About Book
रेख़्ता फ़ाउंडेशन की नई पहल है ‘रेख़्ता उर्दू लर्निंग गाइड’ यानी RULG. यह हिंदी माध्यम से उर्दू पढ़ने-लिखने के लिए एक आवश्यक और प्रभावी पुस्तक है। यह पुस्तक बहुत सिलसिलेवार ढंग से उर्दू लिपि सीखने की प्रक्रिया को सरल और सुखद बनाती है। इस संदर्भ में इस पुस्तक में दिए गए निर्देश और उदाहरण उर्दू सीखने की पूरी प्रक्रिया को एक रोचक अनुभव प्रदान करते हैं। आज उर्दू भाषा की रचनाशीलता लोकप्रियता के नए मकाम छू रही है। इंटरनेट की सहज उपलब्धता ने इस उपलब्धि को संभव किया है। लेकिन अब भी ज़्यादातर उर्दू-अदब के मुरीद इस व्यापक रचनाशीलता से गुज़रने के लिए रोमन या देवनागरी लिपि पर निर्भर हैं। ‘रेख़्ता उर्दू लर्निंग गाइड’ इस निर्भरता को सीमित या समाप्त करने की दिशा में ‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ की एक अग्रणी पहल है।
About Author
पस्तुत किताब रेख़्ता टीम द्वारा अनुभवी विशेषज्ञों के निर्देशन में तैयार की गई है|
BOOKS रेख़्ता उर्दू लर्निंग ७१ गाइड उर्दू पढ़ने-लिखने के लिए एक आवश्यक और प्रभावी पुस्तक रेख़्ता उर्दू लर्निंग गाइड r BOOKS प्रस्तावना उर्दू भाषा और इसके उल्लेखनीय साहित्य के संरक्षण और प्रोत्साहन के उद्देश्य से स्थापित, रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने 2012 से अब तक एक लंबा सफर तय किया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने कई प्रोजेक्ट्स शुरू किए, जिनमें किताबों का प्रकाशन भी शामिल है। इसी सिलसिले की किताब रेख़्ता उर्दू लर्निंग गाइड' पेश करते हुए मैं बेहद ख़ुश हूँ, यह उन लोगों के लिए एक ज़रूरी किताब के तौर पर काम आएगी, जो उर्दू लिपि सीखना चाहते हैं। मैं इस किताब की विषयवस्तु को विकसित करने के लिए प्रोफ़ेसर अब्दुर्रशीद और सुमैरा नवाज़ का शुक्रगुज़ार हूँ। यह किताब उर्दू प्रेमियों को भाषा और लिपि सीखने की दिशा में पहला क़दम बढ़ाने में मदद करेगी। यह उन सभी के लिए है जो उर्दू भाषा में दिलचस्पी रखते हैं और इसे सीखने के लिए उत्सुक हैं। इस किताब की तैयारी के चरण में शामिल रहने की वजह से मैं इस बात को पूरे यक़ीन से कह सकता हूँ कि लेखकों ने इसे उपयोगी बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया है। साथ ही इस किताब से कई ऐसी विशेषताएँ जुड़ी हैं जो इसे इस तरह की अन्य किताबों से विशिष्ट बनाती हैं। ख़ास तौर से प्रत्येक मॉड्यूल के अंत में उपयोगी नोट्स, शब्दावली और अभ्यास शामिल हैं। इसके अलावा पाठक किताब के उस हिस्से से भी लाभान्वित होंगे जिसमें शब्दों का प्रासंगिक उपयोग सिखाया गया है। यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है कि नई भाषा सीखने के लिए लिखने और पढ़ने दोनों स्तर पर नियमित रूप से अभ्यास करने की ज़रूरत होती है। यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार परिचय हिंदवी, ज़बान-ए-हिंद, गुजरी, दक्कनी, ज़बान-ए-दिल्ली, ज़बान-ए-उर्दू-ए- मुअल्ला, हिंदुस्तानी और रेख़्ता जैसे कई नामों से लोकप्रिय उर्दू भाषा का जन्म 13वीं शताब्दी में हिंदुस्तान में हुआ था। व्याकरण और ध्वनि-विज्ञान में हिंदी से समानता रखने वाली इस भाषा का शब्दकोश अरबी, फारसी, तुर्की, ब्रज और संस्कृत शब्दों की मदद से विकसित हुआ। पंद्रहवीं सदी में इसमें और भी नई सूरतों का इज़ाफ़ा हुआ। साहित्यिक इतिहास से पता चलता है कि उर्दू भाषा में शायरी का आरंभ दक्कन की गोलकुंडा रियासत के समय में ही हो गया था, जो 1527 में बहमनी सल्तनत के पतन के बाद एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हुई थी। इसका गद्य साहित्य शायरी से भी पहले से मौजूद था। उर्दू भाषा और साहित्य के विकास में शायरों के साथ सूफ़ियों का भी बड़ा योगदान रहा और दक्कन पर मुग़लों के आक्रमण तक शानदार ढंग से जारी रहा। इसके बाद यह ज़बान अलग-अलग इलाक़ों में नई-नई सूरतों में फनी फूली । 20 वीं सदी की शुरुआत होते ही यह भाषा जो 'हिंदुस्तानी' थी उर्दू और हिंदी के ख़ानों में बँट गई। फिर मुल्क विभाजित होते ही भाषा को लेकर एक नई राजनीति ने जन्म लिया । एक सोची-समझी अवधारणा के तहत उर्दू को एक विशेष समुदाय की भाषा के रूप में देखा जाने लगा। जिसके कारण उर्दू भाषा और लिपि को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा। पाठक कम होते गए और उर्दू प्रकाशन उद्योग की आर्थिक स्थिति बिगड़ती चली गई। नतीजे में क्लासिक साहित्य आहिस्ता-आहिस्ता ग़ायब हो गया। इस प्रकार जो लोग उर्दू लिपि नहीं जानते थे उनके लिए उर्दू भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक विरासत को समझना और पढ़ना मुश्किल हो गया। रेख़्ता फ़ाउंडेशन की स्थापना के साथ बड़ी संख्या में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों ने उर्दू की समृद्ध विरासत से दुबारा अपना रिश्ता सुदृढ़ करना शुरू किया है और उर्दू भाषा सीखने के लिए अपनी दिलचस्पी दिखाई है | रेख़्ता उर्दू लर्निंग गाइड' ऐसे ही उर्दू-प्रेमियों के लिए एक तोहफ़ा है और इस पुस्तक के माध्यम से वे बहुत आसान और दिलचस्प अंदाज़ में उर्दू लिपि सीख सकेंगे और उर्दू साहित्य के बेजोड़ और बेमिसाल ख़ज़ाने को मूल लिपि में पढ़ने के क़ाबिल हो सकेंगे। बहुत सरलता से उर्दू लिपि से परिचित कराने के साथ इस किताब में उर्दू लिपि की विशेषताओं पर उपयोगी नोट्स और स्पष्टीकरण भी मौजूद हैं। किताब के तमाम मॉड्यूल और इकाइयों को एक ख़ास क्रम में पेश किया गया है। पाठकों के लिए हमारी सलाह है कि किताब के अध्यायों के क्रम का पालन करें ताकि उर्दू सीखने में आसानी हो । इस किताब को अधिक उपयोगी बनाने के लिए आख़िर में उर्दू