About Book
प्रस्तुत किताब रेख़्ता हर्फ़-ए-ताज़ा सीरीज़’ की शक्ल में ‘रेख़्ता बुक्स’ की नई पेशकश है। इस किताब में उर्दू शाइ’री की नवोदित प्रतिमाओं में से एक अमीर इमाम की शाइरी का इन्तिख़ाब शामिल है। उनकी शाइरी में मोहब्बत के नए मौज़ूआत शामिल होते हैं मगर उनमें रवायती शाइरी का ज़ाइक़ा भी देखने को मिलता है। ‘सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी’ अमीर इमाम की शाइ’री का देवनागरी लिपि में दूसरा संग्रह है। इससे पहले उनका पहला संग्रह उर्दू और देवनागरी लिपियों में ‘नक़्श-ए-पा हवाओं के’ के नाम से 2013 में प्रकाशित हुआ था, जिस पर साहित्य अकादमी का युवा साहित्य पुरस्कार भी मिला था।
About Author
Ameer Imam is young stalwart of Urdu poetry. He was born in 1984 in Sambhal UP, and completed his studies from Aligarh Muslim University. He currently teaches English in a college near his hometown. He started writing poetry at a very young age and his first book ‘Naqsh e paa hawaaon ke’ was awarded Yuva Sahitya Academy. Ameer Imam has maintained the classical fervor in his poetry along with the modern subjects. ‘Subah ba khair zindagi’ is his second book and it is also well received by critics and poetry enthusiasts. Currently, he is teaching in a college of Sambhal.
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फ़ेह्रिस्त
1 रंग तमाम भर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
2 कोई ख़ुशी न कोई रन्ज मुस्तक़िल होगा
3 वक़्त की इन्तिहा तलक वक़्त की जस्त अमीर इमाम
4 हर आह-ए-सर्द इ’श्क़ है हर वाह इ’श्क़ है
5 है कौन किसकी ज़ात के अन्दर लिखेंगे हम
6 कुछ तो हमारा अ’क्स भी मुब्हम है दोस्तो
7 कैसे चराग़ अब तो शरारा कोई नहीं
8 मद्धम हुई तो और निखरती चली गई
9 कैसी जादू-बयानियाँ1 हम थे
10 आग के साथ में बहता हुआ पानी सुनना
11 मुस्तक़बिलों की गुज़रे ज़मानों की ज़द पे हूँ
12 ऐसा लगता है दबे पाँव क़ज़ा आती है
13 नींद के बोझ से पलकों को झपकती हुई आई
14 वो अपने अ’क्स की सरहद को छोड़ कर निकला
15 ये किसी शख़्स को खोने की तलाफ़ी ठहरा
16 अबद से ता-ब-अज़ल अ’क्स-ए-ना-तमाम हैं हम
17 रूदाद-ए-जाँ कहें जो ज़रा दम मिले हमें
18 छोड़ कर आँखें जबीनों की तरफ़ चलने लगे
19 रूठा हुआ है कब से मनाने को आए हैं
20 वो अपने बन्द-ए-क़बा खोलती तो क्या लगती
21 सांसों के कारवाँ की तरफ़ देखते रहो
22 चलते चलते ये गली बेजान होती जाएगी
23 हवा-ए-दैर-ओ-हरम से बचाना पड़ता है
