क्रम
कवि की उपलब्ध पहली कविता
1. अंत का प्रारंभ -13
दूसरा सप्तक [1948-49]
1. वसन्त -15
2. पहला पानी -17
3. भला -18
सीढ़ियों पर धूप में [1950-59]
1. आओ, जल भरे वरतन में -20
2. इतने में किसी ने -20
3. चाँद की आदतें -21
4. अगर कहीं मैं तोता होता -22
5. यही मैं हूँ - 23
6. शक्ति दो - 23
7. वसन्त आया - 24
8. हमने यह देखा - 25
9. प्रभु की दया - 28
10. पढ़िए गीता -28
11. ज्वार -29
12. वसन्त -30
13. स्वीकार -30
14. आज फिर शुरू हुआ - 31
15. 'पानी - 31
16. पानी के संस्मरण -32
17. प्रतीक्षा -32
18. वौर - 33
19. नारी - 33
20. दुनिया - 33
21. धूप - 35
22. दे दिया जाता हूँ - 37
23. सुकवि की मुश्किल - 39
आत्महत्या के विरुद्ध [1957-67]
1. हमारी हिन्दी - 40
2. तेरे कन्धे - 41
3. रचता वृक्ष - 42
4. खिंचा गुलाव - 42
5. अभी तक खड़ी स्त्री - 43
6. लाखों का दर्द - 44
7. चढ़ती स्त्री - 44
8. नेता क्षमा करें - 44
9. अधिनायक - 46
10. स्वाधीन व्यक्ति -46
11. नयी हँसी - 49
12. फिल्म के बाद चीख़ -50
13. कोई एक और मतदाता - 55
दूसरा सप्तक [ 1948-49 ]
बसन्त
पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास ।
बन की रानी, हरियाली - सा भोला अन्तर
सरसों के फूलों-सी जिसकी खिली जवानी
पकी फसल-सा गरुआ गदराया जिसका तन
अपने प्रिय को आता देख लजायी जाती।
गरम गुलाबी शरमाहट - सा हल्का जाड़ा
स्निग्ध गेहुँए गालों पर कानों तक चढ़ती लाली जैसा
फैल रहा है।
हिलीं सुनहली सुघर बालियाँ !
उत्सुकता से सिहरा जाता बदन
कि इतने निकट प्राणधन
नवल कोंपलों से रस-गीले ओंठ खुले हैं
मधु-पराग की अधिकाई से कंठ रुँधा है
तड़प रही है वर्ष वर्ष पर मिलने की अभिलाष ।
हँसो हँसो जल्दी हँसो
हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही है
हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट
पकड़ ली जायेगी और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे
हँसते-हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सबको मानने दो कि तुम सबकी तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाय
जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूँज थमते - थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे
अन्त में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
हँसो पर चुटकुलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हों जो किसी ने सौ साल पहले दिये हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों