Description
पिछले फ्लैप का शेष मुद्दा बहस का है। कुछ लोग मानते हैं कि कविता जन्मजात प्रतिभा से होती है। सिखायी नहीं जा सकती। काव्यात्मक, कलात्मक अभिव्यक्ति हर किसी के बस की बात नहीं। मेरा मानना इससे उल्टा है। जहाँ भी मौका मिलता है, मैं कहता हूँ कि इस धरती पर जितने मनुष्य हैं वे सब के सब कवि हैं, क्योंकि उनके अन्दर भावना है, कल्पना है, बुद्धि है और ज़िन्दगी का कोई-न-कोई मक़सद है। इन चार चीज़ों के अलावा कविता को और चाहिए भी क्या। प्रेम के घनीभूत क्षणों में निरक्षर, निर्बुद्ध और कलाविहीन व्यक्ति भी पल-दो पल के लिए ही सही, शायर हो जाता है। अभिव्यक्ति का कोई-न-कोई नयापन हर मनुष्य संसार को देकर जाता है। अभिव्यक्ति का नयापन ही कविता होती है। इससे आगे मेरा मानना है कि उस नयेपन को माँजा और तराशा भी जा सकता है। मेरे ख़याल से आप मुझसे सहमत होंगे कि भले ही सुर में न गाता हो पर हर मनुष्य गायक है। इसी आधार पर आप मेरी इस धारणा पर भी अपने समर्थन की मोहर लगा दीजिए कि भले ही कविता के प्रतिमानों और छन्दानुशासन का ज्ञान न रखता हो पर हर मनुष्य कवि है। जिस तरह संगीत का शास्त्रीय ज्ञान बहुत कम लोगों को हो पाता है उसी प्रकार कविता का भी। संगीत की अच्छी प्रस्तुति के लिए सुरों का न्यूनतम ज्ञान और रियाज़ ज़रूरी है इसी तरह न्यूनतम शास्त्र ज्ञान और अभ्यास से प्रस्तुति लायक कविता भी गढ़ी जा सकती है।