24 ज़मीं के सारे मनाज़िर से कट के सोता हूँ
25 उनको ख़ला में कोई नज़र आना चाहिए
26 वो आस्माँ की हदों का शुऊ’र हो जाना
27 है ख़सारा जो ख़सारे को ख़सारा जाने
28 जो होगी सुब्ह तो लौटेंगे शाम से निकले
29 बीमार-ए-आगही तिरी वज्ह-ए-शिफ़ा है दिल
30 ग़रूर-ए-आब-ए-रवाँ तुझको मात हो गई है
31 बहुत मख़्मूर होता जा रहा हूँ
32 चाँद सूरज से परे और कहीं चाहते हैं
33 ख़ुश्बू को क़ैद-ए-गुल से रिहा कर दिया गया
34 दामन-ए-दिल पर नई गुलकारियाँ करते रहो
35 वही उमीद वही इन्तिज़ार ले आई
36 सब समझते हैं कि हम जीत के क़ाबिल नहीं हैं
37 मेरे जैसे कुछ नए चेहरे बनाने के लिए
38 पस-ए-ज़मीं कि पस-ए-आस्माँ चले जाते
39 हक़ तलब करते हुए लोगों को फ़र्यादी कहें
40 एक बेरंग नज़ारा भी तो जा सकता था
41 बाल बिखराए हुए गिर्या-कुनाँ आती है
42 सवाल-ए-दस्त-ए-गदाई पे ख़त्म होता है
43 गलियों में आहटों के मचलने का वक़्त था
44 हक़ीक़तों की तरफ़ दास्ताँ से निकलेंगे
45 ख़ुशियों से मिज़ाजन कोई यकजाई नहीं थी
46 शोर के दरियाओं में गहरा उतरना आ गया
47 मेरी बातों पे ख़मोशी का गुमाँ होना था
48 बिखर गए हैं यहाँ जा-ब-जा बना दीजे
49 चन्द रोज़ और बदन तू भी ठिकाना है मुझे
50 कमान तोड़ दी अपनी ज़िरह उतार चुका
51 आँख की राह से या दिल की डगर से पहले
52 मैं रूठता था तो मुझको मनाया करता था
53 मैं बढ़ रहा हूँ मिरी उ’म्र घटती जाती है
54 किसी भी शख़्स से शिकवा न अब गिला रक्खो
55 ख़ुश्बू-ए-राएगानी आ’साब मुज़्महिल से
56 दोहरा रहें हैं फिर जिसे दोहरा चुके हैं हम
57 ख़ामुशी से रोज़ाना दायरों में बट जाना
58 धम्माल वो पड़ा कि बदन पस्त हो गया
59 बादल जो एक याद का छाया ख़ुशी हुई
60 सोचता हूँ कि तिरा हिज्र बहाना कर लूँ
61 पेड़ों की छांव ताज़ा हवा छीन ली गई
62 बदलते वक़्त से बदला नहीं नज़ारा-ए-इ’श्क़
63 इक़रार कोई और न इनकार चुप रहो
1
रंग तमाम भर चुकी सुब्ह-बख़ैर1 ज़िन्दगी
मुझमें क़ज़ा2 निखर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
1 शुभ प्रभात 2 मौत
तेरे भी ज़ख़्म भर दिए और हवा-ए-वक़्त1 अब
मेरे भी ज़ख़्म भर चुकी सुबह-बख़ैर ज़िन्दगी
1 वक़्त की हवा
दिल में किसी ख़्याल की रात हवा चली बहुत
अब वो हवा ठहर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
बुझ गए सब चराग़ ख़ुद क़िस्सा-ए-मा1 तमाम-शुद2
पहली किरन उतर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
1 मेरा क़िस्सा 2 ख़त्म हुआ
आइना-ए-ख़ला1 में अब मैं भी बहुत संवर चुका
तू भी बहुत संवर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
1 शून्य का आईना
रात नहीं गुज़र सकी मुझसे जो एक उ’म्र तक
