Rom Rom Mein Ram
Item Weight | 146 Grams |
ISBN | 978-8173150715 |
Author | Rajendra Arun |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan |
Book Type | Hardbound |
Publishing year | 2015 |
Edition | 1st |

Rom Rom Mein Ram
रोम रोम में रामहनूमान सम नहिं बड़ भागी।नहिं कोउ राम चरन अनुरागी।।शिवजी कहते हैं कि हनुमान के समान न तो कोई बड़भागी है और न राम के चरणों का अनुरागी। यह कथन बड़ा गहरा है। कुछ लोग सोचते हैं कि अच्छा खा-पीकर, खूब धन कमाकर, बड़ा मकान बनवाकर आदमी भाग्यशाली हो जाता है। लेकिन क्या यही मनुष्य का चरम लक्ष्य है? क्या ऐश्वर्य उसे धन्य करने की शक्ति रखता है? हनुमान 'राम-काज' करके बड़भागी बन गये थे। वास्तव में इस संसार में 'विद्यावान्, गुणी, अतिचातुर' लोग बड़ी मुश्किल से 'राम-काज' करने के लिए आतुर होते हैं। प्राय: आदमी कुछ खूबियों को पाकर अपनी तिजोरियाँ भरना चाहता है, नाम कमाना चाहता है, अपना साइनबोर्ड हर जगह लगवाना चाहता है। दूसरे के हित की कामना करने का तो उसे खयाल भी नहीं आता। इस तरह के काम उसके हिसाब से 'मूर्ख' करते हैं। कीचड़ में सने चिन्तन के इस चक्के को हनुमान ने सही दिशा में मोड़ा। बेजोड़ प्रतिभा और अतुलित बल के कुबेर होते हुए भी उन्होंने स्वार्थ के लिए उसका उपयोग कभी नहीं किया। साधारण मनुष्य में यदि विद्या, गुण या चतुराई में से कोई एक थोड़ा भी आ जाए तो वह ऐंठकर चलने लगता है। पर हनुमान सर्वगुण-सम्पन्न होकर भी ��ेवक ही बने रहे। आज के संसार को पहले से कहीं अधिक सेवा की, भक्ति की जरूरत है। और इसके सबसे बड़े आदर्श और प्रेरणापुरुष हैं हनुमानजी। प्रस्तुत पुस्तक 'रोम रोम में राम' में हनुमान के महिमामय चरित्र का गहन, ललित और मोहक अंकन हुआ है।
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