Suraksha : Ek Naya Drishtikon
Author | T K Oommen |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-8173158131 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Edition | 1st |
Suraksha : Ek Naya Drishtikon
समस्त जीवधारियों में केवल मानव ही ऐसा प्राणी है, जो पर्यावरण की क्षति के लिए उत्तरदायी है । मानव ने यह क्षमता भी औद्योगिक क्रांति के बाद हासिल की है ।प्रौद्योगिकी के बेतहाशा इस्तेमाल से पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचती है, पारिस्थितिकी का संतुलन बिगड़ता है और प्रकृति का विनाश होता है । प्रकृति और संस्कृति में थोड़ा अंतर है । संस्कृति को मनुष्य बनाता है, जो कि पर्यावरण का अंग है । प्रकृति अब प्रचंड, निरीह और पवित्र नहीं रह गई है । अब इसे बनाया जा रहा है । इसका अतिक्रमण हो रहा है और इसमें जोड़-तोड़ किया जा रहा है । प्रकृति अब संस्कृति बन गई है ।ऐसा देखा गया है कि सरकारें राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर अनाप-शनाप खर्च करती हैं; लेकिन जब व्यक्ति की सुरक्षा की बात आती है तो संसाधनों का रोना रोया जाता है । हम जिस विश्व में रहते हैं, वहाँ राष्ट्र यानी राज्य राष्ट्र जनों यानी नागरिकों से ज्यादा महत्त्व रखता है ।प्रस्तुत पुस्तक में-संसार भर में सुरक्षा की जो अनदेखी की जा रही है, उसे नजरअंदाज किया जा रहा है- अनेक उदाहरणों के द्वारा जनमानस का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया गया है तथा इसके परिणामस्वरूप आनेवाले भयंकर खतरों से रू-बरू कराया गया है ।सार रूप में कहा जा सकता है कि अगर एक समाज नर- संहार, संस्कृति- संहार, पारिस्थितिकीय संहार से मुक्त है तो वहाँ सुरक्षित समाज की कल्पना की जा सकती है ।
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