रात वो अब गुज़र चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
याद नहीं है शक्ल जो ये तो उसी की शक्ल है
शक्ल तिरी उभर चुकी सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी
2
कोई ख़ुशी न कोई रन्ज मुस्तक़िल1 होगा
फ़ना के रंग से हर रंग मुत्तसिल2 होगा
1 स्थाई 2 जुड़ा होना
अ’जब है इ’श्क़ अ’जब-तर1 हैं ख़्वाहिशें इसकी
कभी कभी तो बिछड़ने तलक को दिल होगा
1 हैरत-अंगेज़
बदन में हो तो गिला1 क्या तमाश-बीनी2 का
यहाँ तो रोज़ तमाशा-ए-आब-ओ-गिल3 होगा
1 शिकायत 2 तमाशा देखना 3 पानी-मिट्टी का तमाशा
अभी तो और भी चेहरे तुम्हें पुकारेंगे
अभी वो और भी चेहरों में मुन्तक़िल1 होगा
1 एक जगह से दूसरी जगह पर जाना
ज़ियाँ1 मज़ीद2 है अस्बाब3 ढूँढते रहना
हुआ है जो वो न होने पे मुश्तमिल4 होगा
1 नुक़्सान 2 और ज़्यादा 3 सबब का बहुवचन 4 शामिल होना
तमाम रात भटकता फिरा है सड़कों पर
हुई है सुब्ह अभी शह्र मुज़्महिल1 होगा
1 सुस्त
3
वक़्त की इन्तिहा1 तलक वक़्त की जस्त2 अमीर इमाम
हस्त3 की बूद4 अमीर इमाम बूद की हस्त अमीर इमाम
1 आख़िरी हद 2 छलाँग 3 वर्तामान, है, 4 जो था
हिज्र का माहताब1 है नींद न कोई ख़्वाब है
तिश्ना-लबी2 शराब है नश्शे में मस्त अमीर इमाम
1 चाँद 2 प्यास
सख़्त बहुत है मर्हला देखिए क्या हो फ़ैसला
तेग़-ब-कफ़1 हक़ीक़तें2 क़ल्ब-ब-दस्त3 अमीर इमाम
1 हाथ में तल्वार लिए 2 सच्चाइयाँ 3 हाथ में दिल लिए
ज़ख़्म बहुत मिले मगर आज भी है उठाए सर
देख जहान-ए-फ़ित्नागर1 तेरी शिकस्त अमीर इमाम
1 साज़िशी दुनिया
उसके तमाम हमसफर1 नींद के साथ जा चुके
ख़्वाब-कदे2 में रह गया ख़्वाब-परस्त3 अमीर इमाम
1 सहयात्री 2 ख़्वाबों का मन्ज़र 3 ख़्वाबों का पुजारी
4
हर आह-ए-सर्द1 इ’श्क़ है हर वाह इ’श्क़ है
होती है जो भी जुरअत-ए-नागाह2 इ’श्क़ है
1 ठंडी आह 2 अचानक हिम्मत
दरबान1 बन के सर को झुकाए खड़ी है अ’क़्ल
दरबार-ए-दिल2 कि जिस का शहंशाह इ’श्क़ है
1 पहरेदार 2 दिल का दरबार
सुन ऐ ग़ुरूर-ए-हुस्न1 तिरा तज़्किरा2 है क्या
असरार-ए-काएनात3 से आगाह4 इ’श्क़ है
1 हुस्न का ग़ुरूर, महबूब 2 वर्णन 3 संसार का रहस्य 4 परिचित
जब्बार1 भी रहीम2 भी क़ह्हार3 भी वही
सारे उसी के नाम हैं अल्लाह इ’श्क़ है
1 ज़ालिम 2 रहम करने वाला 3 क़हर ढाने वाला (ये अल्लाह के सिफ़ाती नाम हैं)
मेहनत का फल है सदक़ा-ओ-ख़ैरात1 क्यों कहें
जीने की हम जो पाते हैं तनख़्वाह इ’श्क़ है
1 दान व ख़ैरात
चेहरे फ़क़त पड़ाव हैं मन्ज़िल नहीं तिरी
ऐ कारवान-ए-इ’श्क़1 तिरी राह इ’श्क़ है
1 इ’श्क़ का कारवाँ
ऐसे हैं हम तो कोई हमारी ख़ता1 नहीं
लिल्लाह इ’श्क़ है हमें वल्लाह इ’श्क़ है
