Ramvilas Sharma Ka Lokpaksha
Item Weight | 350GM |
ISBN | 9789350000000 |
Author | Vishnuchandra Sharma |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 176 |
Book Type | Hardbound |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Publishing year | 2010 |
Edition | 1st |

Ramvilas Sharma Ka Lokpaksha
रामविलास शर्मा का लोकपक्ष - रामविलास शर्मा का लोकपक्ष पुस्तक में पक्षधरता के कई सवाल हैं। डॉ. रामविलास शर्मा उच्छृंखल के पथ से हिन्दी में आये थे। तब भी वह हिन्दी की प्रगतिशीलता के योद्धा लेखक थे। जब वह आलोचना में प्रेमचन्द, रामचन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी और निराला को स्थापित कर चुके थे, तब भी वह विवादी आलोचक थे।मार्क्स ने कभी यूरोप में एकता का स्वप्न देखा था। रामविलास शर्मा ने हिन्दी प्रदेश की कल्पनाशीलता और एकता का स्वप्न-अन्त तक देखा। वह कवि और आलोचक की रचना प्रक्रिया पर लगातर सोचते रहे, संवाद करते रहे। ऋग्वेद से भारतीय साहित्य की भूमिका पर वह लगातार विवाद के केन्द्र में रहे। पार्टीबद्ध मार्क्सवादी जहाँ शिविरबद्ध होते हुए रुक गये, वहीं 'कवि' ( पत्रिका 1957) से 'भारतीय सौन्दर्यबोध और तुलसीदास' पुस्तक तक विष्णुचन्द्र शर्मा ने डॉ. शर्मा से खुली बातचीत की है। मुक्तिबोध और नज़रुल पर लम्बी बहस की। कैसे तेज़ होगा जनवादी आन्दोलन इस पर मार्क्स और पिछड़े समाज में लम्बी बहस की। प्रेमचन्द और शुक्ल जी के लोकपक्ष का इतिहास आज रामविलास शर्मा की मान्यताओं का इतिहास है।विष्णुचन्द्र शर्मा ने अपने पत्रों में आलोचक से कुछ सवाल उठाये हैं। डॉ. शर्मा के 'ऋग्वेद' का पश्चिम एशिया से नाता खोजा है। 'नवजागरण' की भूमिका देखी-परखी है। यह एक भाषा वैज्ञानिक, इतिहासकार और दार्शनिक का दास्तान है, जिसे विष्णुचन्द्र शर्मा ने 'आलोचक का मानस' कहा है। इस मानस के मूल में है 'आलोचना लड़ाई की नहीं बहस की जगह है।' यह लड़ाई आज भी पराजयवाद के विरुद्ध जनपक्ष की भूमिका के रूप में इस पुस्तक में कई धरातल पर क़ायम है। पुस्तक एक संवाद है। विवाद है लोकपक्ष की मान्यता पर नये दृष्टिकोण से सोचने वालों के लिए एक ज़रूरी किताब है रामविलास शर्मा का लोकपक्ष।
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