Sanasdeeya Pranali
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Author | Arun Shourie |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
ISBN | 978-9351865797 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.556 kg |
Edition | 1st |
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Sanasdeeya Pranali
हमारे 99 फीसदी विधायक अल्पमत निर्वाचकों द्वारा चुने जाते हैं, उनमें से कई डाले गए वोटों का महज 15-20 फीसदी वोट पाकर निर्वाचित हो जाते हैं—यह आबादी का बमुश्किल 4-6 फीसदी बैठता है। तो हमारी संसदीय प्रणाली कितनी प्रतिनिधि प्रणाली है?लोकसभा में 39 पार्टियों के साथ, 14 पार्टियों से मिलकर बनी सरकार के साथ, क्या यह प्रणाली मजबूत, संशक्त और प्रभावी सरकारें प्रदान कर रही हैं, जिसकी हमारे देश को जरूरत है? क्या यह प्रणाली ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सत्ता सौंप रही है, जिनके पास मंत्रालयों को चलाने की, विधायी प्रस्तावों का आकलन करने की, वैकल्पिक नीतियों का मूल्यांकन करने की क्षमता, समर्पण और निष्ठा है? या यह खराब-से-खराब लोगों को विधायिका और सरकार में ला रही है? जब वे सत्ता में होते हैं तो क्या यह उन्हें लोगों का भला करने के लिए प्रेरित करती है, या यह उन्हें कहती है कि कार्य-प्रदर्शन मायने नहीं रखता है, कि 'गठबंधनों' को बनाए रखना कार्य-प्रदर्शन का स्थानापन्न है? क्या यह प्रतिरोधी और बाधा खड़ी करनेवाली राजनीति को अपरिहार्य नहीं बनाती है?इससे पहले कि हम यह निष्कर्ष निकालें कि इस प्रणाली का समय पूरा हो गया है, शासन का कितना पूजन हो, ताकि हमें लगे कि हमें अवश्य ही विकल्प तैयार करना चाहिए?वह विकल्प क्या हो सकता है?तब क्या होता है, जब ये विधायक 'संप्रभुता' का दावा करते हैं और उसे अपना बना लेते हैं? न्यायपालिका ने जो बाँध खड़ा किया है—कि संविधान के आधारभूत ढाँचे को बदला नहीं जा सकता— राजनीतिक वर्ग के खिलाफ एक आवश्यक सुरक्षा नहीं है? लेकिन क्या कोई वैकल्पिक प्रणाली तैयार की जा सकती है, जो इस आवश्यक बाँध को तोड़ेगी नहीं, उसका उल्लंघन नहीं करेगी? उस विकल्प का मार्ग कौन प्रशस्त करेगा? उसकी अगुवाई कौन करेगा? इस झुलसानेवाली समालोचना में अरुण शौरी इन सवालों और अन्य मुद्दों को उठाते हैं। हमारे वक्त के लिए अनिवार्य। हमारे देश की दृढता के लिए आवश्यक।___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________ अनुक्रमआभारोक्तियाँ —Pgs. 71. परिचय —Pgs. 11ढाँचे2. क्या यह प्रणाली प्रकृति का एक नियम है? —Pgs. 213. हमारे पास जो प्रणाली है —Pgs. 264. मौजूदा प्रणाली के बारे में मिथक —Pgs. 305. कई संभव प्रणालियों में से बस एक —Pgs. 1036. विकल्प —Pgs. 115सार्वभौमिकता के सौदागर7. 'सतर्क एवं त्वरित काम करनेवाला' सार्वभौम —Pgs. 1398. सार्वभौमिकता की पूरी बाढ़ —Pgs. 1789. कुछ महत्त्वपूर्ण सबक —Pgs. 206धारणाएँ10. उदारवादियों से सबक, उदारवादियों के लिए —Pgs. 23111. 'लोगों' पर रोमानी रंग चढ़ाना —Pgs. 261कुछ पाठ्य-सामग्री —Pgs. 303
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