अनुक्रम
45 • मेरा आँगन, मेरा पेड़
47 • हमारे शौक़ की ये
49 • वो कमरा याद आता है
53 • जंगल में घूमता है
55 • भूख
61 • हम तो बचपन में
63 • बंजारा
67 • दिल में महक रहे हैं
69 • सूखी टहनी तनहा चिड़िया
71 • एक मोहरे का सफर
73 • मदर टेरेसा
77 • फ़साद से पहले
79 • वो ढल रहा है
81 • फ़साद के बाद
83 • ख़्वाब के गाँव में
85 • ग़म होते हैं जहाँ
87 • हमसे दिलचस्प कभी
89 • मुअम्मा
91 • उलझन
93 • जहन्नुमी
95 • बीमार की रात
97 • ये तसल्ली है
99 • मैं पा सका न कभी
101 • मैं खुद भी सोचता हूँ
103 • शिकस्त
107 • सच ये है बेकार
109 • शहर के दूकाँदारो
111 • जिस्म दहकता ज़ुल्फ़ घनेरी
113 • हिज्र
115 • दुश्वारी
117 • आसार-ए-क़दीमा
119 • मैं और मिरी अवारगी
121 • ग़म बिकते हैं
123 • आओ, और न सोचो
127 • मेरे दिल में
129 • वक़्त
135 • दर्द के फूल भी
137 • मुझको यक़ीं है
139 • दोराहा
143 • मिरी जिंदगी मिरी मंजिलें
145 • किन लफ़्ज़ों में
147 • सुबह की गोरी
149 • मेरी दुआ है
153 • दुख के जंगल में
155 • बहाना ढूँढते रहते हैं
156 • जुर्म और सज़ा
159 • हिल स्टेशन
161 • चार क़तऐ
163 • बेघर
मेरा आँगन, मेरा पेड़
मेरा आँगन
कितना कुशादा' कितना बड़ा था
जिसमें
मेरे सारे खेल
समा जाते थे
और आँगन के आगे था वह पेड़
कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था
लेकिन
मुझको इसका यक़ीं था
जब मैं बड़ा हो जाऊँगा
इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा
बरसों बाद
मैं घर लौटा हूँ
देख रहा हूँ
ये आँगन
कितना छोटा है
पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है।
भूख
आँख खुल गयी मेरी
हो गया मैं फिर ज़िन्दा
पेट के अँधेरों से
ज़हन' के धुँधलकों तक
एक साँप के जैसा
रेंगता ख़याल आया
आज तीसरा दिन है—आज तीसरा दिन है ।
इक अजीब ख़ामोशी
मुंजमिद± है कमरे में
एक फ़र्श और इक छत
और चारदीवारें
मुझसे बेतआल्लुक़ सब
सब मिरे तमाशाई
सामने की खिड़की से
तेज़ धूप की किरनें
ग़ज़ल
ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम
पानी छलनी में ले चले हैं हम
छाछ फूँकें कि अपने बचपन में
दूध से किस तरह जले हैं हम
ख़ुद हैं अपने सफ़र की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले हैं हम
तू तो मत कह हमें बुरा दुनियाँ
तूने ढाला है और ढले हैं हम
क्यूँ हैं कब तक हैं किसकी खातिर हैं
बड़े संजीदा मसअले हैं हम