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साहित्य अमृत ' में प्रकाशित डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के संपादकीय लेखों की अनन्यता, वैचारिक गहराई, ज्ञान का अपार विस्तार विश्‍लेषण की बारीकी और तटस्थ दृष्‍ट‌ि से अजस्र विषयों का विवेचन उनके भारत मन से हमारा परिचय कराता है । एक ओर विद्यानिवास मिश्र, अमृता प्रीतम, विष्णुकांत शास्त्री, के.आर नारायणन आदि के स्मृति चित्र हैं तो दूसरी ओर प्रेमचंद, माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि हिंदी के मूर्धन्य रचनाकारों का संक्षिप्‍त मगर बहुत ही सार्थक चित्रांकण है । डॉ. सिंघवी के इन संपादकीय लेखों में हमारी विरासत की अवहेलना की चिंता है; विश्‍व साहित्य की कल्पना है; भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता को हमारी अस्मिता की पहचान के रूप में स्वीकृति है और अमर्त्य सेन के हवाले से भारतीयता के विस्तृत विमर्श की स्वाधीन अभिव्यक्‍त‌ि है; मूल्यों के मूल्य को समझने की कोशिश है; हिंदी की संस्कृति का अभिज्ञान है; सगुण भक्‍त‌ि के व्याज से रति-विलास की आध्यात्मिकता का कथन है और आजादी के साठ वर्षो की हमारी साझी एकता के सपने की सस्पंदना का उल्लेख है । इन संपादकीयों में ज्ञान की विद्युत् छटा हमें चकाचौंध करती है और साथ ही एक स्थितप्रज्ञ के भारत-विषयक अद‍्भुत वैचारिक वैविध्यवाद की गहराई में जाने का निमंत्रण हमें अभिभूत करता है ।पुनश्‍च पुन: -पुन: पढ़ने योग्य डी. सिंघवी के संपादकीय लेखों का एक ऐसा संकलन है, जो ज्ञान के क्षितिज की अपरिसीम विस्तृति से हमें जोड़ता है ।-इंद्र नाथ चौधुरी____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________अनुक्रम१. सुषमा, लालित्य, रस के मर्मज्ञ 'भाई' — Pgs. १३२. सुधियाँ उस चंदनमन मित्र-मनीषी और उनके सदा सुरभित जीवन की — Pgs. १७३. विरासत की वेदना और व्यथा — Pgs. २६४. साहित्य का अनेकांत-दर्शन : स्वायत्त, सहिष्णु और स्वतंत्रचेता साहित्य — Pgs. ३१५. मनुष्यचेता एवं राष्ट्रचेता साहित्य और हमारा स्वाधीनता संग्राम — Pgs. ३७६. मुंशी प्रेमचंद की प्रशस्त मनुष्यता और संवेदनशील प्रासंगिकता — Pgs. ४३७. सत्यं प्रियं हितम् : सृजन, संप्रेषण और सौंदर्य-बोध — Pgs. ४९८. भाषाओं के सीमांत और सीमाओं से परे विश्व साहित्य की कल्पना एवं मानसिकता — Pgs. ५४९. सुरभित स्मृतियाँ — Pgs. ६११०. अस्मिता के अर्थ और आयाम : अनुभूति और अभिव्यक्ति — Pgs. ७३११. जानते हैं हम हर चीज की कीमत, परंतु मूल्यों का मूल्य क्यों नहीं समझते? — Pgs. ८७१२. भारतविद्या में भारत का अवमूल्यन : हमारे अतीत का भविष्य और भविष्य का अतीत — Pgs. ९७१३. भाषा, साहित्य, कला, दर्शन, मूल्य, जीवन, संस्कृति और सभ्यता — Pgs. १०७१४. मूल्यों की कसौटी पर संस्कृति और अपसंस्कृति — Pgs. ११४१५. मार्मिक और मर्मांतक महाभारत — Pgs. १२३१६. इतिहास की प्रपंच भरी प्रवंचनाएँ व भ्रांतियाँ और सभ्यताओं की पीड़ा — Pgs. १३११७. स्वाधीन भारत में १८५७ की स्मृति — Pgs. १४४१८. हिंदी का अनिश्चितकालीन वनवास और हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं में प्रौद्योगिकी का नया प्रभात — Pgs. १४७१९. वंदे मातरम् — Pgs. १५२२०. वृद्धजन हिताय, वृद्धजन सुखाय — Pgs. १६१२१. कृती साहित्यकारों के शताब्दी वर्ष / मृत्यु और जीवन का सच / वीणावादिनी के चार प्रतीक और अगणित वरदान / पावन काशी, शाश्वत काशी — Pgs. १६४२२. बहार पुरबहार है...किंतु, परंतु... / पोंगापंथी विकृतियों के सांस्कृतिक प्रहार — Pgs. १७५२३. किस्सा कुरसी और कलम का : कलम की तहजीब और कुरसी का इकबाल / केवल एक भारतीय-भारतवंशी जाति और हमारी जातीय अस्मिता — Pgs. १८०२४. भक्ति की सगुण परंपरा में जीवंत बिंबों और विलक्षण शब्द-विन्यास का अनिर्वचनीय माधुर्य — Pgs. १८४२५. प्रो. मैक्समूलर का एक अकल्पनीय रहस्य और उनकी अबूझ दुविधा — Pgs. १९०२६. हमारे प्राचीन नगर : जीवन-शैली एवं संस्कृति की ऋचाएँ / भूमंडलीकरण और भारत / १८४५ की लड़ाई, १८५७ की क्रांति : सामंती लड़ाई या स्वातंत्र्य क्रांति? — Pgs. १९३२७. हिंदी : देश और विदेश में — Pgs. १९९२८. हमारी आजादी का साठवाँ वर्ष — Pgs. २०४

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