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यह संग्रह 1965 में छपे उर्दू काव्य-संग्रह का लिप्यंतरण है। अपनी तमाम सरलता के बावजूद इसके बहुत-से अल्फ़ाज ऐसे हैं, जो पट से समझ में न भी आएँ। राही की बड़ी इच्छा थी कि ऐसे लफ़्जों के लिए भी हिन्दी में माहौल हो। बकौल राही ”क्या मेरी तक़दीर यही है... Read More
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