Viraat Purush Arthashastri Nanaji
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| Item Weight | 250 Grams |
| ISBN | 978-9351860785 |
| Author | Nana Deshmukh |
| Language | Hindi |
| Publisher | Prabhat Prakashan |
| Book Type | Hardbound |
| Publishing year | 2017 |
| Edition | 1st |
| Return Policy | 5 days Return and Exchange |
Viraat Purush Arthashastri Nanaji
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नानाजी ने समाजसेवा को नया आयाम दिया, एक नया रूप, जिसमें उन्होंने जनसाधारण की पहल और उसकी सहभागिता को प्रमुख स्थान दिया। गोंडा, बीड़, चित्रकूट व नागपुर प्रकल्पों के माध्यम से उन्होंने देश के सामने विकास का ऐसा मॉडल खड़ा किया, जो देशानुकूल होते हुए भी समयानुकूल था। सचमुच में वह पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानवदर्शन का मूर्त रूप था।नानाजी का मत था कि ग्राम विकास का मूलमंत्र है स्वावलंबन। उसके बिना विकास एकतरफा व उथला है। वह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है। समाज में विषमता पैदा करता है। मनुष्य को लालची बनाता है। समाज में अनावश्यक होड़ पैदा करता है। कृषि पर उनका विशेष बल था, लेकिन वे मानते थे कि कृषि-आधारित उद्योगों के विकास के बिना कृषि भूमि पर इतना बोझ बढ़ जाएगा कि वह अलाभकारी हो जाएगी।लेकिन ऐसा करते वक्त वे दकियानूसी विचारों का प्रतिपादन कतई नहीं करते थे। वे नए वैज्ञानिक आविष्कारों व खोजों के अनुप्रयोग का बेहद आग्रह रखते थे। उनके बारे में जानने की उनके मन में हमेशा जिज्ञासा बनी रहती थी। कृषि विज्ञान केंद्र, आधुनिक प्रयोगशालाएँ, जमीनी प्रयोगशालाएँ तथा अनुसंधान केंद्र नानाजी की योजनाओं के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे।
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