संख्याएँ, विशेष अंक, संक्षिप्तियाँ, विशेष प्रतीक और विराम-चिह्न दिए गए हैं; साथ ही चुनिंदा उर्दू गद्य और शायरी के कुछ नमूने भी शामिल हैं, ताकि पाठक उर्दू सीखने के बाद यहीं से उर्दू साहित्य की तरफ़ अपना सफ़र शुरू कर सकें । परिचय लेखक अब्दुर्रशीद जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI), नई दिल्ली में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे हैं । भाषा-विज्ञान और कोशविद्या उनकी दिलचस्पी के मैदान हैं। वह दुर्लभ उर्दू किताबों को तलाश करने और उन्हें संपादित करने की अपनी विशेषता के लिए भी जाने जाते हैं। उनकी कुछ अहम किताबें हैं: फ़हरिस्त - ए- कुतुब, सिद्दीक़ बुक डिपो (सह-संपादक : प्रो. सी एम नईम) फ़हरिस्त-ए-कुतुब मतबा मुंशी नवल किशोर (सह-संपादक प्रो. चंदर शेखर) फ़रहंग-ए-कलाम-ए-मीर: चिराग़-ए-हिदायत की रौशनी में, मीर तक़ी मीर की शायरी का शब्दकोश । उर्दू भाषा और भाषा-विज्ञान की चयनित ग्रंथसूची (सह- संपादक : प्रो. अली आर. फ़तीही) और 'फ़ारसी में हिंदी अल्फ़ाज़' । इन किताबों के साथ वो एक बहुभाषी शब्दकोश, फ़रहंग-ए-आर्यान (फ़ारसी से हिंदी, अंग्रेज़ी और उर्दू) के सह-संपादक हैं। इस शब्दकोश के पाँच खंड अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उर्दू लेख, ख़ास तौर से उन्नीसवीं सदी के साहित्य पर उनके शोध-लेख भारत और पाकिस्तान की प्रतिष्ठित उर्दू पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। प्रोफ़ेसर अब्दुर्रशीद शुरुआत से ही रेख़्ता के उर्दू सिखाने के कार्यक्रम (RULP) में उर्दू सिखाते रहे हैं। सह-लेखक सुमैरा नवाज़ मैक्गिल विश्वविद्यालय (कनाडा) के इस्लामी अध्ययन विभाग से पीएचडी कर रही हैं। उनके लेख 'द कारवाँ' और 'हिमालय साउथ एशियन' में प्रकाशित हो चुके हैं। अनुवादक डॉ. खुर्शीद आलम उर्दू साहित्य में एम.ए., पी-एच. डी. हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी पर भी समान अधिकार है। उर्दू, हिंदी और अँग्रेज़ी में पैंतीस से अधिक पुस्तकों के लेखक, संपादक एवं अनुवादक। उर्दू अध्यापन का अनुभव, हिंदी और उर्दू को अनुवाद के माध्यम से जोड़ने में सक्रियता से संलग्न । भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की स्वायत्त संस्था साहित्य अकादेमी से कार्यक्रम अधिकारी के पद सेवानिवृत्त । डॉ. आलम हिंदी साहित्य की सेवा के लिए भारत सरकार के प्रतिष्ठित 'हिंदीतर भाषी लेखक पुरस्कार' से सम्मानित हैं, साथ ही उर्दू साहित्य सेवा के लिए ऑल इंडिया मीर एकेडमी, लखनऊ द्वारा 'इम्तियाज़-ए-मीर' से भी सम्मानित हैं। विषय-सूची उर्दू लिपि की प्रमुख विशेषताएँ उर्दू सीखते समय विशेष ध्यान देने योग्य बातें इकाई 1 1.1 'अलिफ़' 1.2 'वे' समूह 1.3 'अलिफ़' के प्रयोग से शब्द बनाना 1.4 'बे' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना इकाई 2 2.1 'नून' 2.2 'नून' के प्रयोग से शब्द बनाना मॉड्यूल 1 मॉड्यूल 2 इकाई 3 3.1 'जीम' समूह 3.2 'जीम' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना 3.3 लघु स्वर 3.4 'बे' और 'जीम' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना इकाई 4 4.। रे' समूह 4.2 ₹' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना (अयोजक अक्षरों के साथ) 4.3 रे' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना (योजक अक्षरों के साथ) 20 21 25 27 31 32 34 35 43 47 48 52 57 61 63 इकाई 5 5.1 'दाल' समूह 5.2 'दाल' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना (अयोजक अक्षरों के साथ) 5.3 'दाल' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना (योजक अक्षरों के साथ) इकाई 6 6.1 'वाओ' 6.2 'वाओं' का दीर्घ स्वर के रूप में प्रयोग से शब्द बनाना 6.3 'वाओ' का व्यंजन के रूप में प्रयोग से शब्द बनाना 6.4 'वाओ' के साथ 'बे' समूह का संक्षिप्त रूप इकाई 7 7.1 'जज़्म' मॉड्यूल 3 इकाई 8 8.1 'छोटी ये' और 'बड़ी ये' 8.2 'छोटी ये' का दीर्घ स्वर के रूप में प्रयोग से शब्द बनाना 8.3 'बड़ी ये' का दीर्घ स्वर के रूप में प्रयोग से शब्द बनाना 8.4 'छोटी ये' का व्यंजन के रूप में प्रयोग से शब्द बनाना इकाई 9 9.1 'सीन' समूह 9.2 'सीन' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना इकाई 10 10.1 'तश्दीद' 68 70 72 77 78 81 83 88 95 97 99 102 107 108 114 इकाई 1 1.1 | ‘अलिफ़’ आइए उर्दू वर्णमाला के पहले अक्षर 'अलिफ़' से शुरू करें। 'अलिफ़' इस अक्षर को 'अलिफ़' कहते हैं। यह उर्दू वर्णमाला का पहला अक्षर है। 'अलिफ़' अयोजक (Non-Connector) अक्षर है, अर्थात् यह आगे आने वाले अक्षर से नहीं जुड़ता। 'अलिफ़' लघु स्वर ध्वनियों के साथ साथ दीर्घ स्वर ध्वनियों को भी व्यक्त करता है। हम 'अलिफ़' को एक दीर्घ स्वर 'आ' से शुरू करते हैं जैसे शब्द 'आप' है। 'मद्' हमने ऊपर कहा है कि 'अलिफ़' दीर्घ स्वर 'आ' की आवाज़ देता है। यह 'अलिफ़' के ऊपर 'मद्' चिह्न को अंकित कर व्यक्त किया जाता है। i * +1 ध्यान दीजिए कृपया ध्यान दें कि दीर्घ स्वर 'आ' की ध्वनि को व्यक्त करने के लिए 'अलिफ़' पर 'मद् ' का प्रयोग शब्द के आरंभ में किया जाता है। इससे पहले कि हम 'अलिफ़' से शब्द बनाना शुरू करें, आइए हम पहले व्यंजन समूह के बारे में जानें। 25 I I L T I T J T 26 I I I Ţ Į! J T T J I L t T J निम्नलिखित अक्षरों को तीरों की दिशानुसार लिखिए : 5.3 'दाल' समूह के प्रयोग से शब्द बनाना (योजक अक्षरों के साथ) 'दाल' समूह का लघु रूप : रे' समूह की तरह 'दाल' समूह के अक्षर से पहले अगर अन्य व्यंजन हो तो ये एक निश्चित आकार में बदल जाते हैं। रे' समूह और 'दाल' समूह के अक्षर आरंभिक स्थिति में अपना आकार नहीं बदलते। मध्य या अंत में जब इनसे पहले कोई योजक हो तो इनको लघु रूप से लिखा जाता है, जैसे 'बे' और 'जीम' समूह के अक्षरों में होता है। 