Vichar ke vatayan
Author | Vinod tiwari |
Language | Hindi |
Publisher | Setu Prakashan |
Pages | 232 |
ISBN | 978-93-89830-39-2 |
Book Type | Paperback |
Item Weight | 0.155 kg |
Dimensions | 129 x 198 mm |
Edition | 1st |
Vichar ke vatayan
About Book
'विचार के वातायन' बौद्धिकता के दोहरे संदर्भ को प्रस्तावित करता है। इसमें संकलित निबंधों के माध्यम से हिंदी के विश्वसनीय और प्रगतिशील आलोचक सत्यप्रकाश मिश्र को याद किया गया है। किसी विद्वान, बुद्धिजीवी, अकेदमिशियन को याद करने का अर्थ यह भी होता है कि हम उनकी रचनात्मकता के गुणसूत्रों को पहचाने और विनम्र बौद्धिकता के सहारे उस परंपरा को फिर-फिर नवीकृत करें या नवीकृत करने का प्रयास करें। इस तरह ही परंपरा और बौद्धिकता का विकास होता चलता है। परंपरा का मतलब उस लकीर पर चलना नहीं है जो पहले से है या किसी विद्वान ने जिसे निर्मित किया है। यह प्रक्रिया परंपरा के विकास की प्रक्रिया को अवरुद्ध करती है। 'सत्यप्रकाश मिश्र स्मृति व्याख्यानमाला' में सम्मिलित ये निबंध एक ही समय और स्पेस में निषेध और स्वीकार की इस परंपरा को प्रस्तावित करते हैं।
दूसरी तरफ यह वातायन बौद्धिकता की वे खिड़कियाँ हैं, जिसमें हमारे समय का स्वप्न, विवेक तो झाँकता ही है, उसकी परेशानियाँ, दुरावस्थाएँ, पीड़ाएँ भी झाँकती हैं। समाज की परेशानियों, दुरावस्थाओं, पीड़ाओं से ही स्वप्न और विवेक की अनेक दिशाएँ भासमान होती हैं। इस प्रक्रिया में सामाजिकों के निजी संदर्भ कई बार गायब या ओझल हो जाते हैं। उसका केंद्रीय सारतत्त्व समाज में रह रहे असंख्य मनुष्यों की भावनाओं, अपेक्षाओं, व्यवहारों, विवेकों, कुंठाओं, पीड़ाओं का गुणनफल होता है। ये सारे निबंध स्वतंत्र रूप से और अपनी सामूहिकता में भी इस गुणनफल को प्रस्तावित करते हैं। यही इन स्वतंत्र निबंधों की आंतरिक एकतानता का निर्माण भी करते हैं। विद्वान वक्ताओं के अलग-अलग विषयों पर रखे उनके विचार, आधुनिक दृष्टि और विचार श्रृंखला की विकास यात्रा को प्रस्तावित करती है। यह प्रस्तावना इस रूप में भी महत्त्वपूर्ण है कि नयी सहस्राब्दी के पहले दो दशकों की सामूहिक विचार यात्रा का प्रतिबिंब है। इस यात्रा में कवि, आलोचक, इतिहासकार, शिक्षाविद्, समाज वैज्ञानिक सभी हैं। 'सत्यप्रकाश मिश्र स्मृति व्याख्यानमाला' के अंतर्गत नामवर सिंह, नित्यानंद तिवारी, मैनेजर पांडेय, आलोक राय, हरबंस मुखिया, राधावल्लभ त्रिपाठी, सुधीर चंद्र, कृष्ण कुमार, निर्मला जैन, अशोक वाजपेयी, अरुण कमल, राजेंद्र कुमार, अभय कुमार दुबे के भाषणों की अविकल प्रस्तुति है यह पुस्तक। विचारों के संकुचन के दौर में अनेक किस्म की विविधता-विषय, संकाय, विचार-समेट यह पुस्तक वैचारिक और अकादमिक क्षेत्रों के लिए अनिवार्य सी होगी-ऐसा हमारा विश्वास है।
About Author
विनोद तिवारी
23 मार्च 1973 को उत्तर प्रदेश के एक जिले देवरिया में निम्नमध्यवर्गीय परिवार में जन्म। प्रारंभिक शिक्षा गाँव और देवरिया में। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से बी.ए., एम.ए. और डी. फिल.। विभिन्न संस्थानों में अध्यापन के उपरांत अभी दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिंदी विभाग में अध्यापन कर रहे हैं। दो वर्षों तक लगभग अंकारा विश्वविद्यालय, अंकारा (तुर्की) में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। लेखन की शुरुआत आलोचना से ही। 25 वर्षों से आलोचनात्मक लेखन। देशभर की सभी पत्र-पत्रिकाओं में आलोचनात्मक लेख और समीक्षाएँ प्रकाशित। बहुचर्चित और हिंदी जनक्षेत्र की महत्त्वपूर्ण पत्रिका 'पक्षधर' का संपादन-प्रकाशन कर रहे हैं। अब तक, 'परंपरा, सर्जन और उपन्यास', 'नयी सदी की दहलीज पर', 'विजयदेव नारायण साही' (मोनोग्राफ), 'निबंध : विचार-रचना' और 'आचार्य रामचंद्र शुक्ल के श्रेष्ठ निबंध', 'आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के श्रेष्ठ निबंध', 'आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के श्रेष्ठ निबंध', 'कथालोचना : दृश्य-परिदृश्य', 'उपन्यास : कला और सिद्धांत' (दो खंडों में), 'नाज़िम हिकमत के देश में' (यात्रा-संस्मरण), 'आलोचना की पक्षधरता' तथा 'राष्ट्रवाद और गोरा', ‘विचार के वातायन’ जैसी पुस्तकों का लेखन और संपादन कर चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की पत्रिका 'बहुवचन' के दो अंकों का संपादन। युवा आलोचना के लिए देशभर में प्रतिष्ठित 'देवीशंकर अवस्थी आलोचना सम्मान-2013' और 'वनमाली कथालोचना सम्मान-2016' से सम्मानित।
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