Description
हम जब कविता या कहानी लिखते हैं तो ऐसे कुछ ज़रूरी चेहरे दिमाग़ में रहते हैं जिनके बारे में या तो हमें यक़ीन होता है कि वे हमारे लिखे को पढ़ेंगे या कुछ चिन्ता होती है कि वे अगर पढ़ेंगे तो क्या कहेंगे। कहीं किसी जगह एक आदमी नज़र रखे हुए है। विष्णु खरे न सिर्फ़ मेरी पीढ़ी के बहुत से कवि-लेखकों के लिए, बल्कि हिन्दी में सक्रिय बहुत सारे दूसरे लोगों के लिए भी, ऐसा ही एक ज़रूरी चेहरा थे। वह कभी हमारे ख़यालों से दूर न रहे। उनका जाना एक ज़रूरी आदमी का जाना और एक दुखद ख़ालीपन का आना है। मेरी पीढ़ी ने एक आधुनिक दिमाग, तेज़ नज़र काव्य-पारखी, आलोचक, दोस्त, स्थायी रक़ीब और नयी पीढ़ी ने अपना एक ग़ुस्सेवर लेकिन ममतालु सरपरस्त खो दिया है। इस रूप में वह हमारे सबसे कीमती समकालीन थे। (विष्णु खरे पर एकाग्र अपने एक शोकलेख में असद ज़ैदी)