'दाल' और 'बे' समूह आइए 'बाद' (हवा) और 'बद' (बुरा) शब्दों के बीच के अंतर को देखते हैं : X » ऊपर दिखाए गए दोनों शब्दों में 'दाल' अपनी अंतिम स्थिति में है। अतः शब्द 'बद' में 'बे' 'दान' से पहले है जो कि योजक है, इसलिए 'दाल' निम्नानुसार अपना आकार बदल लेता है : लघु / मिलवाँ आकार मूल रूप s 'आबाद' और 'अबद ' (अनन्त काल) में अंतर देखिए : VT आबाद अबद यहाँ कुछ और शब्द पढ़िए और 'दाल' समूह के मिलवाँ आकार पर ध्यान दीजिए : L UA ULiC इब्तिदा निदा बद्र बदन ख़ानदान 'दाल' और 'जीम' समूह इसी तरह शब्द 'हद' (सीमा) और 'रद' के बीच के अंतर को ध्यान से पढ़िए : 72 10 शब्द हद' में 'दाल' से पहले 'है' है जो कि योजक अक्षर है इसलिए 'दाल' को मिलवाँ लिखा गया है। 'दाल' का प्रयोग 'जीम समूह' के साथ करते हुए यहाँ कुछ और शब्द पढ़िए: eli glug! 16 16 अजदाद निम्नलिखित उदाहरणों की तुलना करें, शब्द 'बद' (बुरा) और 'बर' में जब एक योजक उन्हें मिलाता है तो 'दाल' और रे' विभिन्न आकार लेते हैं : ÷ अभ्यास के लिए यहाँ कुछ और शब्द पढ़िए: 44 ध्यान दीजिए ** 2154 J est 'जे' और 'जाल' में अंतर उर्दू में 'ज़े' (2) और 'जाल' (:) दो अलग अक्षर हैं लेकिन वह समान ध्वनि उत्पन्न करते हैं जैसे कि निम्नलिखित शब्दों में : Ju- न्दरत ; 03 01- j हिंदी में इन अक्षरों को एक ही अक्षर 'ज' और बिंदी 'ज़' से दर्शाया जाता है। इस अवधारणा को और समझने के लिए हम हिंदी शब्दों का उदाहरण देख सकते हैं जैसे ''पुष्प' और 'प्रशासन', 'प्रशंसा' और 'कृष्णा' जिसमें 'ष' और 'श' का समान उच्चारण है। इस तरह एक ही प्रकार की ध्वनि होने के बावजूद हमें याद रखना चाहिए कि 'बाज़ार' (२५) और 'राज' (1) 'जाल' से नहीं लिखे जाते। 'जात' (18) और 'जरा' (8) जैसे शब्द ज़े (३) से नहीं लिखे जा सकते। जिस तरह हिंदी में शब्द 'पुष्प' को 'पुश्प' लिखेंगे तो ग़लत होगा। इसी तरह 'राज' को 'जाल' से लिखना गलत होगा। इस वर्तनी का कोई नियम नहीं है। आप बार-बार इन शब्दों की लिखेंगे तो याद हो जाएगा। 1) 'दो चश्मी हे', 'बे' समूह शब्दों के साथ i) बे' के साथ 'दो चश्मी हे' (भ) 'बे' के साथ 'दो चश्मी है' जुड़कर 'भ' की ध्वनि उत्पन्न होती है। - शब्द जैसे 'भला', 'उभरना' और 'शुभ' । ii) 'पै' के साथ 'दो चश्मी है' (फ) 'पै' के साथ 'दो चश्मी हे' जुड़कर 'फ' की ध्वनि उत्पन्न होती है। - शब्द जैसे 'फल', 'फिर' और 'बिफरना' । , iii) 'ते' के 'दो चश्मी है' (थ) 'ते' के साथ 'दो चश्मी है ' जुड़कर 'थ' की ध्वनि देता है। शब्द जैसे 'थकन', 'माथा' और 'साथ' । iv) 'टे' के साथ 'दो चश्मी हे' (ठ) - टै' के साथ 'दी चश्मी है' जुड़कर 'ठ' की ध्वनि देता है। शब्द जैसे 'ठीक', 'कठिन' और 'साठ' । - 2) 'दो चश्मी हे', 'जीम' समूह शब्दों के साथ v) 'जीम' के साथ 'दो चश्मी हे' (झ) 'जीम' के साथ 'दो चश्मी है' जुड़कर 'झ' की ध्वनि देता है। शब्द जैसे 'झाँकी', 'समझना और बोझ' । 