Raghuvir Sahay Aur Pratirodh Ki Sanskriti
Author | Abhay Kumar Thakur |
Language | hindi |
Publisher | Vani Prakashan |
Pages | 148 |
ISBN | 9789350000000 |
Book Type | Hardbound |
Item Weight | 0.3 kg |
Dimensions | 5.30"x8.50" |
Edition | 1st |
Raghuvir Sahay Aur Pratirodh Ki Sanskriti
रघुवीर सहाय और प्रतिरोध की संस्कृति - "वही ख़बर नहीं है, जो लोगों की चौकाती है, वह भी है जो लोगों को भरोसा देती है, हिम्मत बँधाती है और समाज में अपनी शक्ल का प्रतिविष्य देखने को देती है। मगर ख़बर के पूरी तौर पर ख़बर बनने के लिए आवश्यक है कि वह उन तक भी पहुँचे जिन्होंने उसे पैदा किया है सिर्फ़ उन्हीं तक न रह जाये जिन्होंने उसे लिखा है - शायद बहुत ही सुन्दर भाषा में भी।"रघुवीर सहाय का यह वक्तव्य इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि वे स्वाधीन भारत के महत्वपूर्ण लेखक ही नहीं, अपने जमाने के सजग पत्रकार भी थे। अतः यह स्वाभाविक है कि उनका सम्पूर्ण रचना कर्म अपने समय और समाज के साथ लगातार संवाद है। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में राजनीतिक और सांस्कृतिक दमन के ज़रिये आम आदमी को किस तरह मानवीय अधिकारों से वंचित कर मनुष्य से एक दर्जा नीचे रहने के लिए मजबूर किया गया है, यही उनकी रचना का मुख्य सरोकार है।प्रस्तुत पुस्तक में रघुवीर सहाय के रचना कर्म के में माध्यम से स्वाधीन भारत के महत्त्वपूर्ण मुद्दों- 'लोकतंत्र की विसंगति', 'सांस्कृतिक दासता', 'भाषा की विकृति', 'जनसंचार माध्यमों की भूमिका', 'जातिप्रथा', 'साम्प्रदायिकता' इत्यादि पर विस्तार से विचार किया गया है।उम्मीद है कि राजनीति, साहित्य और संस्कृति के सवालों पर नये ढंग से सोचने के लिए यह पुस्तक पाठकों को उद्वेलित करेगी।अन्तिम पृष्ठ आवरण -हमको तो अपने हक़ सब मिलने चाहिएहम तो सारा का सारा लेंगे जीवन कम से कम वाली बात न हमसे कहिएराष्ट्रगीत में भला कौन वहभारत भाग्य विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसकागुन हरचरना गाता है बनिया बनिया रहे बाम्हन बाम्हन और कायस्थ कायस्थ रहे पर जब कविता लिखे तो आधुनिक हो जाये। खीसें बा दे जब कहो तब गा दे।-रघुवीर सहाय
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