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SAMUDRA MANTHAN KA PANDRAHWAN RATNA

SANJEEV

Rs. 150

About the Book:कथाकार संजीव ने हिन्दी को कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास दिये हैं। उनके रचनात्मक अवदान के लम्बे सिलसिले की नवीनतम कड़ी है उनका उपन्यास समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन। यह उपन्यास हमारे समय की एक प्रमुख विसंगति और एक व्यापक मूल्यभ्रंश की शिनाख्त करता है, जिनसे पूरा समाज आक्रान्त है।About... Read More

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About the Book:
कथाकार संजीव ने हिन्दी को कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास दिये हैं। उनके रचनात्मक अवदान के लम्बे सिलसिले की नवीनतम कड़ी है उनका उपन्यास समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन। यह उपन्यास हमारे समय की एक प्रमुख विसंगति और एक व्यापक मूल्यभ्रंश की शिनाख्त करता है, जिनसे पूरा समाज आक्रान्त है।

About the Author:
6 जुलाई, 1947, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) के बाँगरकलाँ गाँव में। कार्यक्षेत्र : 38 वर्षों तक रासायनिक प्रयोगशाला में कार्य करने के बाद स्वतंत्र लेखन, 7 वर्षों तक हंस समेत अनेक पत्रिकाओं के संपादन एवं स्तंभलेखन का कार्य। अपने शोधपरक लेखन व वर्जित विषयों पर लिखे गये साहित्य के लिए ख्यात। लगभग 150 कहानियाँ व 14 उपन्यास प्रकाशित।
Description

About the Book:
कथाकार संजीव ने हिन्दी को कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास दिये हैं। उनके रचनात्मक अवदान के लम्बे सिलसिले की नवीनतम कड़ी है उनका उपन्यास समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन। यह उपन्यास हमारे समय की एक प्रमुख विसंगति और एक व्यापक मूल्यभ्रंश की शिनाख्त करता है, जिनसे पूरा समाज आक्रान्त है।

About the Author:
6 जुलाई, 1947, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) के बाँगरकलाँ गाँव में। कार्यक्षेत्र : 38 वर्षों तक रासायनिक प्रयोगशाला में कार्य करने के बाद स्वतंत्र लेखन, 7 वर्षों तक हंस समेत अनेक पत्रिकाओं के संपादन एवं स्तंभलेखन का कार्य। अपने शोधपरक लेखन व वर्जित विषयों पर लिखे गये साहित्य के लिए ख्यात। लगभग 150 कहानियाँ व 14 उपन्यास प्रकाशित।

Additional Information
Title

Default title

Publisher Setu Prakashan Pvt. Ltd.
Language Hindi
ISBN 9788196166533
Pages 96
Publishing Year 2023

SAMUDRA MANTHAN KA PANDRAHWAN RATNA

About the Book:
कथाकार संजीव ने हिन्दी को कई महत्त्वपूर्ण उपन्यास दिये हैं। उनके रचनात्मक अवदान के लम्बे सिलसिले की नवीनतम कड़ी है उनका उपन्यास समुद्र मन्थन का पन्द्रहवाँ रतन। यह उपन्यास हमारे समय की एक प्रमुख विसंगति और एक व्यापक मूल्यभ्रंश की शिनाख्त करता है, जिनसे पूरा समाज आक्रान्त है।

About the Author:
6 जुलाई, 1947, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) के बाँगरकलाँ गाँव में। कार्यक्षेत्र : 38 वर्षों तक रासायनिक प्रयोगशाला में कार्य करने के बाद स्वतंत्र लेखन, 7 वर्षों तक हंस समेत अनेक पत्रिकाओं के संपादन एवं स्तंभलेखन का कार्य। अपने शोधपरक लेखन व वर्जित विषयों पर लिखे गये साहित्य के लिए ख्यात। लगभग 150 कहानियाँ व 14 उपन्यास प्रकाशित।