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Socho Saath Kya Jayega : South East Asia & Australia
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जितेन्द्र भाटिया द्वारा अनूदित विश्व साहित्य शृंखला कथादेश पत्रिका में सोचो साथ क्या जायेगा शीर्षक से नियमित अंतराल पर प्रकाशित होती रही है जिसे सभी हिंदी पाठकों और विद्वानों ने मुक्त कंठ से सराहा है इस चौथे खंड में दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया की कहानियों को संकलित किया गया है जिनका चुनाव करने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में जितेन्द्र जी कहते हैं — प्राधिकारिता के किसी भी दावे के बग़ैर इस आयोजन में कुछ ऐसी अपरिचित एवं विलक्षण रचनाओं को चुना गया है जो अपने समय की महत्त्वपूर्ण धरोहर होने के साथ-साथ हिन्दी के पाठक के लिए नयी भी हैं। इन सभी रचनाओं के चुनाव के पीछे जितेन्द्र जी की उपभोगतावाद, भूमंडलीकरण और फासीवाद के विरुद्ध दर्ज की जाने वाली मुखर आवाज़ों का परिचय हिंदी पाठकों से कराने की तीव्र चाहना सहज ही दृष्टिगोचर है
About Author

जितेन्द्र भाटिया जन्म : 1946 राजस्थान। स्कूल के बाद केमिकल इंजीनियरिंग में पी-एच. डी तक की सारी पढ़ाई आई. आई. टी. बम्बई से, जहाँ से विशिष्ट भूतपूर्व छात्रा का सम्मान मिला। पचास वर्ष विभिन्न निजी और सार्वजनिक संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर रह चुकने के बाद अब पूर्णतः लेखन। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ, तकनीकी अभिभाषण, आलेख और सम्मान। आठवें दशक के प्रतिनिधि कथाकार, उपन्यासकार, विचारक और अनुवादक। छह कहानी संग्रह : ‘रक्तजीवी’, ‘शहादतनामा’, ‘सिद्धार्थ का लौटना’, ‘अगले अँधेरे तक’, ‘यहाँ से शहर को देखो’ और ‘रुकावट के लिए खेद है’। तीन उपन्यास : ‘समय सीमान्त’, ‘प्रत्यक्षदर्शी’ और ‘रुणियाबास की अंतर्कथा’। दो नाटक : ‘जंगल में खुलने वाली खिड़की’ और ‘रास्ते बंद हैं’ (रूपान्तर)। चार वैचारिक पुस्तकें : ‘सदी के प्रश्न’, ‘इक्कीसवीं सदी की लड़ाइयाँ’, ‘कंक्रीट के जंगल में गुम होते शहर’ और ‘सर्जकों का प्रेक्षागृह’ (प्रकाश्य)। तीन यात्रावृत्त : ‘मयनमारः गलियों से शहर और शहर से देश को देखना’, ‘उत्तरपूर्वः जिधर से सूरज उगता है’ और ‘लातिन अमेरिका डायरी’ (प्रकाश्य)। विश्व साहित्य से अनुवाद और वैचारिक लेखमाला की मान

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