Pratapgarh Rajya Ka Itihas
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Item Weight | 400 Grams |
ISBN | 978-8186103061 |
Author | Raibahadur Gourishankar Hirachand Ojha |
Language | Hindi |
Publisher | Rajasthani Granthagar |
Pages | NA |
Book Type | Paperback |
Publishing year | 2013 |
Return Policy | 5 days Return and Exchange |

Pratapgarh Rajya Ka Itihas
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प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास : प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा है। उसके शासक उसी राजवंश की एक प्रमुख शाखा के रूप में अपनी परम्पराएँ विकसित करते चले हैं। इस राजवंश की स्थापना आज से प्रायः पाँच सौ वर्ष पूर्व की गई थी। महाराणा कुंभा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल इस राज्य के संस्थापक शासक थे। बागड़, मालवा और मेवाड़ की सीमाओं से जुड़ा हुआ होने के कारण यह राज्य ‘कांठल’ के नाम से भी पुकारा जाता है। यहाँ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भीलों और मीणों की बस्तियों की अधिकता पाई जाती है। प्रतापगढ़ राज्य के इतिहास को पूर्णतः प्रकाश में लाने की दृष्टि से ही इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसके विद्वान् लेखक ने इसे सात अध्यायों में विभक्त कर प्रथमतः उसका भौगोलिक विवरण दिया है जिससे उस राज्य के नाम, स्थान, क्षेत्रफल, सीमा, पर्वतश्रेणियों, नदियों, झीलों तथा वनप्रदेशों आदि की पूरी जानकारी मिल जाती है। प्रथम अध्याय का सम्पूर्ण सर्वेक्षण प्रतापगढ़ रियासत के इतिहास का सम्यक् बोध करने के पूर्व उसकी भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझने की दृष्टि से परम उपयोगी है।ग्रंथ के दूसरे अध्याय में सिसोदियों के पूर्व के राजवंशों का क्रमागत परिचय दिया गया है जिनकी परम्परा रघुवंशी प्रतिहारों, परमार और सोलंकी राजाओं तथा मुसलमान शासकों की भी गणना की गई है। तृतीय अध्याय महारावत क्षेमकर्ण से विक्रमसिंह तक की राज्यघटनाओं का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत करता है तो चौथे अध्याय में महारावत तेजसिंह से प्रतापसिंह तक के शासनकाल की उपलब्धियाँ गिनाई गई हैं। ऐतिहासिक विवरण का यह क्रम महारावत पृथ्वीसिंह, सामंतसिंह, दलपतसिंह तथा महारावत सर रामसिंह तक चलता रहा है जिसमें उन शासकों के जीवन की मुख्य-मुख्य घटनाओं तथा उनकी राजवंशीय परम्पराओं आदि का भी विवरण सम्मिलित किया गया है। ग्रंथ के अंत में जोड़े गये, परिशिष्ट, अनुक्रमणिका एवं चित्रसूची के अध्ययन, अवलोकन तथा आकलन द्वारा प्रतापगढ़ राज्य की ऐतिहासिक सामग्री के उसे प्रपूरक भाग का भी प्रर्याप्त ज्ञान हो जाता है जो उस राज्य के निर्माण और विकास में सहायक सिद्ध हुई थी। कुल मिलाकर यह ग्रंथ प्रतापगढ़ राज्य का प्रामाण���क दस्तावेज है जिसे सही ढंग से खोज निकालने के लिए विद्वान लेखक को वर्षो तक अथक प्रयास करना पड़ा था। अपने क्षेत्र में इस ग्रंथ को लेखक की महान् उपलब्धि कहा जा सकता है।RelatedTRUE
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