Look Inside
Tarkash
Tarkash
Tarkash
Tarkash

Tarkash

Regular price ₹ 270
Sale price ₹ 270 Regular price ₹ 299
Unit price
Save 9%
9% off
Tax included.
Size guide

Pay On Delivery Available

Rekhta Certified

7 Day Easy Return Policy

Tarkash

Tarkash

Cash-On-Delivery

Cash On Delivery available

Plus (F-Assured)

7-Days-Replacement

7 Day Replacement

Product description
Shipping & Return
Offers & Coupons
Read Sample
Product description

तरकश
ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
जावेद एक अच्छे बोलनेवाले, एक अच्छे सोचनेवाले, काव्य-समर्थ उत्तर-आधुनिक कवि हैं। ताज़गी, गहराई और विविधता, भावनाओं की ईमानदारी और ज़िन्दगी में नए भावों की तलाश उनकी शायरी की विशेषताएँ हैं।
नाज़ुक-ख़याली और फ़सीहुल-बयानी उनको विरासत में मिली है। वह कभी-कभी पारम्परिक शे’र कह लें मगर बुरी शायरी नहीं कर सकते।
तरकश ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ के तीरों से भरा है। बचपन की मीठी या कड़वी यादें हर अदीब या शायर के लिए स्थायी साबित हुई हैं। जावेद अख़्तर की चन्द ऐसी नज़्में जो उनकी ज़ख़मी भावनाओं और अनुभूतियों का दर्पण हैं, पारदर्शी आत्मकथा के तौर पर पढ़ी जा सकती हैं।
जावेद ने अचेत रूप में उर्दू कल्चर के ज़रिए इस सूफ़ी तहज़ीब की ख़ास विशेषताओं यानी धर्मनिरपेक्ष और मानवप्रेमी मूल्यों को भी क़ुबूल किया है। उनका वैल्यू सिस्टम सही है और वह बुनियादी तौर पर प्रगतिशील हैं।
–कुर्रतुल ऐन हैदर TarkashUunchi imarton se makan mera ghir gaya
Kuchh log mere hisse ka suraj bhi kha ge
Javed ek achchhe bolnevale, ek achchhe sochnevale, kavya-samarth uttar-adhunik kavi hain. Tazgi, gahrai aur vividhta, bhavnaon ki iimandari aur zindagi mein ne bhavon ki talash unki shayri ki visheshtayen hain.
Nazuk-khayali aur fasihul-bayani unko virasat mein mili hai. Vah kabhi-kabhi paramprik she’ra kah len magar buri shayri nahin kar sakte.
Tarkash game-janan aur game-dauran ke tiron se bhara hai. Bachpan ki mithi ya kadvi yaden har adib ya shayar ke liye sthayi sabit hui hain. Javed akhtar ki chand aisi nazmen jo unki zakhmi bhavnaon aur anubhutiyon ka darpan hain, pardarshi aatmaktha ke taur par padhi ja sakti hain.
Javed ne achet rup mein urdu kalchar ke zariye is sufi tahzib ki khas visheshtaon yani dharmanirpeksh aur manvapremi mulyon ko bhi qubul kiya hai. Unka vailyu sistam sahi hai aur vah buniyadi taur par pragatishil hain.
–kurrtul ain haidar

Shipping & Return
  • Sabr– Your order is usually dispatched within 24 hours of placing the order.
  • Raftaar– We offer express delivery, typically arriving in 2-5 days. Please keep your phone reachable.
  • Sukoon– Easy returns and replacements within 7 days.
  • Dastoor– COD and shipping charges may apply to certain items.

Offers & Coupons

Use code FIRSTORDER to get 10% off your first order.


Use code REKHTA10 to get a discount of 10% on your next Order.


You can also Earn up to 20% Cashback with POP Coins and redeem it in your future orders.

Read Sample

अनुक्रम

45 • मेरा आँगन, मेरा पेड़
47 • हमारे शौक़ की ये
49 • वो कमरा याद आता है
53 • जंगल में घूमता है
55 • भूख
61 • हम तो बचपन में
63 • बंजारा
67 • दिल में महक रहे हैं
69 • सूखी टहनी तनहा चिड़िया
71 • एक मोहरे का सफर
73 • मदर टेरेसा
77 • फ़साद से पहले
79 • वो ढल रहा है
81 • फ़साद के बाद
83 • ख़्वाब के गाँव में
85 • ग़म होते हैं जहाँ
87 • हमसे दिलचस्प कभी
89 • मुअम्मा
91 • उलझन
93 • जहन्नुमी
95 • बीमार की रात
97 • ये तसल्ली है
99 • मैं पा सका न कभी
101 • मैं खुद भी सोचता हूँ
103 • शिकस्त
107 • सच ये है बेकार
109 • शहर के दूकाँदारो
111 • जिस्म दहकता ज़ुल्फ़ घनेरी
113 • हिज्र
115 • दुश्वारी
117 • आसार-ए-क़दीमा
119 • मैं और मिरी अवारगी
121 • ग़म बिकते हैं
123 • आओ, और न सोचो
127 • मेरे दिल में
129 • वक़्त
135 • दर्द के फूल भी
137 • मुझको यक़ीं है
139 • दोराहा
143 • मिरी जिंदगी मिरी मंजिलें
145 • किन लफ़्ज़ों में
147 • सुबह की गोरी
149 • मेरी दुआ है
153 • दुख के जंगल में
155 • बहाना ढूँढते रहते हैं
156 • जुर्म और सज़ा
159 • हिल स्टेशन
161 • चार क़तऐ
163 • बेघर

मेरा आँगन, मेरा पेड़
मेरा आँगन
कितना कुशादा' कितना बड़ा था
जिसमें
मेरे सारे खेल
समा जाते थे
और आँगन के आगे था वह पेड़
कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था
लेकिन
मुझको इसका यक़ीं था
जब मैं बड़ा हो जाऊँगा
इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा
बरसों बाद
मैं घर लौटा हूँ
देख रहा हूँ
ये आँगन
कितना छोटा है
पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है।

भूख
 आँख खुल गयी मेरी
हो गया मैं फिर ज़िन्दा
पेट के अँधेरों से
ज़हन' के धुँधलकों तक
एक साँप के जैसा
रेंगता ख़याल आया
आज तीसरा दिन हैआज तीसरा दिन है 
 
इक अजीब ख़ामोशी
मुंजमिद± है कमरे में
एक फ़र्श और इक छत
और चारदीवारें
मुझसे बेतआल्लुक़ सब
सब मिरे तमाशाई
सामने की खिड़की से
तेज़ धूप की किरनें

ग़ज़ल
ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम
पानी छलनी में ले चले हैं हम
                    छाछ फूँकें कि अपने बचपन में
                    दूध से किस तरह जले हैं हम
ख़ुद हैं अपने सफ़र की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले हैं हम
                    तू तो मत कह हमें बुरा दुनियाँ
                    तूने ढाला है और ढले हैं हम
 क्यूँ हैं कब तक हैं किसकी खातिर हैं
बड़े संजीदा मसअले हैं हम



Customer Reviews

Be the first to write a review
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)
0%
(0)

Related Products

Recently Viewed Products