BOOK REVIEW: हमसे क्या हो सका मोहब्बत में- फिराक़ गोरखपुरी
(Humse kya ho saka mohabbat mein- firaq gorakhpuri)
उर्दू के मशहूर शायर फ़िराक़ गोरखपुरी का एक किस्सा बहुत मशहूर है. इलाहाबाद में एक मुशायरा चल रहा था. एक मुशायरे में जब इनकी बारी आई तो लोग ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे. खुसफुसाहट और ठहाकों से तमतमा उठे फ़िराक़ ने माइक सम्हाला और कहा लगता है आज मूंगफली बेचने वालों ने अपने बच्चों को मुशायरा पढ़ने भेज दिया है. ठहाके शांत हुए. हालांकि बाद में मंच पर मौजूद लोगों का ध्यान गया तो दिखा कि फ़िराक़ के पैजामे का नाड़ा खुला हुआ है. उसके बाद मंच पर ही बैठे कैफ़ी आज़मी उठे और उन्होंने फ़िराक़ का वो नाड़ा बांधा. उसके बाद फ़िराक़ ने पढ़ना शुरू किया. हंसने-हंसाने के लिए सुनाया जाने वाला किस्सा महज बानगी है उस शायर के व्यक्तित्व की.
इसमें शायद ही किसी को आपत्ति हो अगर ये कहा जाए कि फ़िराक़ साहब ने, उर्दू-फ़ारसी शाइरी के साथ-साथ अन्य भाषाई ज्ञान से उर्दू शाइरी को एक नया दिमाग़ और नया इमोशन दिया. आधुनिकता बड़े पैमाने पर उनकी शाइरी में दिखती है जिससे क़रीब एक पूरी पीढ़ी प्रभावित हुई.
बड़ा दिलचस्प ये भी है कि हुस्न-ओ-इश्क़ का शायर होने के बावजूद नये विषयों को नए नजरिये से देखा. वो कहते हैं-
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं.
उन्होंने ये भी कहा कि-
तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस
कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ.
हमसे क्या हो सका मोहब्बत में
खैर तुमने तो बेवफाई की.
आज हम आपको यहीं छोड़े जा रहे हैं,एक किताब के पते के साथ. जिसमें फ़िराक़ की ढेरों ग़ज़लें, अशआर और शे'र हैं. 'हमसे क्या हो सका मोहब्बत में' फ़िराक़ की चुनिंदा शाइरी का संकलन है. इसे मंगाइये और उस शायर के शायरी के जरिये उसकी दुनिया समझिये जो खुद ही ख़ुद के बारे में पूरे होश से कहता था-
आने वाली नस्लें तुम पर नाज़ करेंगी हम अशरों
जब उनको मालूम पड़ेगा तुमने फ़िराक़ को देखा है.
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