अनुक्रम
1. प्रस्तावना - 9
2. अनुवाद : क्या, क्यों और कैसे ? - 13
3. विज्ञान और तकनीकी - 34
4. अनुवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान - 47
5. अनुवाद और मानविकी (दर्शन, ललित कलाएँ आदि) - 57
6. सृजनात्मक साहित्य के अनुवाद की समस्याएँ - 68
अनुवाद : क्या, क्यों और कैसे
अनुवाद एक प्रकार का सहयोगी कर्म होता है- दो रचनाकारों के बीच । पहला रचनाकार वह जो मूल पाठ की रचना करता है और दूसरा वह जो इस मूल पाठ में निहित लेखकीय अर्थ को अनूदित पाठ में स्थानान्तरित करता है। इस प्रक्रिया में रचनाकार, कृति और पाठक का स्वाभाविक त्रिकोण, दोहरा हो जाता है अर्थात् हम एक ऐसे रचनाकार (अनुवादक) की रचना (अनुवाद) के पाठक होते हैं, जो स्वयं किसी दूसरे (मूल लेखक) रचनाकार की रचना (मूल पाठ) का पाठक होता है। अंग्रेज़ी भाषा में 'Translation' का व्युत्पत्यर्थ होता है : 'Crossing the border' (सीमा पार करना), उसी तरह जैसे 'transmission', 'transportation', अर्थात् स्थानान्तरण ।
अनुवाद का सामान्य अर्थ हुआ - एक भाषा के पाठ में निबद्ध 'अर्थ' को, (जो कोई विचार, अनुभूति या तथ्यात्मक सूचना में से कुछ भी हो सकता है) एक भाषा की सीमा पारकर दूसरी भाषा में स्थानान्तरित करना। मुख्य बात है 'अर्थ', 'कथ्य' या 'आशय' । इसलिए किसी अनूदित रचना की इकाई शब्द, वाक्य, पदबन्ध न होकर समूचा पाठ होता है क्योंकि 'अर्थ' किसी एक शब्द, एक वाक्य या विशेष पदबन्ध में सीमित न रहकर 'पाठ' की पूरी बनावट के बीच से समग्रता में उभरता है। शब्द के लिए शब्द, वाक्य के लिए वाक्य और पदबन्ध के लिए पदबन्ध अनुवाद की भाषा में मूल पाठ के अर्थ को स्थानान्तरित करने के लिए अनुवाद के साधन या माध्यम भर होते हैं, लक्ष्य नहीं । वह 'कथ्य' या 'अर्थ' को उसकी समग्रता में सिद्ध करने के लिए ज़रूरत पड़ने
विज्ञान और तकनीकी
सामान्य प्रश्न और पारिभाषिक शब्दावली
विज्ञान और तकनीकी से सम्बद्ध विषयों का अनुवाद करते समय पहला प्रश्न उन विषयों की जानकारी के बारे में उठता है। अर्थात् चिकित्सा, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी, रासायनिकी, इंजीनियरी जैसे विषयों का अनुवाद करने के लिए क्या अनुवादक का डॉक्टर, इंजीनियर, रासायनिक, वनस्पतिशास्त्री होना ज़रूरी है अगर ऐसा ज़रूरी हो तो हर विषय का अनुवादक अलग होगा। इसके अलावा वह विषय-विशेषज्ञ आखिर अनुवाद क्यों करना चाहेगा और फिर उसकी भाषिक-क्षमता की स्थिति क्या होगी ? अनुवादक के लिए किसी विज्ञान या तकनीकी का विशेषज्ञ होना ज़रूरी नहीं होता। ज़रूरी यह होता है कि वह उस ‘पाठ’ को समझता हो और वह उस सामग्री में प्रयुक्त शब्दावली का जानकार (भले ही अस्थायी रूप से) हो ।
विज्ञान में भाषा अवधारणा - केन्द्रित होती है और तकनीकी में वस्तु- केन्द्रित, उदाहरण : उत्पादन विषयक इंजीनियरी की सामग्री का अनुवाद करते समय Lathe, clutch, clamp, bolt, mill, shaft, crank आदि मूल शब्दों, उनके अनूदित रूपों, उनके द्वारा वाच्य वस्तुओं की बनावट, उनकी कार्य-प्रणाली और परिणामों के स्पष्ट बोध के साथ उनके कार्य-बोधक शब्दों (क्रियाओं) को जानना ज़रूरी होगा। दूसरे प्रकार के अनुवादों से तकनीकी अनुवाद की पहचान मुख्य रूप से उसकी पारिभाषिक शब्दावली के कारण होती है, गोकि किसी पाठ में इस
अनुवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
भाषा और संस्कृति
किसी विशेष भाषा-भाषी समुदाय, समाज या वर्ग के अनुभवों, विचारों और संवेदनाओं को अन्य भाषायी समुदायों तक पहुँचाने का शायद सबसे अधिक प्रभावी माध्यम/साधन अनुवाद होता है। अभिव्यक्ति के अन्य रूपों की तरह भाषिक अभिव्यक्ति भी वक्ता या लेखक के मन्तव्य को ही नहीं बल्कि उसकी सांस्कृतिक बनावट को भी व्यक्त करती है । अर्थात् सम्पूर्ण वाङ्मय (मौखिक और लिखित) मानव-संस्कृति की भाषिक अभिव्यक्ति है । सतही रूप से देखने पर भ्रम हो सकता है कि वाङ् मय के दो प्रमुख भेदों शास्त्र और साहित्य में से शास्त्र किसी समाज की वैचारिक बनावट और साहित्य उसकी संवेदनात्मक बनावट को व्यक्त करता है। अतः सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की गुंजाइश शास्त्र की अपेक्षा साहित्य में अधिक होती है। परन्तु किसी समाज के वैचारिक इतिहास के पीछे उसके दीर्घकालीन अनुभव, भौतिक संघर्ष और क्रमशः विकसित जीवन-प्रणाली की प्रेरणा और योगदान होता है। भारतीय और पश्चिमी परम्पराओं की दार्शनिक अवधारणाओं के 'बीज' शब्दों पर ध्यान दें तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि ये शब्द ' अर्थों' के नहीं अवधारणाओं यानी अर्थ-क्षेत्रों के वाचक हो गए हैं। ऐसे अर्थ-क्षेत्र जो दीर्घकालीन चिन्तन- मनन की प्रक्रिया में इनके साथ अभिन्न रूप से जुड़ गए हैं और इन्हें वही