Ram Vangaman Path Kee Vanaspatiyan
Author | Dr. Mahendra Pratap Singh |
Language | Hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 204 |
ISBN | 9789390000000 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.6 kg |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Edition | 1st |
Ram Vangaman Path Kee Vanaspatiyan
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि यदि भारत के जनमानस के अन्तर्मन में कोई विचार स्थापित करना हो तो उसे धर्म से जोड़ देना चाहिए। राम और कृष्ण भारत के सर्वमान्य महापुरुष हैं तथा रामायण एवं महाभारत की कहानियाँ विद्वान से अनपढ़ तक सभी वर्ग में लोकप्रिय हैं। राम वनगमन एक सर्वमान्य घटना है। अनेक स्थानों पर इसके साक्ष्य विद्यमान हैं। आजकल तो रामेश्वरम् से श्रीलंका तक के सेतु के प्रमाण भी मिल रहे हैं। यदि हम राम वनगमन पथ को प्राचीन रूप में विकसित करने का प्रयास करें तो इसे जनता का पूरा सहयोग प्राप्त होगा तथा हम अपनी पौराणिक धरोहर को संरक्षित करने का अभूतपूर्व कार्य भी कर सकेंगे।वाल्मीकि रामायण या तुलसीकृत रामचरितमानस में राम वनगमन पथ का पूर्ण उल्लेख नहीं है। मोटे रूप में अयोध्या से प्रयाग, प्रयाग से चित्रकूट, चित्रकूट से पंचवटी, पंचवटी से किष्किन्धा और वहाँ से रामेश्वरम् फिर श्रीलंका का उल्लेख आता है। बीच-बीच में पड़ने वाले पर्वतों एवं नदियों के उल्लेख से मार्ग का अनुमान लगाया जा सकता है। पूर्ण रूप से राम वनगमन पथ की खोज हेतु अभी शोध की आवश्यकता है।इस कृति में राम वनगमन पथ में वर्णित वृक्ष प्रजातियों पर विचार किया गया है। ऋषि वाल्मीकि राम के समकालीन थे इसलिए वाल्मीकि रामायण में वर्णित प्रजातियों को आधार माना गया है। तुलसीकृत रामचरितमानस की लोकप्रियता को देखते हुए उसमें वर्णित प्रजातियों को भी संज्ञान में लिया गया है।
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