About Book
"नासिर काज़मी के कलाम में जहां उनके दुखों की दास्तान, ज़िंदगी की यादें नई और पुरानी बस्तियों की रौनक़ें, एक बस्ती से बिछड़ने का ग़म और दूसरी बस्ती बसाने की हसरत-ए-तामीर मिलती है, वहीं वो अपने युग और उसमें ज़िंदगी बसर करने के तक़ाज़ों से भी ग़ाफ़िल नहीं रहते। उनके कलाम में उनका युग बोलता हुआ दिखाई देता है।" - हामिदी काश्मीरी
नासिर काज़मी की शाइरी ग़ज़ल के रचनात्मक किरदार को तमाम-ओ-कमाल बहाल करने में कामयाब हुई। नई पीढ़ी के शायर नासिर काज़मी की अभिव्यक्ति को अपने दिल-ओ-जान से क़रीब महसूस करते हैं क्योंकि नई शायरी सामूहिकता से किनाराकश हो कर निजी ज़िंदगी से गहरे तौर पर वाबस्ता हो गई है। प्रस्तुत किताब में नासिर काज़मी के चुनिन्दा ग़ज़लों का संग्रह है| यह किताब देवनागरी लिपि में प्रकाशित हुई है और पाठकों के बीच ख़ूब पसंद की गई है|
About Author
नासिर रज़ा काज़मी 8 दिसंबर 1923 को अंबाला में पैदा हुए। इस्लामिया कॉलेज लाहौर से एफ़. ए. पास करने के बा’द बी. ए. में पढ़ रहे थे, इम्तिहान दिए बग़ैर वतन अंबाला वापस चले गए। 1947 में दोबारा लाहौर गए। एक साल तक ‘औराक़-ए-नौ’ के नाम की पत्रिका संपादक-मंडल में शामिल रहे। अक्तूबर 1952 से पत्रिका ‘हुमायूँ’ का संपादन कार्य संभला। नासिर की शे’र-गोई का आग़ाज़ 1940 से हुआ। हफ़ीज़ होशयार पूरी के शागिर्द रहे। आज़ादी के बा’द उर्दू ग़ज़ल को नई ज़िन्दगी देने में उनका नुमायाँ हिस्सा है। 2 मार्च 1972 को लाहौर में आख़िरी साँस ली। उनकी किताबों के नाम ये हैं: ‘बर्ग-ए-नय’, ‘दीवान’, ‘पहली बारिश’, ‘ख़ुश्क चश्मे के किनारे’ (लेख) ‘निशात-ए-ख़्वाब’, ‘इन्तिख़ाब-ए-नज़ीर अकबराबादी’, ‘इन्तिख़ाब-ए-कलाम-ए-मीर’