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राजपूत भविष्य चिन्तन : “राजपूत-भविष्य चिन्तन” की विषयवस्तु ठा. गिरिराज सिंह लोटवाड़ा, अध्यक्ष श्री राजपूत सभा जयपुर के तीन दशक के लम्बे कालखण्ड की कर्मठ समाज सेवा के ठोस अनुभव पर आधारित है। लोटवाड़ा जी की सेवाभावी विनम्र कार्यशैली से उनकी अध्यक्षता में राजपूत संस्थाओं में आपसी सहयोग के नये युग का सूत्रपात हुआ है, जिसकी झलक उनकी प्रस्तुत रचना में समाहित है। राजपूत समाज की ऐतिहासिक, सांस्क��तिक, चारित्रिक विशेषताओं के साथ परम्परागत भेदभाव सामाजिक सोच, आचरण, एकता का अभाव दूरदर्शी समय-सापेक्ष राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्व का अभाव, शिक्षा का अभाव, दहेज प्रथा रूढ़िवादी (अतर्कसंगत) रीति-रिवाज, कुप्रथायें, सामाजिक कुरीतियों, स्वभावगत कमजोरियों, मानसिकता आदि सभी पक्षों के साथ सरकार की जातिगत आरक्षण नीति से प्रताड़ित युवा वर्ग के लिए स्वरोजगार व महिला सशक्तिकरण की आवश्यकताओं की गहन विवेचना की गई है। राजपूत समाज की राजशाही के दौर से लेकर प्रजातांत्रिक युग तक के संक्रमणकाल-परिवर्तन काल की व्यथा-कथा, सामाजिक अवस्था व निराशाजनक परिदृश्य के प्रति लेखक की गहरी उत्कण्ठा, झटपटाहट के साथ दृढ़ आत्म विश्वास व आशावादी सोच का दिग्दर्शन होता है। लेखक के विकट परिस्थितियों में आजीविका एवं सम्मानजनक जीवन जी पाने की चुनौतियों के संघर्ष व समस्याओं को निष्पक्षता से केवल उजागर मात्र ही नहीं किया, बल्कि उनकी गहराई से समीक्षा करके समाज के वर्तमान कि कत्र्तव्यविमूढ़ स्थिति से (उबारने) बाहर निकालने तथा पुनरोत्थान, समग्र उत्थान व प्रगति-पथ पर तीव्र गति से अग्रसर होने के लिए सुस्पष्ट समय-सापेक्ष, क्रांतिकारी एवं व्यवहारिक रूपरेखा (खाका-परियोजना) समर्पित की है, जिसमें राजपूत के उज्जवल भविष्य की आशा किरण सुस्पष्ट परिलक्षित होती है। ठा. गिरिराज सिंह लोटवाड़ा ने चिर-संचित अभिलाषा दर्शायी है:- सुविज्ञ पाठकगण एवं सभी सामाजिक सरोकार रखने वाले लोगों तक समस्त समाज का नोबल बढ़ाने के लिए यह कृति बहुत ही सकारात्मक, प्रेरणादायक एवं अनुपम उत्साहवर्धक प्रतिलक्षित होने के साथ-साथ इसमें समाहित संदेश वर्तमान-भविष्य में समाज की सदा सर्वदा-अपेक्षित एकता व मार्ग-दर्शन के लिए मशाल का कार्य करती रहेगी।RelatedTRUE
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