दार्जिलिंग होटल !
थके हुए मुसाफ़िर की तरह एक बड़ी-सी कार पोर्टिको में आकर
रुक गई। कमल बोस ने इस बात का इन्तज़ार नहीं किया कि ड्राइवर
आकर दरवाज़ा खोले । वे खुद ही उसे खोलकर उतर आए थे, और बाहर
क़दम रखते ही उन्होंने निश्चितता की गहरी साँस ली।
ड्राइवर सामान निकालने में मशगूल हो गया ।
शीशों के दरवाज़ों के पार से रिज़र्वेशन मैनेजर ने उन्हें गिद्ध की
तरह ताका, कुछ पहचाना और लपककर बाहर आ गया। तब तक
कमल बोस लॉन की किनारी तक पहुँच गए थे, जिसके नीचे एक
उथली - सी घाटी थी। उन्होंने कोट के बटन खोल दिए और फ़ैल्ट हैट
उतारकर छड़ी के साथ ही पकड़ लिया था ।
उनका भव्य व्यक्तित्व और निखर आया था । लगभग सफ़ेद हो
गए खूबसूरत घने बाल, छरहरा लम्बा शरीर... चेहरे पर पड़ी रेशमी
झुर्रियाँ और चश्मे के भीतर से झाँकती गहरी आँखें ।
सामने फैली खूबसूरती को देखकर जैसे ही उन्होंने बाईं ओर देखा
तो बहुत अदब से मैनेजर ने नमस्ते की और बोला, “आई होप, एम.
डी. मिस्टर कमल बोस ऑफ़ मानसी कैमिकल्स... वेलकम सर...!"
"यह, दैट्स राइट ! ताज्जुब है, कैसे जानते हैं मुझे ?" चलते हुए
कमल बोस ने कहा ।
"सात साल पहले मैं आपकी कम्पनी का सेल्समैन था । तब
आपको इतने नजदीक से देखने का मौक़ा नहीं मिला, लेकिन पहचानने
में दिक़्क़त नहीं हुई,” मैनेजर ने कहा, “अब यहाँ रिज़र्वेशन मैनेजर
हूँ ।"
"ओह ! अच्छा किया कि आपने हमारी कम्पनी छोड़ दी । "
कमल बोस ने मुस्कुराते हुए कहा ।
"जी, ऐसी कोई बात नहीं थी..." मैनेजर अचकचाया, “आपकी
कम्पनी की दवाइयों का ज़बर्दस्त मार्केट था । हमें कभी कैमिस्ट या
पर बैठ गए थे। वहाँ बैठने पर लगा कि बूढ़ा बहुत बातूनी है। वह
दुनिया-जहान की बातें सुनाता रहा... पर कमल बोस का मन तो कुछ
और कुरेद रहा था । आखिर घेर घारकर वे उसे रास्ते पर ले आए
थे... फिर जो कुछ बूढ़े ने कहा, वह उनके लिए बहुत भारी भी पड़ गया
था, पर उसे जाने बगैर अब चैन भी नहीं था । कमल बोस ने बड़ी
मुश्किल से उसे घेरा था । एकदम बात बदलकर उन्होंने उससे सीधा
सवाल किया था, “वैद्यजी कब स्वर्ग सिधारे ?”
"बीस - बाइस बरस हो गए होंगे। हे भगवान! किसी को ऐसा
बुढ़ापा न दे...जिसमें आदमी की इज़्ज़त राख हो जाए ।" वह शुरू
गया था।
हो
“क्या हुआ था ? कोई ... ?” कमल बोस ने कुरेदा था ।
"क्या नहीं हुआ था, यह पूछो ! उनके एक लड़की थी। जवान
लड़की।”
“हाँ...हाँ... ।”
“उसी लड़की ने बुढ़ापा बिगाड़ दिया उनका । उसके कारण क्या
नहीं सहना पड़ा उन्हें... यह दार्जिलिंग जगह ही ऐसी है बाबू जी, सब
तरह के सैलानी यहाँ मौसम - बेमौसम चले आते हैं...कोई नौजवान
डॉक्टर आया था...उससे लड़की का कुछ लग लगाव हो गया। बस,
बात...बिगड़ गई।”
"कैसी बात बिगड़ गई ?"
