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About Book

वेद की पवित्र ऋचाओं से 'पृथिवी-सूक्त' का हिन्दी मे अनुवाद और चयन आधुनिक समय मे किए गए ऐसे प्रयासों से कई मायनों में भिन्न है। मंगलमयी, हिरण्यवक्षा, विश्वम्भरा, पृथिवी की अद्भुत स्तुति करने वाले 'पृथिवी-सूक्त' का विद्वान्-कवि मुकुन्द लाठ ने समझ और सूक्ष्मता के साथ अनूदित किया है। इस सूक्त में कहीं कहा गया है कि 'कभी पृथ्वी को/ हम पीड़ा न दें' तो यह अपेक्षा भी की गयी है कि 'पृथ्वी, मुझे गिरने से रोक लेना।' मुकुन्द जी विद्वान-कवि होने के साथ संवेदनशील कुशल चित्रकार भी थे। उन्होंने पृथिवी-सूक्त के अपने इस अनुवाद को स्वयं अपने रेखा-चित्रों से अलंकृत भी किया है। इस तरह यह अनूठा अनुवाद है : हिन्दी में ऐसा कला-समृद्ध अनुवाद शायद ही कोई और हो।

About Author

मुकुन्द लाठ

जन्म : 1937, कोलकाता में। शिक्षा के साथ संगीत में विशेष प्रवृत्ति थी जो बनी रही। आप पण्डित जसराज के शिष्य हैं । अंग्रेज़ी में बी.ए. (ऑनर्स), फिर संस्कृत में एम.ए. किया। पश्चिम बर्लिन गये और वहाँ संस्कृत के प्राचीन संगीत-ग्रन्थ दत्तिलम् का अनुवाद और विवेचन किया। भारत लौट कर इस काम को पूरा किया और इस पर पी-एच.डी. ली।

1973 से 1997 तक राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग में रहे। भारतीय संगीत, नृत्त, नाट्य, कला, साहित्य सम्बन्धी चिन्तन और इतिहास पर हिन्दी-अंग्रेज़ी में लिखते रहे हैं।

यशदेव शल्य के साथ दर्शन प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठित पत्रिका उन्मीलन के सम्पादक और उसमें नियमित लेखन।

प्रमुख प्रकाशन : ए स्टडी ऑफ़ दत्तिलम, हाफ़ ए टेल (अर्धकथानक का अनुवाद), द हिन्दी पदावली ऑफ़ नामदेव (कालावात के सहलेखन में), ट्रान्सफ़ॉरमेशन ऐज़ क्रिएशन, संगीत एवं चिन्तन, स्वीकरण, तिर रही वन की गन्ध, धर्म-संकट, कर्म चेतना के आयाम, क्या है क्या नहीं है, पृथिवी-सूक्त (चयनित अनुवाद)।

दो कविता-संग्रह अनरहनी रहने दो, अँधेरे के रंग के नाम से।

प्रमुख सम्मान व पुरस्कार : पद्मश्री, शंकर पुरस्कार, नरेश मेहता वाङ्मय पुरस्कार, फ़ेलो-संगीत नाट्य अकादेमी।

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