Shramana Shabari Ke Ram
Author | Mahakavi Avadhesh |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9386870254 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.439 kg |
Edition | 1st |
Shramana Shabari Ke Ram
जब न बेर कुछ बचे राम ने लखा निकट का कोना,देखा क्षत-विक्षत बेरों का पड़ा दूसरा दोना।बोले वह भी लाओ भद्रे! वे क्यों वहाँ छिपाए,होंगे और अधिक मीठे वे लगते शुक के खाए।उठा लिया था स्वयं राम ने अपना हाथ बढ़ाकर,तभी राम का कर पकड़ा था श्रमणा ने अकुलाकर।प्रभु! अनर्थ मत करो, लीक संस्कृति की मिट जाएगी,जूठे बेर भीलनी के खाए, दुनिया गाएगी।हुआ महा अघ यह मैंने ही चख-चखकर छोड़े थे,जिस तरु के अति मधुर बेर थे, वही अलग जोड़े थे।किंतु किसे था भान, प्रेम से तन-मन सभी रचा था,कहते-कहते बेर राम के, मुख में जा पहुँचा था।छुड़ा रही थी श्रमणा, दोना राम न छोड़ रहे थे,हर्ष विभोर सारिका शुक ने तब यों वचन कहे थे।जय हो प्रेम मूर्ति परमेश्वर, प्रेम बिहारी जय हो,परम भाग्य शीला श्रमणा भगवती तुम्हारी जय हो।—इसी महाकाव्य से——1——रामायण में प्रभु की भक्त-वत्सलता और भक्त की भक्ति की मार्मिक कथा की नायिका श्रमणा पर भावपूर्ण महाकाव्य।
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