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Shabda Kuchh Kahe-Ankahe Se…
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कविता किसी कवि या रचनाकार को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई होती, वह अपने समय और साहित्य दोनों की कथावस्तु को अपने में समाहित करते हुए प्रतिरोध की संस्कृति को नया आयाम प्रदान करती है। 21वीं सदी में कविता का वह दौर, जहाँ यथार्थ के धरातल से एक कविता उठती है, जिसे घेरते हुए सारे तथ्य, विषय, प्रसंग, दृश्य, छवियाँ, शोरगुल, अर्थपूर्ण और अर्थहीन, सत्य और अर्ध-सत्य, झूठी नंगी सच्चाइयाँ और उनसे ज्यादा नंगे उनके टिप्पणीकार, समाजवाद बनाम फासिज्म, सवर्ण बनाम दलित, मरी हुई आत्माएँ भटकती-फिरती इतिहास के पन्नों में अपने आपको सँजोती हैं। इस संग्रह की कविताएँ एक विडंबना और विस्मय की कविताएँ हैं, ये एक घिरी हुई असुरक्षित जमीन के बारे में कुछ कहना चाहती हैं।कवि नागेंद्र प्रसाद सिंह (आई.ए. एस.) ने हिंदी कविता के वर्तमान परिदृश्य को उकेरते हुए आम जनमानस के प्रतिरूप को अपने काव्यानुभवों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। दरअसल ऐसी कोई कविता हमारे उस संकट के मूल में जाती है, जब इस कदर अमानवीय स्थितियाँ उत्��न्न होती हैं, जहाँ मानवता शांत, व्यवस्थित और द्वंद्वरहित हो जाती है और यहीं पर यह काव्य-संग्रह उसके अर्थ को दुबारा प्रस्तुत करता है।____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमभूमिका —Pgs. 7लेखकीय —Pgs. 211. दृष्टिदोष —Pgs. 252. श्रमिक हूँ मैं! —Pgs. 303. मैं क्या करूँ? —Pgs. 344. दो सौ रुपए का चेक —Pgs. 385. तुम्हें स्वीकृति है —Pgs. 426. स्वप्न! शहादत का... 467. देश —Pgs. 508. टूटपूँजिया बुद्धिजीवी —Pgs. 539. एहसास अपने होने का —Pgs. 5810. नास्तिक हूँ मैं! —Pgs. 6611. उड़ान —Pgs. 7112. वास्तविक प्रणयिनी —Pgs. 7513. परिवर्तन लाना होगा —Pgs. 8114. तलाश! मेरे अभीष्ट की... 8715. मैं जानता हूँ —Pgs. 9416. जननायक हूँ मैं! —Pgs. 9717. अनकहे शब्द —Pgs. 10218. दासत्व का बादशाह —Pgs. 10819. आई होली रे!... 11320. छद्म संन्यासी —Pgs. 11621. शातिर —Pgs. 12322. मन्नतें —Pgs. 12723. कामना! तुम्हारे अमरत्व की... 13024. वो अनकहा-सा —Pgs. 13525. यूँ ही कुछ चलते-चलते —Pgs. 140
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