Ravindra Ramayan
Author | Ravindra Jain |
Language | Hindi |
Publisher | Prabhat Prakashan Pvt Ltd |
ISBN | 978-9351862598 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.382 kg |
Edition | 1st |
Ravindra Ramayan
जो कथा शिवजी ने पार्वतीजी को, काकभुशुंडिजी ने गरुड़जी को, नारदजी ने वाल्मीकिजी को, याज्ञवल्क्यजी ने मुनि भरद्वाज को सुनाई, जिसकी पतित पावनी धारा तुलसीजी ने जनमानस में बहाई, उस कथा को कहना मेरे लिए दूध की नहर निकालने के समान है। समझने के लिए परमहंस का विवेक चाहिए, उसका प्रिय लगना, कथा श्रवण में रुचि पैदा होना, जन्म-जन्म कृत सुकृत का फल जानना चाहिए और वह फल श्रीराम-जानकीजी ने मुझे निस्संदेह प्रदान किया है।महर्षि वाल्मीकि रामकथा के प्रथम कवि हैं। इस कारण उन्होंने प्रथम प्रणम्य का अधिकार प्राप्त कर लिया है। उनका महाकाव्य विद्वज्जन के लिए है। गोस्वामी तुलसीदासजी के रोम-रोम में राम रमे हैं। सो उनका रोम-रोम प्रणम्य है। उनका लेखन जन-साधारण के लिए है। मेरा प्रयत्न बुद्धिजीवी और जन-साधारण दोनों तक पहुँचने का है। मैं मानता हूँ कि मेरे पास शब्दों का प्राचुर्य नहीं, भाषा का लालित्य नहीं, छंदों की विविधता नहीं, अलंकारों की साज-सज्जा नहीं, परंतु सीताराम नाम की दो ऐसी महामणियाँ हैं, जो लोक-परलोक दोनों को जगमगाने के लिए पर्याप्त हैं। राम भी एक नहीं, चार-चार। राम स्वयं राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न में आंशिक रूप से राम। सीता-राम भवसागर के दो ऐसे जलयान हैं, जो सावधानी से भवसागर पार कराकर वहाँ ले जाते हैं, जहाँ वे स्वयं विराजमान हैं।सर्वथा अलग और अनोखी रामायण, जो पूर्णतया गेय है, समस्त रसों से भरपूर भक्ति और आस्था का ज्ञानसागर है यह ग्रंथरत्न।
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