Sansari Sadhu
Item Weight | 250 Grams |
ISBN | 978-8188139941 |
Author | Harkisan Mehta |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Book Type | Hardbound |
Edition | 1st |

Sansari Sadhu
“शायद आपके मन में प्रश्न उठेगा कि साधु जीवन ही बिताना था तो युवराज के बिना अधिकार पाने के लिए मैंने इतना संघर्ष क्यों किया? इसका कोई संतोषजनक उत्तर मेरे पास नहीं है। परंतु मैं स्वयं की परीक्षा लेना चाहता था। इतने वर्षों की साधना की मुझे परीक्षा करनी थी। अब आप में से कोई हमें फिर माया के बंधन में जकड़ने का प्रयास न करें, यही प्रार्थना है।”निर्मल कुमार ने अंतिम शब्द कहे, “हम इस राज्य की हद छोड़कर कहीं जानेवाले नहीं हैं, साधु रहकर संसारी की तरह साथ जीनेवाले हैं; परंतु हमारा आवास राजमहल की बजाय मंदिर रहेगा।”डबडबाई आँखों से सबने उस संसारी साधु को सपत्नीक विदा किया। उन दोनों के जाने के बाद राजमाता कुँवर करण और राजकुमारी चंदन के गले से लगकर सिसक-सिसककर रोती रहीं। साथ ही उनके भीतर मन-ही-मन मानो कोई कह रहा था, 'जिसने सात जन्मों तक तप किया हो, उसकी कोख से ही ऐसा पवित्र पुत्र अवतार लेता है!'राजमाता परम संतोष अनुभव कर रही थीं।—इसी उपन्यास सेअत्यंत मार्मिक एवं कारुणिक उपन्यास, जो पाठकों के मन पर अपनी गहरी छाप छोड़ेगा।
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