Samay Ka Lekh
Author | Saryu Roy |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9352665464 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.377 kg |
Samay Ka Lekh
सरयू राय और उनके लेखन से परिचय 1980 के दशक में हुआ, जब हम 'जनमत' के लिए काम करते थे और 'रविवार' में लिखा करते थे। पठन-पाठन और भ्रष्टाचार की खबरों—कृषि, सहकारिता, सिंचाई को लेकर पत्रकारों को रायजी खूब फीड भी किया करते थे। ऐसे में उनके साथ पत्रकारों की खूब बनती थी। ढेर सारे अग्रज उनके मित्र थे। आज लगता है, रायजी अगर पॉलिटिकल क्षेत्र में नहीं गए होते तो एक अकादमिक रिसर्चर होते। उन्होंने द्वितीय सिंचाई आयोग में बिहार की नदियों पर गंभीर कार्य कराया। वे एक बौद्धिक मिजाज के आदमी हैं। यों तो इस पुस्तक में 1990 के बाद की उनकी रचनाएँ हैं, लेकिन दरअसल उनका नियमित लेखन 1985 के बाद से है। हालाँकि लेखन में वे सक्रिय तो 1980 के दशक के पूर्व जनता पार्टी के बनने और उसके बाद से ही थे। तब से 1980-90 के बाद वे सत्ताधारी कांग्रेस के खिलाफ पत्रकारों के साथ लगातार सक्रिय रहे। 1986 में हिंदुस्तान-नवभारत टाइम्स आने के बाद पत्रकारों की फौज भी पटना में बढ़ गई थी। पत्रकार-जीवन और उसके बाद के समस्यापरक लेखों का संग्रह है यह पुस्तक।—श्रीकांतवरिष्ठ पत्रकार एवं निदेशक,जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रमआभार—7प्राक्कथन—9भूमिका—33अंतर्कथ्य—41पुस्तक के बारे में—451. संसाधन संपन्न पिछड़ा राज्य—532. आंतरिक उपनिवेश की पीड़ा—563. अप्रासंगिक ग��डगिल फॉर्मूला—614. विकास की मंथर गति—665. पिछड़ापन बनाम क्षेत्रीय विषमताएँ—706. वित्तीय संकट के सवाल पुराने हैं—757. कर्ज ने अर्थव्यवस्था की गाड़ी को पटरी पर रखा—808. बिहार को मिले विशेष राज्य का दर्जा—849. राजनैतिक बाजीगरी की देन है बिहार का वित्तीय संकट—8910. विकास के लिए खर्च का तरीका बदलना जरूरी—9411. आठवीं योजना के लिए संसाधन जुटाने की समस्या—9912. अतिरिक्त संसाधनों के भरोसे बनी वार्षिक योजना—10213. योजना और बजट में तालमेल की कोशिशें—10614. वित्तीय वर्ष बदलने की पहल होनी चाहिए—11015. परंपरागत बजट प्रणाली के सवाल—11416. शून्य आधारित बजट की संभावनाएँ और सीमाएँ—11817. बजट का पर्याय बनता जा रहा है लेखानुदान—12218. आकस्मिकता निधि या विलोम बजट—12719. ओवर ड्राफ्ट की अर्थव्यवस्था—13120. लोक-लेखा : बजट का घाटा कर दिखाने भर की भूमिका—13521. वार्षिक योजना का आकार—13922. बजट पूर्व आर्थिक समीक्षा की परंपरा कायम होनी चाहिए—14423. गैर-योजना मद का हर व्यय गैर (विकास) व्यय नहीं होता—14924. आठवीं योजना : वृद्धि दर हासिल करने की मुश्किलें—15325. बिहार में पूँजी निवेश की समस्या एवं संभावना—15726. प्रति व्यक्ति आय की कसौटी और बिहार—16127. विकास बनाम निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या—16528. केंद्रीय पूँजी निवेश पर बिहार का विशेष हक बनता है—17029. राजीव पैकेज : बिहार की विकास-विसंगति के संदर्भ में—17530. अलाभकर सिंचाई परियोजनाओं का आर्थिक बोझ—17931. वार्षिक योजना में कटौती रोकने का हर संभव उपाय होना चाहिए—18332. विश्व बैंक सहायता पर टिकी बिहार सरकार की नजरें—18733. राज्य की वित्तीय प्रणाली पर हावी कार्य-संस्कृति बदलनी होगी—19234. बिहार में बाढ़ नियंत्रण का अर्थशास्त्र—19735. भौगोलिक विभाजन की माँग से उभरते आर्थिक सवाल—20136. भौगोलिक विभाजन की माँग से जुड़े आर्थिक सवाल—20637. योजना प्रक्रिया में आमूल परिवर्तन की जरूरत—21038. राजनैतिक निर्णयों के आर्थिक पहलू—21539. कर्ज को आय मान बैठने की मुश्किलें—220उपसंहार—225
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