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About Book

1990 के आसपास जिन कवियों ने लिखना आरंभ किया और साहित्य में अपने लिए एक अलग पहचान बनायी, उनमें जितेन्द्र श्रीवास्तव महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत संग्रह 'उजास' उनके तीन पूर्ववर्ती संग्रहों का समुच्चय है। ये संग्रह हैं- 'अनभै कथा' (2003), 'असुंदर सुंदर' (2008) और 'इन दिनों हालचाल' (2000, 2011)। इन संग्रहों के साथ आने के कई लाभ हैं। सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि एक कवि के रूप में जितेन्द्र श्रीवास्तव के विकास-क्रम के ऊबड़-खाबड़ रास्तों की पहचान संभव हो सकेगी। एक संग्रह शायद इस विकास-यात्रा की मुकम्मल तस्वीर उजागर कर पाने में उतना सक्षम नहीं हो पाता। यह तथ्य सिर्फ जितेन्द्र श्रीवास्तव के लिए ही सत्य नहीं, अपितु यह उन तमाम कवियों पर भी लागू होता है, जिनके इस तरह के संग्रह प्रकाशित होते हैं। परंतु यह तथ्य जितेन्द्र श्रीवास्तव के इस संग्रह में ज्यादा प्रभावी है क्योंकि ये उनके आरंभिक तीन संग्रह हैं। 'उजास' उनकी अब तक की काव्य-यात्रा को समझने की आधारभूमि का कार्य करेगा—ऐसा मेरा विश्वास है।

1990 के आसपास का समय भारतीय समाज और राजनीति में व्यापक परिवर्तन और उठापटक का था। व्यवस्था और समाज के स्तर पर हो रहे परिवर्तनों के बीच नयी साहित्यिक चेतनाओं और चेष्टाओं का विकास हो रहा था। कवि के रूप में जितेन्द्र श्रीवास्तव की आरंभिक कविताएँ इन्हीं नयी साहित्यिक चेतनाओं और चेष्टाओं की कविताएँ हैं। इसीलिए इनकी आरंभिक कविताओं में विषय भी बहुत हैं और उन विषयों के साथ कवि के ट्रीटमेंट अनेकवर्णी हैं। कुल मिलाकर ये आरंभिक कविताएँ नयी संवेदनात्मक संरचना के तलाश की कविताएँ प्रतीत होती हैं। इसीलिए इनकी आरंभिक कविताओं में सैद्धांतिक समझ के बावजूद व्यावहारिक अपरिचय है, जो कवि को कभी प्रश्नाकुल बनाता है तो कभी उसे सहज संकोची-कहीं-कहीं ये दोनों भाव साथ-साथ ही आ जाते हैं; इनमें जीवन का संघर्ष है और उस संघर्ष की दार्शनिक निष्पत्तियाँ भी हैं; युवकोचित उत्साह है और इन सबके बीच है अपने कवि होने का अहसास।

कवि होने के अहसास और दायित्व के साथ ये अपनी काव्य-यात्रा जारी रखते हैं। हम इस पुस्तक में उनके परिपक्व रूप, जो 'कायांतरण' जैसे परवर्ती संग्रहों में अधिक उभरता है, का परिचय प्राप्त कर लेते हैं । इसका प्रमाण इनकी अनेक कविताएँ हैं। ये कविताएँ विचार, व्यवहार, प्रश्न, लोक-शिष्ट सबके सम्मिश्रण से निर्मित हैं। इन कविताओं में इन्हें अलगाना संभव नहीं है। विभिन्न संदर्भो के एकात्मीकरण से बनी ये कविताएँ अपनी निर्मित में संपूर्ण एकक हैं, इन्हें दुबारा खंडित नहीं किया जा सकता। इसीलिए ये पाठकों पर गहरा तथा स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। मसलन इनकी बहुत प्रसिद्ध कविता 'सोनचिरई' है। विमर्श, मिथक, लोक और करुणा से रची यह कविता, आज विमर्शात्मक प्रगति के पटल पर बहुत पिछड़ी लग सकती है, परंतु हमारे समाज में जब तक एक भी महिला संतान जन्म न दिये जाने के कारण प्रताड़ित की जाती रहेगी, तब तक इस कविता का महत्त्व अक्षुण्ण रहेगा। ऐसी अनेक कविताएँ इस संग्रह में हमें मिल जाएँगी।

एक छोटी बात इनकी भाषा के संदर्भ में। इनकी भाषा में लोच भी है, प्रवाह भी है, पढ़े-लिखे की गंध भी है; परंतु इनकी भाषा की सबसे बड़ी ताकत है-इनकी अभिधात्मकता। प्राथमिक रूप से इनकी भाषा लक्षणा की भाषा नहीं है। इसके बावजूद उसमें व्यंजना की उड़ान मिल जाती है।

About Author

जितेन्द्र श्रीवास्तव

उ.प्र. के देवरिया जिले की रुद्रपुर तहसील के गाँव सिलहटा में जन्म । बी.ए. तक की पढ़ाई गाँव और गोरखपुर में की। तत्पश्चात जे.एन.यू., नयी दिल्ली से हिंदी साहित्य में एम.ए., एम.फिल. और पी-एच.डी.।

हिंदी और भोजपुरी में लेखन-प्रकाशन। इन दिनों हालचाल, अनभै कथा, असुंदर सुंदर, बिल्कुल तुम्हारी तरह, कायांतरण, कवि ने कहा, बेटियाँ, उजास (कविता संग्रह), भारतीय समाज, राष्ट्रवाद और प्रेमचंद, शब्दों में समय, आलोचना का मानुष-मर्म, सर्जक का स्वप्न, विचारधारा, नये विमर्श और समकालीन कविता, उपन्यास की परिधि, रचना का जीवद्रव्य, कहानी का क्षितिज, कविता का घनत्व (आलोचना), शोर के विरुद्ध सृजन (ममता कालिया का रचना संसार), प्रेमचंद : स्त्री जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद : दलित जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद: स्त्री और दलित विषयक विचार, प्रेमचंद : हिंदू-मुस्लिम एकता संबंधी कहानियाँ और विचार, प्रेमचंद : किसान जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद : स्वाधीनता आंदोलन की कहानियाँ, कहानियाँ रिश्तों की (परिवार), प्रेमचंद कहानी समग्र (संपादन) इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं। कई कविताओं का अंग्रेजी, मराठी, उर्द, उड़िया और पंजाबी में अनुवाद। साहित्यिक पत्रिका उम्मीद' का संपादन।

अब तक भारत भूषण अग्रवाल सम्मान', 'देवीशंकर अवस्थी सम्मान', 'कृति सम्मान', उ.प्र. हिंदी संस्थान का 'रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार' 'विजयदेव नारायण साही पुरस्कार', भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का युवा पुरस्कार, डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान और परंपरा ऋतुराज सम्मान ग्रहण कर चुके हैं।

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