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Sanskrit Vangmai Kosh : Granth Aur Granthakar Vol. 1-2
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प्रस्तुत ‘संस्कृत वाङ्‌मय कोश’ में संस्कृत वाङ्‌मय की प्राय: सभी शाखाओं में योगदान करनेवाले ग्रन्थ एवं ग्रन्थकारों का एकत्र संकलन है। इस प्रकार का ‘सर्वंकष’ संस्कृत वाङ्‌मय कोश बनाने का प्रयास अभी तक कहीं नहीं हुआ।इस कोश के ग्रन्थकार खंड में केवल संस्कृत भाषा के ही ग्रन्थकारों का उल्लेख है। फिर भी हिन्दी, मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू इत्यादि प्रादेशिक भाषाओं के जिन प्रख्यात लेखकों ने संस्कृत में भी कुछ वाङ्‌मय सेवा की है, उनका भी उल्लेख यथावसर ग्रन्थकार खंड में हुआ है।प्रथम खंड में ग्रन्थकारों का और द्वितीय खंड में अन्यों का परिचय वर्णानुक्रम से ग्रथित है। किन्तु इस सामग्री के साथ और भी कुछ अत्यावश्यक सामग्री का चयन दोनों खंड़ों में किया गया है। प्रथम खंड के प्रारम्भिक विभाग के अन्तर्गत ‘संस्कृत वाङ्‌मय दर्शन’ का समावेश हुआ है। संस्कृत वाङ्‌मय के अन्तर्गत, सैकड़ों लेखकों ने जो मौलिक विचारधन विद्यारसिकों को समर्पित किया, उसका समेकित परिचय विषयानुक्रम से देना ही इस विभाग का उद्‌देश्य है।पुराण-इतिहास विषयक प्रकरण में अठारह पुराणों के साथ ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ इन इतिहास-ग्रन्थों के अन्तरंग का एवं तद्‌विषयक कुछ विवादों का स्वरूप कथन दिया गया है। ‘महाभारत’ की सम्पूर्ण कथा पर्वानुक्रम से दी गई है।दार्शनिक वाङ्‌मय के विचारों का परिचय न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, तंत्र और मीमांसा-वेदान्त विभागों के अनुसार दिया गया है। इसमें न्याय के अन्तर्गत बौद्ध और जैन न्याय का विहंगावलोकन किया गया है। योग विषय के अन्तर्गत पातंजल योगसूत्रोक्‍त विचारों के साथ हठयोग, बौद्धयोग, भक्तियोग, कर्मयोग और ज्ञानयोग का भी परिणाम दिया गया है। वेदान्त परिचय के अन्तर्गत शंकर, रामानुज, वल्लभ, मध्व और चैतन्य जैसे महान तत्त्वदर्शी-ज्ञानियों के निष्‍कर्षभूत द्वैत-अद्वैत सिद्धान्तों का विवेचन किया गया है।
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