Shri Guruji : Prerak Vichar
Author | Sandeep Dev |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9386871299 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.2 kg |
Shri Guruji : Prerak Vichar
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य 'श्रीगुरुजी' आध्यात्मिक विभूति थे।सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया। इस दौरान देश-विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत व पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन का भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी साक्षी बने और उस इतिहास-निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया। श्रीगुरुजी सही मायने में न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथि थे, बल्कि बँटवारे के समय वे पाकिस्तानी हिस्से के उस हिंदू समाज के उद्घाटक की भूमिका में भी थे, जिसे बँटवारे से उपजे सांप्रदायिक उन्माद से जूझने के लिए तत्कालीन सरकार ने बेबस छोड़ दिया था।यह पुस्तक श्रीगुरुजी के त्यागपूर्ण प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ ही उनके ओ���स्वी विचारों का नवनीत भी है।__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम भूमिका—51. मा.स. गोलवलकर : संक्षिप्त जीवन गाथा —112. गुरुजी का 'बंच ऑफ थॉट्स'—48• धर्म आखिर है या?—48• हिंदू धर्म —49• हिंदुत्व का विचार—53• सभी पंथ 'हिंदू' शद में अंतर्भूत हैं—56• आसेतु हिमाचल हमारी संस्कृति एक है—61• दासता हिंदू समाज की प्रकृति के प्रतिकूल है—63• भारत एक अखंड विराट् राष्ट्र-पुरुष का शरीर है—67• यह हिंदू राष्ट्र है—69• हम सबकी मातृभूमि एक है—76• हमारे राष्ट्रीय चरित्र का मूलाधार तादात्म्य व प्रेम है—78• हिंदू राष्ट्र, अल्पसंयक और भारतीयकरण —79• हिंदू-मुसलिम समस्या का समाधान संभव है, बशर्ते... 88• हिंदू धर्म में वापसी शुद्धीकरण नहीं, बल्कि परावर्तन है—96• गोरक्षा केवल हिंदुओं का विषय नहीं—98• पूर्वर में अलगाव, धर्मांतरण व गोमांस भक्षण की समस्या और समाधान —103• सामाजिक समरसता : जाति को मान्यता नहीं, प्रत्येक व्यति हिंदू है—109• इस शिक्षा व्यवस्था से देश की भलाई संभव नहीं—121• विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण घातक है—122• संघर्ष-मुत एकात्म मानव की कल्पना ही राष्ट्र की प्रेरक शति है—124• वर्ग संघर्ष की नहीं, आवश्यकता है तो केवल धर्म की—126• धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीयता समानार्थी नहीं है—128• पूर्ण विलय ही कश्मीर समस्या का समाधान है—129• एक देश : एक राज्य—130• स्वदेशी से ही आजादी सुरक्षित—131• एक दिन सारे राष्ट्र में व्याप्त होगा संघ—131• राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मतलब राष्ट्रभति व मातृभति—1353. गुरुजी के आखिरी संदेश : तीन पत्र, तीन संदेश—140
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