Raja Nanga
Author | Sudershan Majithia |
Language | HINDI |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 172 |
ISBN | 9788170000000 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.3 kg |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Edition | 1st |
Raja Nanga
राजा नंगा - 'राजा नंगा' सुदर्शन मजीठिया के आठ एकांकी नाटकों का संग्रह है। इन नाटकों में नाटककार ने विभिन्न चरित्रों के ज़रिये सामयिक राजनीति, समाज, पुलिस और प्रशासन तन्त्र पर व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष किये हैं। समकालीन राजनीति और सामाजिक तन्त्र के शिकंजे में जकड़ा हुआ हमारा 'स्व' आज दो-दो विद्रूपों का शिकार है। एक ओर वह लगातार पिस रहा है और मनचाहे ढंग से तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, दूसरी ओर वह इस अमानवीय प्रक्रिया का उपकरण भी है। जो व्यवस्था उसका जीना दूर्भर कर रही है, वह उसी व्यवस्था को पुख्ता कर रहा है। देखते हुए भी सत्य को न पहचान पाने का यह उपक्रम हमारे समय का एक अभिशाप है। 'राजा नंगा' में संकलित एकांकी इस अभिशाप की कहानी को पूरी तीव्रता के साथ सम्प्रेषित करते हैं। ये एकांकी अलग-अलग स्थितियों में अलग अलग चरित्रों के मार्फ़त इसी विद्रूप की समाप्त न होने वाली कथाएँ हैं। जो एक-दूसरे से अलग भी हैं और जुड़ी हुई भी हैं।'राजा नंगा' में विदूर के इस 'बैरियर' को तोड़ने का संकल्प भी दिपदिपाता नजर आता है। इस पूरे अमानवीय तन्त्र में 'रास्ते बंद नही' एकांकी की रेखा भी है। कथित आधुनिक समाज में 'मॉरल स्टैंडर्ड' की सड़ी-गली मान्यताओं का विरोध करती हुई रेखा कहती है-"हमारा घर घर नहीं है। यह दुकान है, जहाँ ग्राहकों को लाकर माल दिखाया जाता है....यह तो शादी के बाज़ार की एक दुकान है। इस बाज़ार में मेरी हैसियत माल से अधिक नहीं है। उसका मानना है—इस सामन्तवादी व्यवस्था में औरत महज़ एक पुर्जा है। औरत सदियों से पुरुष की ग़ुलाम है।संस्कार, धर्म और आदर्शों के नाम पर उसे रौंदा जाता रहा है। जिस औरत ने ज़बान खोलने की कोशिश की उसकी ज़बान बंद कर दी जाती है। जिस औरत ने सच्चाई को देखने की कोशिश की उसको आँखें फोड़ दी जाती हैं और जिस औरत ने सुनने की कोशिश की उसके कानों में शीशा भर दिया जाता है। समाज और घर के दमघोंटू माहौल से विद्रोह कर रेखा अपने घर से निकल जाती है - एक नयी दिशा की ओर। एक नये रास्ते पर, जिस रास्ते पर रेखा के साथ सैकड़ों-हज़ारों रेखाएँ हैं। एक नये क्षितिज की खोज में, जहाँ मुक्ति ही मुक्ति है। यह एकांकी उस कथित सभ्य समाज पर तीख़ा व्यंग्य है जिस समाज का तन और धन अमेरिका में है और मन इस देश की लड़कियों पर। ऐसे समाज के लोग न अमेरिका के हैं। और न इस देश के।हम सबके लिए एक नया रास्ता निर्मित करने के संकल्प के साथ 'राजा नंगा' का बच्चा बचा रहता है। इस तथ्य को उजागर करने के लिए कि स्वर्गिक पोशाक को धारण करने का दिखावा करने वाला राजा तो नंगा है।महज कथ्य के स्तर पर ही नहीं, बल्कि अपने शिल्प और संवादों के पैनेपन की वजह से भी 'राजा नंगा' के ये एकांकी हमारी स्मृतियों और संवेदना को छूते हैं। प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से ये एकांकी सहज हैं। राजा नंगा' के नाटकों की यह सहजता संप्रेषणीय बनकर उभरती है।
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