Sampoorna Bal Kahaniyan (Set of 2 Vols.)
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Author | Vishnu Prabhakar |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
Pages | 520 Pages |
ISBN | 978-8173157134 |
Item Weight | 0.5 kg |
Sampoorna Bal Kahaniyan (Set of 2 Vols.)
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"गजनंदन!" "हाँ, बाबाजी!" "अब क्या होगा? दाँत तो घर ही भूल आया। अब कैसे बोलूँगा?" गजनंदन ने किसी तरह हँसी दबाकर कहा, "दाँत भूल आए! पर डरो नहीं, बाबा।" "डरूँ कैसे नहीं! मुँह से बार-बार फूँक निकल जाएगी। बच्चे और हँसेंगे।" "तब तो और भी अच्छा होगा। आपकी कहानी तो है ही हँसानेवाली। दो गुना प्रभाव पड़ेगा।" "तुझे तो हँसी सूझी है, मेरी जान निकल रही है।" "तो बाबाजी, जादू दिखाइए न अपना। बुला लीजिए दाँतों को।" बाबाजी की भृकुटि चढ़ गई। जी में आया, दे मारें एक थप्पड़! हमारी हँसी उड़ाता है नालायक! लेकिन मजबूर थे। घबरा रहे थे। बस, दो मिनट बाद कहानी पढ़नी होगी उन्हें। तभी गजनंदन ने फुसफुसाकर कहा, "बाबाजी, जादू मुझे भी आता है।" "चुप बे, चुप!" -इसी पुस्तक से हिंदी के अग्रणी साहित्यकार विष्णु प्रभाकरजी ने विभिन्न विधाओं में विपुल लेखन किया। अपने लेखन-कर्म के दौरान वे बाल पाठकों को नहीं भूले। अपनी बाल कहानियों में उन्होंने बाल-स्वभाव और उनके मन की जिज्ञासाओं, कौतुक कारनामों और चंचलताओं व चपलताओं को बड़ी सूक्ष्मता से उकेरा है। बाल-मन की आईना ये कहानियाँ मनोरंजक एवं प्रेरणादायी हैं।
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