Description
"अभिनेता का लक्ष्य केवल मानवीय आत्मा के जीवन की संरचना नहीं, वरन् उसे सुन्दर और कलात्मक सौष्ठव के साथ उपस्थित करना भी है। अभिनेता के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपनी भूमिका को भीतर से जिए और फिर अपने इस अनुभव को बाहर भी रूपायित करे। भूमिका में जीना, कलाकार के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक है, जो विशेष को पाने में भी सहायक होता है। कलाकार का कार्य मात्र मल-चरित्र के बाहरी जीवन को ही प्रदर्शित करना नहीं, वरन् उस अन्य व्यक्ति के साथ अपनी स्वयं की मानवीय विशेषताओं को संयोजित करना और अपनी पूरी आत्मा को उसमें उतार देना भी होता है। यांत्रिक अभिनय में भूमिका में जीने की कोई बात ही नहीं होती। इसीलिए इस पद्धति का अभिनेता मूल-चरित्र की भावनाओं को केवल बाहरी रूप में ही प्रस्तुत करता है। इस कार्य के लिए वह बहुत बड़ी संख्या में चित्रात्मक प्रभावों को एकत्र करता है और जो प्रसंग के अनुरूप होते हैं, उन्हीं के माध्यम में वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने का बहाना करता है। एक कलाकार को खुद अपनी आध्यात्मिक और मानवीय सामग्री के पूरी तरह से प्रयोग का अधिकार मिलना चाहिए, क्योंकि केवल वही वह सामग्री है जिससे वह अपनी भूमिका के लिए एक जीवन्त आत्मा की रचना कर सकता है।"