5. o+% * o+" √ o+; @ o+? (vi) 'चे' के साथ 'दो चश्मी हे' (छ) 'चे' के साथ 'दी चश्मी हे' जुड़कर 'छ' की ध्वनि देता है। - शब्द जैसे 'छतरी', 'कछुआ' और 'कुछ' । 'दाल' के साथ 'दो चश्मी हे' लगाकर 'ध' की ध्वनि देता है। शब्द जैसे 'धार', 'उधर' और 'सीध' । viii) 'डाल' के साथ 'दो चश्मी है' (ढ) - 'डाल' के साथ दो चश्मी हे' लगाकर ढ' की ध्वनि देता है। - शब्द जैसे 'ढाबा', 'निढाल' और 'गड्ढा' । ix) 'ड़े' के साथ 'दी चश्मी है' (ढ़) 3) 'दो चश्मी है', 'दाल' और रे' समूह शब्दों के साथ नहीं जुड़ती और दोनों अलग-अलग लिखे जाते हैं क्योंकि 'दाल' और 'रे' समूह अयोजक हैं। (vii) 'दाल' के साथ 'दो चश्मी है' (ध) 01 0 +9 'ड़े के साथ दो चश्मी है' लगाकर 'ढ' की ध्वनि देता है। - शब्द जैसे 'पढ़ना', 'सीढ़ी' और 'गढ़' । 4) 'दो चश्मी हे', 'काफ़' समूह शब्दों के साथ x) 'काफ़' के साथ 'दो चश्मी है' ( ख ) 'काफ़' के साथ दो चश्मी हे' जुड़कर 'ख' की ध्वनि देता है। शब्द जैसे 'खिलौना', 'पंखा' और 'आँख' । ' o+? 143 4 √3 o + 3 o} o+ } of 0 + 5 22.3 | ‘अलिफ़-लाम', 'अल' के रूप में जब 'अलिफ़-लाम' शब्द के आरंभ में उपसर्ग के रूप में प्रयोग होता है तो यह 'अल' की ध्वनि देता है। उदाहरण के लिए संयुक्त शब्द 'अल करीम' में शब्द 'करीम' अर्थात् 'दयालु' : कुछ और उदाहरण हैं: UUDI अल-अमाँ ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें 'लाम' उपसर्ग में मूक रहता है। उदाहरण के लिए, अगर आप 'अर- रहमान' को देखें तो 'लाम' मूक है जबकि 'अलिफ़' मुखर है और रे की दोहरी ध्वनि के लिए उस पर तश्दीद' का निशान लगाया गया है: ww% wzs + Ji 06-1² U+1+ कुछ और शब्द पढ़िए: 1 S+Ji 22.4 | मूक 'छोटी ये' अगर 'अलिफ़-लाम' शब्द के बीच में आता है और 'छोटी ये' के बाद आता है तो 'छोटी ये' मूक हो जाती है। 'छोटी ये' के बाद के अक्षर पर 'ज़बर' का चिह्न लगाया जाता है। उदाहरण के लिए यौगिक शब्द 'हत्त-अल-इम्कान' में 'छोटी ये' का उच्चारण नहीं होगा : हत्तलमक़दूर Juli अल-हासिल + ‘' +i+Ji+6+ ँ+2 हुँ जाना है दबाएँ । উउँ अलल एलान अलस्सवाह अलल-खुसूस हत्तस्सई 220 22.5 | मूक अलिफ़ शब्द के मध्य में ‘अलिफ़-लाम' और 'अलिफ़' से पहले बे' आने पर 'अलिफ़' मूक होता है और लघु स्वर 'इ' से बदल जाता है। उदाहरण के लिए 'बिल्कुल' शब्द पढ़िए: Joy J+S+Ji+ आप ध्यान दीजिए ‘बिल्कुल' शब्द का उच्चारण उस तरह से नहीं किया गया है जिस तरह से 'बालकुल' लिखा गया है। यहाँ कुछ और उदाहरण हैं: S बिल-खुसूस A बिल-जब्र ji! बिल-फ़र्ज़ ,,, बिल-इरादा C बिल-उमूम 70 बिल आख़िर