1 ग़लती
हों वो अमीर इमाम कि फ़रहाद1-ओ-क़ैस2 हों
आओ कि हर शहीद की दरगाह3 इ’श्क़ है
1 फ़रहाद, शीरीं का महबूब 2 मजनूँ का नाम 3 मज़ार
5
है कौन किसकी ज़ात के अन्दर लिखेंगे हम
नह्र-ए-रवाँ1 को प्यास का मन्ज़र लिखेंगे हम
1 बहती हुई नहर
ये सारा शह्र आला-ए-हिक्मत1 लिखे उसे
ख़न्जर अगर है कोई तो ख़न्जर लिखेंगे हम
1 अक़्लमंदी का औज़ार
अब तुम सिपास-नामा-ए-शमशीर1 लिख चुके
अब दास्तान-ए-लाशा-ए-बेसर2 लिखेंगे हम
1 तल्वार की प्रशंसा 2 सर कटे धड़ की कहानी
रक्खी हुई है दोनों की बुनियाद रेत पर
सहरा-ए-बेकराँ1 को समुन्दर लिखेंगे हम
1 ऐसा रेगिस्तान जिसका किनारा न हो
इस शह्र-ए-बेचराग़ की आँधी न हो उदास
तुझको हवा-ए-कूचा-ए-दिलबर1 लिखेंगे हम
1 महबूब की गली की हवा
क्या हुस्न उन लबों में जो प्यासे नहीं रहे
सूखे हुए लबों को गुल-ए-तर1 लिखेंगे हम
1 भीगे हुए फूल
हमसे गुनाहगार भी उसने निभा लिए
जन्नत से यूँ ज़मीन को बेहतर लिखेंगे हम
6
कुछ तो हमारा अ’क्स1 भी मुब्हम2 है दोस्तो
कुछ हम पे रौशनी भी ज़रा कम है दोस्तो
1 परछाईं, प्रतिबिंब 2 अस्पष्ट
लगता है कोई शाम-ए-ग़रीबाँ1 थी कुन-फ़काँ2
ये सारी काएनात3 शब-ए-ग़म है दोस्तो
1 इमाम हुसैन के क़त्ल की रात 2 वो शब्द जिससे सृष्टि की रचना हुई 3 ब्रह्मांड
माज़ी1 न हाल2 कुछ भी नहीं है अबद3 तलक
ये वक़्त एक लम्हा-ए-पैहम4 है दोस्तो
1 अतीत 2 वर्तमान 3 अंत 4 बारंबार का लम्हा
इस ज़ख़्म-ए-दिल को रोज़ नया ज़ख़्म दीजिए
ये ज़ख़्म जिसको ज़ख़्म ही मरहम है दोस्तो
सारे जहाँ में कोई नज़ारा नहीं जिसे
ये कह सकें कि आँख का महरम1 है दोस्तो
1 जिससे पर्दा ज़रूरी नहीं
जिससे गुज़र के कुछ नहीं खुलता कहाँ हैं हम
इस रास्ते में एक अ’जब ख़म1 है दोस्तो
1 टेढ़ापन
दिल में कभी जो शह्र बसाया था इ’श्क़ ने
वो शह्र आज दरहम-ओ-बरहम1 है दोस्तो
1 तितर-बितर, उलट-पलट
7
कैसे चराग़ अब तो शरारा1 कोई नहीं
ख़ुश है हवा कि शब में हमारा कोई नहीं
1 चिंगारी
कैसी अ’जीब जंग लड़े जा रहे हैं हम
जीता जिसे कोई नहीं हारा कोई नहीं
मन्ज़िल है तेरी शाम के सायों के हमसफ़र1
ये आस्माँ कि जिस पे सितारा कोई नहीं
1 सहयात्री
वो दिन है जिसको छोड़ के सूरज चला गया
वो रात है कि जिसका किनारा कोई नहीं
उस सरज़मीं पे अश्क1 बहाने से फ़ाएदा
जिस सरज़मीं को ख़ून का धारा कोई नहीं
1 आँसू
ख़ाएफ़1 हैं इस मुक़ाम पे ये लोग किस लिए
क्या डर कि अब मज़ीद2 ख़सारा3 कोई नहीं
1 डरे हुए 2 और ज़्यादा 3 नुक़्सान
पूछा जो मैंने कोई तो होगा मिरी तरफ़
इक शख़्स उठा और उठ के पुकारा कोई नहीं
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