Vande Vaani Vinayakou
Author | Shriramvriksha Benipuri |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9383111954 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1 |
Vande Vaani Vinayakou
हम साहित्य को अपने जीवन में वह स्थान नहीं देते, जिसका वह हकदार है। हम साहित्य को एक फालतू चीज समझते हैं। किसी व्यक्ति की राय का मखौल उड़ाना हो, तो आप कह दीजिए—यह साहित्यिक ठहरे न? साहित्य को हम फुरसत की, तफरीह की चीज मानते हैं। घर में बेकार बैठे हैं, वक्त काटे न कट रहा है—आइए, किसी साहित्यिक कृति के पन्ने उलट लें। आज जी उदास है, मन भारी है, किसी काम में चित्त नहीं लग पाता— चलिए, बगल के किसी साहित्यिक दोस्त से दो-दो बहकी बातें कर आएँ। वह साहित्यिक यदि कवि हुआ, तो फिर क्या कहना?—इसी संग्रह सेहिंदी के अमर साहित्यकारों में श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी अपने वैशिष्ट्यपूर्ण लेखन के लिए अलग से पहचाने जाते हैं। उनका मानना था कि साहित्य-सृष्टि उनका व्यसन था। जिसे खेल-खेल में प्रारंभ किया, वह उनके जीवन की संचालिका बन गई। वस्तुतः यह व्यसन ही उनका जीवन बन गया। बेनीपुरी का अनुभव-क्षेत्र बहुत ही व्यापक था। उनकी लेखनी समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है और इसीलिए उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदना, सरोकार और पहलू विद्यमान रहते हैं।अपने साहित्यिक जीवन के सिलसिले में उनके मन में जो कुछ प्रश्न और समस्याएँ उठती रहीं, उनके समाधान ढूँढ़ने के प्रयत्नों को उनकी लेखनी ने शब्दबद्ध किया�� लोक-हितार्थ उन्हें इस संकलन में संकलित किया गया है।अपने भीतर झाँकने और जीवन में सहजता अपनाने को प्रेरित करती पठनीय पुस्तक।________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमअपनी बात —Pgs. 5वंदे वाणी विनायकौ : साहित्य-विकास की सही दिशा —Pgs. 7ये निबंध —Pgs. 151. वंदे वाणी विनायकौ —Pgs. 192. नया देश : नया समाज : नया साहित्य —Pgs. 243. साहित्य की उपेक्षा —Pgs. 284. पुरानी कथाएँ : नए रूप! —Pgs. 355. साहित्यिकता और साधुता —Pgs. 416. नव-निर्माण और साहित्य-स्रष्टा —Pgs. 467. हिंदी का आधुनिक साहित्य —Pgs. 558. हमारा राष्ट्रीय रंगमंच —Pgs. 609. नाटक का नया रूप —Pgs. 6710. हम कहाँ जा रहे हैं? —Pgs. 7211. राष्ट्र-भाषा बनाम राज्य-भाषा —Pgs. 7712. कला और साहित्य : तीन मनीषियों की दृष्टि में —Pgs. 8213. साहित्यिकों की स्मृति-रक्षा! —Pgs. 8714. कविता का सम्मान —Pgs. 9415. साहित्य-कला और मध्यम-वर्ग —Pgs. 10116. बैले या नृत्य-रूपक —Pgs. 10717. सांस्कृतिक स्वाधीनता की ओर —Pgs. 11118. नई संस्कृति की ओर —Pgs. 11619. हिंदी भाषा का स्थिरीकरण —Pgs. 12020. साहित्य और सत्ता —Pgs. 12621. साहित्यिको, विद्रोही बनो! —Pgs. 13222. नेपाल की कवि-वंदना —Pgs. 13623. सभी भारतीय भाषाओं की जय —Pgs. 14224. साहित्य और संस्था —Pgs. 148
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