"अरे, बड़ी जिद्दी लड़की थी। सबने समझाया - मनाया, पर वह
मानी ही नहीं। तीन साल तक वह जिद में रुकी रही.. किसी की बात
ही नहीं सुनती थी...लेकिन कोई लौटकर आता है, बाबूजी ? आप तो
समझदार आदमी हो। आप ही बताओ..." बूढ़े ने उनकी आँखों में
देखते हुए कहा ।
कमल बोस की पसली - पसली थरथरा गई। उन्हें लगा कि यह
शातिर बूढ़ा अभी पूरी चीर-फाड़ करके रख देगा । बहुत मुश्किल से
उन्होंने अपने को रोके रखा। बूढ़ा एक क्षण रुककर फिर बोलने लगा,
“वैद्यजी का बुढ़ापा खराब हो गया । बहुत बदनामी हुई । बिरादरी ने
हुक्का-पानी बन्द कर दिया। इसी फ़िकर में उनकी तबीयत भी खराब
रहने लगी। जब बहुत तबीयत बिगड़ी, तो चन्दा को होश आया।
बिरादरी में तो बदनामी हो ही चुकी थी । कौन करता शादी उससे ?
टटोला...कि देखें, यह दोष कहाँ पर है... पर समझ नहीं पाए - सिवा
इसके कि यह भेद आदमी-आदमी के पैमानों का नहीं... यह चरित्र - दोष
आदमी. और आदमी के माहौल का है... ।
आख़िर एक दिन यह फ़र्क़ दूसरी तरह से उभर ही आया था और रमेन्द्र
के कारनामों के लिए निरुपमा से उनका झगड़ा हो गया था ।
हमेशा की तरह उस दिन भी उलझा हुआ वह आया था और
निरुपमा से बोला था, “तुम रमेन्द्र को समझाती क्यों नहीं ? आज मुझे
ख़बर मिली है कि हमारे ब्रांड्स पर वह नक़ली दवाइयाँ बनाकर बाज़ार
में भर चुका है। यह मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा ।"
"जब से डैडी की मौत हुई है, तुम तो कुछ भी बर्दाश्त करने के
लिए तैयार नहीं हो ।” निरुपमा ने जलती हुई बात कही थी ।
“क्या मतलब ?” कमल बोस बिगड़े थे ।
" मतलब यही कि रमेन्द्र भी कुछ करेगा। तुम अपनी कम्पनी से
उसे निकाल चुके हो, अब उसे किस हक़ से रोकोगे ?”
" नक़ली दवाइयाँ बनाने के अपराध में मैं उसे जेल भिजवा सकता
हूँ ।" कमल बोस ने तैश में कहा था ।
“मामाजी के बहुत उपकार हैं हम पर। उनका यह अकेला लड़का
है। नानाजी ने यह कारख़ाना अगर डैडी को न दिया होता, तो तुम्हारी
जगह आज इसका मालिक रमेन्द्र ही होता, समझे !" कहते हुए निरुपमा
अपने कमरे में चली गई थी।
और यह जली हुई बात वह खून के घूँट की तरह पी गया था ।
आख़िर जब एक शोर करती मोटर सवारियों को लिए हुए गुज़री तो
कमल बोस की तन्द्रा टूटी थी । जैसे वे किसी भयानक स्वप्न से जागे
हों। उठकर वे आए और गाड़ी स्टार्ट करके नीली घाटी की ओर चल
दिए थे। घंटे भर बाद ही वे नीली घाटी में थे । डाकखाने के बोर्ड पर
उन्होंने बस्ती का नाम पढ़ लिया था ।
लम्बी कार रुकी तो बस्ती के बच्चे इर्द-गिर्द जमा हो गए। उस
जगह का माहौल जान लेने के लिए वे पासवाली चाय की दुकान पर