीजें वास्तव में कैसे चलती हैं और न ही उनकी
सार्वजनिक उपयोगिता का ध्यान रखा गया ।
मदमोज़ाल द लेस्पिनास : क्या आप थोड़ा समझाने की कोशिश करेंगे ?
बोर्दो : मैं यही तो करने की कोशिश कर रहा हूँ ।...लेकिन जरा ठहरो
(घड़ी देखते हैं)। हाँ, मेरे पास अब भी एक घण्टा है और अगर मैं