Rashid Jahan Ki Kahaniyan
Item Weight | 200GM |
ISBN | 9788180000000 |
Author | Edited by Shakil Siddiki |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 112 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2009 |
Edition | 2nd |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Rashid Jahan Ki Kahaniyan
....और यदि एकांकी ‘पर्दे के पीछे' में वह पर्दे के पीछे के उस दर्दनाक मंजर का बयान कर पाईं जहाँ मुस्लिम औरतों के आँसू हैं, घुटन है, वंचनाएँ व बीमारियाँ हैं, सौतनों का त्रास तथा देह का अमानवीय शोषण है, तो वह अभिव्यक्ति की उसी साहसिकता की ओर बढ़ रही थीं जिसने आने वाले समय में स्त्री विमर्श के ठोस आधार निर्मित किए। यों तो स्त्री सरोकारों से जुड़कर विकसित हुए उर्दू कथा साहित्य की समृद्ध परम्परा रशीदजहाँ को विरासत में मिली थी। इसे उन्होंने आगे अवश्य बढ़ाया परन्तु अपने लिए अलग राह भी निकाली, जो यथार्थ के ज़्यादा निकट थी और जिसका फलक भी ज्यादा विशाल था। वह यूरोपीय साहित्य के निकट सम्पर्क में थीं। कारणवश उनकी कहानियाँ गहरे आधुनिकताबोध से सम्पन्न नज़र आती हैं। पितृसत्ता की विसंगतियों को जानते हुए उन्होंने सामाजिक संरचना की उन विद्रूपताओं को भी समझा था, उन ऐतिहासिक कारणों का ज्ञान भी संचित किया था, जो स्त्री की त्रासद अवस्था का मुख्य कारक बने धर्म, उसके शास्त्र सारी दुनिया की स्त्रियों के लिए, जकड़बन्दी का बड़ा कारण बने हुए हैं। स्वयं स्त्री की देह जिस पर उसका अधिकार प्रायः बहुत कम होता है, उसका यन्त्रणा शिविर और कारागार साबित होता है। यही कारण है कि उनकी कहानियों में मुस्लिम मध्यमवर्ग की जीवनस्थितियों और स्त्रियों को केन्द्रीयता प्राप्त होने तथा स्त्री यथार्थ के दैहिक प्रश्नों की प्रबलता के बावजूद वो इस यथार्थ के किसी एक पक्ष तक सीमित नहीं हैं। आसिफ़जहाँ की बहू, छिद्दा की माँ, बेज़बान, सास और बहू, इफ्तारी, इस्तख़ारा तथा वह उनकी सर्वाधिक चर्चित कहानियाँ हैं। इनमें 'वह' को छोड़कर सभी स्त्री पात्र विशिष्ट सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस संस्कृति और इन स्त्रियों से रशीद जहाँ का करीबी परिचय है। सामन्तवाद के दमनकारी वैभव से आक्रान्त यह संस्कृति जिसमें संरक्षणवाद का एक कोना भी है, कई बार स्त्री का यातना शिविर साबित हुई है। जैसे कि 'बेज़बान' की सिद्दी का बेगम, जो इस संस्कृति को ओढे परिवारों में वर पक्ष को शादी से पहले लड़की न दिखाने की रिवायत के कारण कुँवारी रह जाती है। रशीद जहाँ इस संस्कृति पर भरपूर व्यंग करती हैं। .... भूमिका से
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